भारत को मिला बेशकीमती ‘खजाना’, 2050 तक यूरोप को आज से 50 गुना ज्यादा होगी इसकी जरूरत
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भारत को मिला बेशकीमती ‘खजाना’, 2050 तक यूरोप को आज से 50 गुना ज्यादा होगी इसकी जरूरत

Rare Earth Elements:  मोबाइल फोन समेत जिन डिवाइस का हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं उनमें और मेडिकल टेक्नोलॉजी, स्वच्छ ऊर्जा, एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव और रक्षा समेत विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए ये बेहद जरूरी है. 

भारत को मिला बेशकीमती ‘खजाना’, 2050 तक यूरोप को आज से 50 गुना ज्यादा होगी इसकी जरूरत

Andhra Pradesh News: राष्ट्रीय भूभौतकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में हल्के दुर्लभ भूतत्वों (REE) की मौजूदगी का पता चला है जो कई इलेक्ट्रोनिक उपकरणों, मेडिकल टेक्नोलॉजी, एयरोस्पेस और रक्षा समेत विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयागों के लिए एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट है.

हल्के दुर्लभ भूतत्व खनिजों में लैंथनम, सेरियम, प्रेसियोडीमियम, नियोडिमियम, येत्रियम, हाफनियम, टांटालुम, नियोबियम, जिरकोनियम और स्कैंडियम शामिल हैं.

एनजीआरआई में वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पी वी सुंदर राजू ने बताया, ‘हमें पूर्ण चट्टान विश्लेषण में भारी मात्रा में हल्के दुर्लभ तत्व (एलए, सीई, पीआर, एनडी, वाई, एनबी और टीए) मिले जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इन खनिजों में आरईई हैं.’

क्या हैं दुर्लभ भूतत्व
दुर्लभ भूतत्व ऐसे 15 तत्व हैं जिन्हें स्कैंडियम और येत्रियम के साथ ‘पीरियोडिक टेबल’ में ‘लैंथननाइड और एक्टीनाइड’ सीरिज के रूप में जाना जाता है.

मोबाइल फोन समेत जिन डिवाइस का हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं उनमें और मेडिकल टेक्नोलॉजी, स्वच्छ ऊर्जा, एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव और रक्षा समेत विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए आरईई अहम अवयव हैं.

राजू ने कहा कि स्थायी चुंबक के विनिर्माण में आरईई का सबसे अधिक एवं अहम उपयोग है. उन्होंने कहा कि स्थायी चुंबक मोबाइल फोन, टेलीविजन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल, पवनचक्की, जेट विमान एवं कई अन्य उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक के लिए अहम है.

राजू ने कहा कि अपनी दीप्तशील (ल्यूमिनिसेंट) और अभिप्रेरित विशेषताओं के कारण आरईई उच्च प्रौद्योगिकी और ‘हरित’ उत्पादों में व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जाते हैं.

2050 में होगी 26 गुणा अधिक जरुरत
प्रधान वैज्ञानिक ने कहा, ‘विशुद्ध शून्य (उत्सर्जन) तक पहुंचने के लिए यूरोप को दुर्लभ भूतत्वों की अभी जितनी जरूरत है, उसे 2050 तक उसकी 26 गुणा अधिक मात्रा में जरूरत होगी. डिजिटलीकरण के कारण भी मांग बढ़ रही है.’

आरईई की खोज भारत संसाधन उत्खनन उथला उपसतह प्रतिच्छाया नामक परियोजना के तहत वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा वित्तपोषित अध्ययन का हिस्सा है.

(इनपुट - एजेंसी)

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