करुणानिधि: 46 साल बाद बदला काला चश्मा, जर्मनी में नए चश्मे के लिए 40 दिन हुई थी खोज
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करुणानिधि: 46 साल बाद बदला काला चश्मा, जर्मनी में नए चश्मे के लिए 40 दिन हुई थी खोज

तमिलनाडु की राजनीति के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल रहे एम करुणानिधि की खास पहचान उनका काला चश्मा था. उन्हें अपने इस चश्मे से इतना लगाव था कि उसे 46 साल बाद बदला.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: तमिलनाडु की राजनीति के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल रहे एम करुणानिधि की खास पहचान उनका काला चश्मा था. उन्हें अपने इस चश्मे से इतना लगाव था कि उसे 46 साल बाद बदला. उन्होंने 46 साल के बाद 2017 में अपना काला चश्मा बदला. नए चश्मे का फ्रेम पहले वाले से हल्का था. तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहने वाले करुणानिधि का काला चश्मा और पीली शाल उनकी पहचान बन गया था. 

  1. करुणानिधि की खास पहचान उनका काला चश्मा था. 
  2. उन्होंने अपना चश्मा 46 साल बाद बदला.
  3. नए चश्मे का फ्रेम पहले वाले से हल्का था.

जर्मनी से आया नया चश्मा
जब उन्होंने 2017 में अपना चश्मा बदला था, तब मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उनका चश्मा चेन्नई के विजया ऑप्टिक्स ने जर्मनी से इम्पोर्ट किया था. विजय ऑप्टिक्स को करुणानिधि के पसंद का चश्मा खोजने के लिए जर्मनी में 40 दिन तक खोज करनी पड़ी. तब जाकर ये चश्मा मिला. समाचार पत्र दि हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार विजया ऑप्टिक्स ने बताया कि करुणानिधि का पुराना चश्मा भारी और असुविधाजनक था. इसके बावजूद उन्हें अपना ये चश्मा बहुत पसंद था और वो इसे बदलना नहीं चाहते थे. डॉक्टरों की सलाह के बाद ही उन्होंने चश्मा बदलने के लिए अपनी सहमति दी.

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क्यों पहनते थे काला चश्मा 
करुणानिधि ने 1960 में काला चश्मा पहनना शुरू किया था, जब एक एक्सीडेंट में उनकी बाईं आंख खराब हो गई. करुणानिधि के मित्र और बाद में उनके सबसे तगड़े विरोधी बन गए एमडीआर भी काला चश्मा पहनते थे. कहा जाता है कि एमजीआर की मृत्यु के उनके काले चश्मे को उनके साथ ही सुपुर्दे खाक कर दिया गया था. इन दोनों नेताओं ने तमिलनाडु में काले चश्मे को एक फैशन स्टेटमेंट बना दिया था.

पसंद आया नया चश्मा 
हालांकि जब उन्होंने नया चश्मा पहना तो उन्हें ये चश्मा बेहद पसंद आया और उन्होंने माना की ये ज्यादा सुविधाजनक है. करुणानिधि अपने स्टाइल को लेकर बहुत सजग रहते थे. वो हर रोज दाढ़ी बनाते थे और कभी भी अपनी मनपसंद पीली शॉल ओढ़नी नहीं भूलते थे. 

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