दमोह: ऑपरेशन के बाद महिलाओं को नहीं मिला स्ट्रैचर, फ्लोर पर लेटने को हुई मजबूर
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दमोह: ऑपरेशन के बाद महिलाओं को नहीं मिला स्ट्रैचर, फ्लोर पर लेटने को हुई मजबूर

अस्पताल पहुंच रहे लोगों ने बताया कि वो सुबह सात बजे से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं और शाम 6 बजे उनका नंबर आ रहा है.

 

आरोप है कि टारगेट पूरा करने के लिए दवाखानों में बिना इंतजामात शिविर आयोजित किये जा रहे हैं.

दमोह: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में भले ही बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लाख दावे हो रहे हों, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. सरकारी अस्पतालों में चल रहे नसबंदी शिविरों का हाल बेहाल है. दमोह में ऑपरेशन के बाद महिलाओं को वॉर्ड में शिफ्ट करने के लिए स्ट्रैचर तक नसीब नहीं हो रहे हैं.

दरअसल, सरकार लोगों को जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. प्रदेश में इन दिनों नसबंदी शिविर चल रहे हैं. लेकिन, यहां व्यवस्थाओं का इतना बुरा हाल है कि महिलाओं को वॉर्ड में शिफ्ट करने के लिए ऑपरेशन थियेटर से परिजनों को सहारा देना पड़ रहा है.

चंद मिनटों पहले ऑपरेशन थियेटर से निकली महिलाओं को कायदे से स्ट्रैचर के जरिए वॉर्ड में शिफ्ट किया जाना चाहिए. लेकिन, दमोह के बटियागढ़ के सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन के बाद महिलाओं को मजबूरन परिजनों का सहारा लेकर पैदल चलना पड़ रहा है. लेकिन, अव्यवस्थाओं का आलम यहीं खत्म हो जाता तो ठीक होता. कड़ाके की ठंड में महिलाओं को बेड तक नसीब नहीं हो रहे हैं. उन्हें अस्पताल के गलियारे में ही लेटने को मजबूर होना पड़ रहा है.

गौरतलब है कि जहां महिलाएं लेटी हुई हैं, वहीं आवारा कुत्ते भी घूम रहे हैं. अस्पताल पहुंच रहे लोगों ने बताया कि वो सुबह सात बजे से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं और शाम 6 बजे उनका नंबर आ रहा है. इस दौरान, अस्पताल के फ्लोर पर ही लेटकर महिलाएं अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर हैं.

जानकारी के मुताबिक अव्यवस्थाओं का ये आलम एक सरकारी अस्पताल का नहीं बल्कि अमूमन हर जगह यही हाल है. पथरिया में सरकारी अस्पताल के बाहर सड़क पर महिलाओं को सहारा लेकर मजबूरन पैदल चलना पड़ा. अस्पताल प्रबंधन की ओर से स्ट्रैचर तक मुहैया नहीं हो पाया. आरोप है कि टारगेट पूरा करने के लिए दवाखानों में बिना इंतजामात शिविर आयोजित किये जा रहे हैं.

बताया गया कि एक शिविर में 50 महिलाओं का ऑपरेशन होने है. लेकिन आशा कार्यकर्ता ज्यादा महिलाओं को प्रोत्साहित करके यहां ले आई. ऑपरेशन में हो रही देरी की वजह भी पता लगी, नसबंदी शिविर एक सर्जन के जिम्मे है और उसे ही पचास ऑपरेशन करने पड़ रहे हैं. लिहाजा सुबह से शाम तक महिलाओं को इंतजार करना पड़ता है.

उधर, ब्लाक मेडिकल ऑफिसर ने दलील दी कि पचास से ज्यादा मरीज या महिलायें आ जाने से दिक्कते हो रही हैं. फिर भी वो व्यवस्था बना रहे हैं.

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