जानिए कैसा रहा 'राम सुतार' के मुस्कुराते हुए गांधी से लेकर 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' तक का सफर
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जानिए कैसा रहा 'राम सुतार' के मुस्कुराते हुए गांधी से लेकर 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' तक का सफर

19 फरवरी, 1925 को महाराष्ट्र के धूलिया जिले में एक गरीब बढ़ई परिवार में जन्मे राम सुतार बहुत छोटी उम्र से मूर्तियां गढ़ने लगे थे.

फोटो साभार : Facebook

नई दिल्ली: कलाकारों से भरे हमारे देश में ऐसे हस्तशिल्पियों की भरमार है, जो पत्थर को तराशकर सुंदर सलोने भगवान बना देने की काबिलियत रखते हैं, लेकिन राम वानजी सुतार एक ऐसे मूर्तिकार हैं, जिन्हें भगवान ने पत्थरों से इंसान गढ़ने का अनोखा हुनर बख्शा है और समय के साथ उनके मूर्ति शिल्प का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है. हाल ही में गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर देश के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा का अनावरण किया गया. इसे दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा कहा जा रहा है. इसके प्रारूप का निर्माण राम सुतार के मार्गदर्शन में हुआ है. 

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बचपन में महात्मा गांधी को गढ़ना था प्रिय
19 फरवरी, 1925 को महाराष्ट्र के धूलिया जिले में एक गरीब बढ़ई परिवार में जन्मे राम सुतार बहुत छोटी उम्र से मूर्तियां गढ़ने लगे थे. इस दौरान महात्मा गांधी को गढ़ना उन्हें विशेष रूप से प्रिय रहा. स्कूल के दिनों में ही उन्होंने सबसे पहले मुस्कुराते चेहरे वाले गांधी को उकेरा था. उनके गुरू श्रीराम कृष्ण जोशी ने उनके सिर पर कला की देवी मां सरस्वती के इस आशीर्वाद को पहचाना और उन्हें बम्बई (अब मुंबई) के सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया. इस स्कूल में राम सबसे आगे रहे और उनकी कला का आकार भी बढ़ने लगा. वहां उन्हें प्रतिष्ठित मायो स्वर्ण पदक दिया गया.

पत्थर और संगमरमर की मूर्तियां बनाने में महारत
उन्हें पत्थर और संगमरमर से बुत तराशने में विशेष रूप से महारत मिली. हालांकि कांस्य में भी उन्होंने कुछ बहुत प्रसिद्ध प्रतिमाएं गढ़ी हैं. सरल व्यक्तित्व के मृदुभाषी राम सुतार ने 1950 के दशक में पुरातत्व विभाग के लिए काम किया और अजंता एवं एलोरा की गुफाओं की बहुत सी मूर्तियों को उनके मूल प्रारूप में वापिस लाने का कठिन कार्य किया.

उपलब्धियों से भरा रहा सुतार का जीवन
दशक के अंतिम वर्षों में वह कुछ समय सूचना और प्रसारण मंत्रालय से जुड़े और फिर स्वतंत्र रूप से मूर्तियां गढ़ने लगे.कृषि मेले के मुख्य द्वार पर दो मूर्तियों से शुरूआत करने वाले राम सुतार का आगे का सफर उपलब्धियों से भरा रहा. मूर्तियों का चेहरा और स्वरूप गढ़ने में माहिर राम सुतार ने गंगासागर बांध पर चंबल देवी की 45 फुट ऊंची सुंदर प्रतिमा तराशकर मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों को उनके दो पुत्रों के रूप में उकेरा.

महात्मा गांधी की प्रतिमा उनकी सबसे चर्चित कलाकृतियों में से एक
उनकी बनाई महात्मा गांधी की प्रतिमा उनकी सबसे चर्चित कलाकृतियों में से एक है और भारत सरकार ने गांधी शताब्दी समारोहों के अंतर्गत इस प्रतिमा की अनुकृति रूस, ब्रिटेन, मलेशिया, फ्रांस, इटली, अर्जेंटीना, बारबाडोस सहित बहुत से देशों को उपहार स्वरूप दी है. इसी तरह की एक प्रतिमा उन्होंने दिल्ली में प्रगति मैदान में 1972 के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेले के लिए बनाई थी जो अब इसका स्थायी भाग बन चुकी है. दिल्ली के पटेल चौक पर गोविंद वल्लभ पंत की 10 फुट ऊंची कांसे की प्रतिमा भी उनके रचनात्मक कौशल की गवाह है.

50 से अधिक स्मारको का कर चुके हैं निर्माण
राम सुतार की सधी उंगलियों ने पत्थर, इस्पात, कांसे से बहुत से इनसानों को आकार दिया है, जो देश के विभिन्न शहरों में मशहूर स्थानों की शोभा बढ़ा रहे हैं. पिछले 40 वर्ष में वह 50 से अधिक स्मारक प्रतिमाओं का निर्माण कर चुके हैं. मूर्ति के निर्माण की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए राम सुतार बताते हैं कि किसी भी आकार की प्रतिमा बनाने के लिए छोटे आकार की प्रतिमा बनाई जाती है और व्यक्ति के चेहरे मोहरे, चलने, बात करने के ढंग और पहनावे के आधार पर उनके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाकर उसे उसके अनुरूप आकार दिया जाता है. सरदार पटेल की प्रतिमा के संबंध में सुतार बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि उन्होंने सबसे ऊंचा काम किया है इसलिए, उनकी प्रतिमा भी सबसे ऊंची बननी चाहिए.

पत्थर को इंसान बनाने की कला के ज्ञाता है सुतार
ईश्वर को किसी ने नहीं देखा और ईश्वर की प्रतिमाएं बनाने वाले उन्हें सबसे सुंदर स्वरूप देते हैं. ईश्वर को मानने वाले भी आस्था के नाते मूर्तियों को भगवान मान लेते हैं. किसी व्यक्ति को हूबहू पत्थर या किसी धातु में ढालना इससे कहीं ज्यादा मुश्किल काम है क्योंकि नयन नक्श, पहनावे, नख शिख में जरा सा फेरबदल पूरी प्रतिमा का स्वरूप बदल सकता है. इस बात में दो राय नहीं कि पत्थर को इंसान बनाने की यह कठिन कला राम वानजी सुतार को उनके पिता से विरसे में मिली है और वह इस उम्र में भी मां सरस्वती के सबसे बड़े साधक हैं.

(इनपुट भाषा से)

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