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नई दिल्ली : ऋषि मृकंदु औऱ उनकी पत्नी मरूध्वति को कई वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई थी। संतान सुख प्राप्त करने के लिए ऋषि मुकुंद और उनकी पत्नी ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की। ऋषि मृकंदु औऱ उनकी पत्नी मरूध्वति ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आस्था और विश्वास के साथ कठिन तपस्या की। उनकी कठिन तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए उन्हें पुत्र रत्न का वरदान दिया। भगवान शिव ने उनसे पूछा कि उन्हें किस तरह की संतान चाहिए। वह संतान जो दीर्घायु हो लेकिन गूंगा और बहरा हो या ऐसी संतान चाहिए जो जिसके जीवन की अवधि कम वर्षों की हो लेकिन वह ज्ञानी हो।
ऋषि मृकंदु औऱ उनकी पत्नी मरूध्वति ने दूसरा विकल्प चुना। भगवान शिव ने कहा कि तुम्हारे इस पुत्र की उम्र 16 साल होगी। कुछ समय के बाद उनके घर में एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम मार्कंडेय रखा गया। बारह वर्ष बीत जाने पर ऋषि मृकंदु औऱ उनकी पत्नी उदास हो गए। मार्कंडेय ने जब उनसे उदासी का कारण पूछा तो पिता ने मार्कंडेय को सारी बात बतायी।
पिता की आज्ञा लेकर मार्कंडेय शिव की तपस्या करने चले गए। उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की। एक वर्ष तक वह मंत्र की जाप करते रहे। 16 वर्ष जब पूर्व हो गए तो यमराज मार्कंडेय को लेने के लिए आए। मार्कंडेय शिव भक्ति में लीन थे। जैसे ही यमराज उनके प्राण लेने के लिए आगे बढ़े। मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए। उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए और यमराज से कहा कि इस बालक का प्राण तुम नहीं ले सकते। हमने इस बालक को दीर्घायु प्रदान कर दी है। इस पर यमराज भगवान शिव का नमन कर वहां से चले गए। इस तरह मार्कंडेय ने अपनी तपस्या से काल को मात दे दी।