लोकमान्य तिलक की 100 वीं पुण्यतिथि पर जानिए गांधीजी और तिलक के रिश्ते का अनोखा सच
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लोकमान्य तिलक की 100 वीं पुण्यतिथि पर जानिए गांधीजी और तिलक के रिश्ते का अनोखा सच

आपके लिए ये जानना जरूरी है कि गांधीजी के कांग्रेस और भारत में उदय से पहले तिलक ही सबसे बड़े नेता थे. कांग्रेस ने 1929-30 के अधिवेशन में पहली बार आधिकारिक रूप से आजादी की मांग की थी और अप्रत्यक्ष रुप से आजादी मांगने वाले तिलक सर्वप्रथम नेता थे, जिन्होंने ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया था.

फोटो साभार-इंटरनेट

नई दिल्ली: महात्मा गांधी (Mohan Das Karamchand Gandhi) जब साउथ अफ्रीका (South Africa) में थे, तो उनके आंदोलनों की गूंज लगातार भारत में भी चर्चा का विषय बन रही थी. गांधीजी भी कांग्रेस (Congress) के बारे में जानकारी लेते रहते थे. अक्सर भारत आते तो कोशिश करते कि ज्यादा से ज्यादा कांग्रेस के नेताओं से मिल सकें. उन्होंने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में तीन ऐसे ही नेताओं के बारे में लिखा. एक को कहा 'गंगा', दूसरे को कहा 'हिमालय' और तीसरे को 'महासागर'. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) ही वो तीसरे कांग्रेस नेता थे, जिनको उन्होंने ‘महासागर’ लिखा क्योंकि गांधीजी के लिए उनके मन की थाह जानना काफी मुश्किल था.

आपके लिए ये जानना जरूरी है कि गांधीजी के कांग्रेस और भारत में उदय से पहले तिलक ही सबसे बड़े नेता थे. कांग्रेस ने 1929-30 के अधिवेशन में पहली बार आधिकारिक रूप से आजादी की मांग की थी और अप्रत्यक्ष रुप से आजादी मांगने वाले तिलक सर्वप्रथम नेता थे, जिन्होंने ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया था.

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आज तिलक की 100वीं पुण्यतिथि है, ऐसे मौके पर उनसे और गांधीजी से जुड़ी ये जानकारी आपके लिए दिलचस्प होगी. गांधीजी ने तिलक के साथ अपनी जितनी मुलाकातों के बारे में लिखा है, उन सबसे ये लगता है कि कहीं ना कहीं उस वक्त बाल गंगाधर तिलक के विराट व्यक्तित्व से गांधीजी झिझकते या डरते थे. वो उनको आसान नहीं लगते थे. गांधीजी से पहले की कांग्रेस वैसे भी नरम दल और गरम दल में बंटी हुई थी. नरम दल के मुखिया गोपाल कृष्ण गोखले थे और गरम दल के लाल बाल पाल में से सबसे ज्यादा मुखर और दबंग लोकमान्य तिलक ही थे.

एक बार जब 1896 में गांधीजी भारत आए तो पहले पुणे पहुंचे, दरअसल उनको पता था कि कांग्रेस के दो मुख्य धड़े हैं, उनको दोनों से मिलना था. पुणे में तिलक भी थे और गोखले भी, गोखले से गांधीजी सहज थे, तभी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मान लिया था, बाद में हर बात मे उनकी ही सलाह मानते थे, गोखले को दक्षिण अफ्रीका भी बुलाया था. ये भी जान लीजिए कि कांग्रेस के ये सब दिग्गज नेता गांधीजी को इतनी तबज्जो इसलिए भी दे रहे थे क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के आंदोलनों की लगातार खबरें भारतीय अखबारों में भी छप रही थीं.

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इसी यात्रा के दौरान फीरोज शाह मेहता ने उनके लिए मुंबई में एक सभा रखी. इस तरह गांधीजी का देश में ये पहला सार्वजनिक भाषण था. इसके चलते कांग्रेस नेताओं में उनकी चर्चा हो गई. अब गांधीजी पूना पहुंचे, जो उन दिनों कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. गांधीजी पहले गरम दल के मुखिया लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से मिले. तिलक ने उनसे कहा, ‘’सब पक्षों की मदद लेने का आपका विचार बिलकुल ठीक है, आपके मामले में कोई मतभेद नहीं हो सकता.. मैं आपकी पूरी मदद करना चाहता हूं, आप प्रो. गोखले से मिलेंगे ही, मेरे पास जब भी आना चाहें निसंकोच आइए"

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गांधीजी ने इस मुलाकात के बारे में लिखा है कि उनसे मिलकर पता चला कि वो इतने लोकप्रिय क्यों हैं, उसके बाद गांधीजी गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने पहुंचे, वो फर्ग्युसन कॉलेज में मिले. गांधीजी ने अपनी बायोग्राफी ‘माई एक्सपेरीमेंट्स विद ट्रुथ’ में लिखा है कि उन्होंने पहली ही मुलाकात में मुझे अपना बना लिया. ऐसा लगा कि हम पहले भी मिल चुके हैं.

गांधीजी ने आगे लिखा है कि, ‘’सर फीरोजशाह मेहता मुझे हिमालय जैसे, लोकमान्य समुद्र जैसे और गोखले गंगा जैसे लगे. गंगा में मैं नहा सकता हूं. हिमालय पर चढ़ा नहीं जा सकता, समुद्र में डूबने का डर है. गंगा की गोद में तो खेला जा सकता था. उसमें डोंगियां लेकर सैर की जा सकती थी.‘

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इससे आप समझ सकते हैं कि तिलक के विराट व्यक्तित्व के आगे गांधीजी भी सहज नहीं थे, उसकी एक वजह ये भी थी कि जहां तिलक सीधे अंग्रेजों से लोहा लेना चाहते थे, तीन मोर्चों पर काम कर रहे थे, एक तरफ कांग्रेस में रहकर आंदोलन चला रहे थे जिसमें उनके अखबार ‘मराठा’ और ‘केसरी’ भी एक जरिये थे. दूसरी तरफ गणेश और शिवाजी उत्सव मनाने की परम्परा शुरू कर लोगों को जोड़कर राष्ट्र का स्वाभिमान जगा रहे थे. तीसरी तरफ गुप्त रूप से क्रांतिकारियों को मदद भी कर रहे थे. वीर सावरकर के उत्थान में बड़ी भूमिका तिलक की थी, उन्होने ही ‘इंडिया हाउस’ के संस्थापक श्यामजी कृष्ण वर्मा को कहकर सावरकर को ‘शिवाजी फेलोशिप’ पर लंदन भिजवाया था.

जब 1 अगस्त को असहयोग आंदोलन शुरू करने की पहले से तय तारीख (1 अगस्त 1920) को तिलक की मृत्यु की खबर आई तो आंदोलन स्थगित कर दिया गया और गांधीजी ने तिलक के नाम ‘तिलक स्वराज फंड’ का ऐलान किया, आंदोलन के लिए 1 करोड़ रुपये जुटाने के लक्ष्य के साथ.

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