मस्जिद में 'जय श्रीराम' के नारे से क्या धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं? सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पूरा मामला क्या है
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मस्जिद में 'जय श्रीराम' के नारे से क्या धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं? सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पूरा मामला क्या है

Religious Sentiment: मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2024 को इस मामले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सभी आपराधिक कार्रवाई रद्द कर दी. हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने का कोई ठोस सबूत नहीं है.

मस्जिद में 'जय श्रीराम' के नारे से क्या धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं? सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पूरा मामला क्या है

Supreme Court Hearing: क्या मस्जिद में किसी हिंदू नारे को लगाने से धार्मिक भावनाएं आहत होंगी. इस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने वाला है. असल में कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के ऐथूर गांव की बदरिया जुम्मा मस्जिद में 24 सितंबर 2023 को कुछ लोगों ने 'जय श्रीराम' के नारे लगाए. इसके बाद उन्होंने कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय को धमकी दी कि उन्हें शांति से जीने नहीं दिया जाएगा. इस घटना के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज हुई और दो आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया. हालांकि, उन्हें बाद में जमानत मिल गई.

पहले कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला..
इसके बाद मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2024 को इस मामले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सभी आपराधिक कार्रवाई रद्द कर दी. हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने का कोई ठोस सबूत नहीं है. यह फैसला तब दिया गया जब पुलिस की जांच भी पूरी नहीं हुई थी.

फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती..
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस फैसले को हैदर अली नामक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनकी ओर से वकील जावेदुर रहमान ने तर्क दिया है कि मस्जिद में घुसकर नारेबाजी करना न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत करता है बल्कि कानून के अनुसार यह 'अवैध घुसपैठ' और 'सांप्रदायिक तनाव फैलाने' जैसे अपराधों के दायरे में आता है.

मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता का कहना है कि हाईकोर्ट ने पुलिस की जांच पूरी होने से पहले ही कार्यवाही रद्द कर दी, जो कानूनी रूप से गलत है. उनका यह भी तर्क है कि मस्जिद में घुसकर ऐसी हरकत करना और धमकी देना कानूनन गंभीर अपराध है, जिसकी पूरी जांच होनी चाहिए.

अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संदीप मेहता शामिल हैं, इस मामले पर सुनवाई करेगी. शुक्रवार को यह तय होगा कि क्या हाईकोर्ट का फैसला सही था या पुलिस को जांच पूरी करने का मौका दिया जाना चाहिए. इस फैसले से यह भी साफ हो सकता है कि ऐसी घटनाओं को कानून कैसे देखता है. Photo: AI

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