छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. इन 29 में से 11 सीटें बस्तर संभाग में ही हैं.
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रायपुरः छत्तीसगढ़ के बस्तर में भाजपा के दो दिवसीय चिंतन शिविर की शुरुआत कल यानी कि एक सितंबर से हो जाएगी. इसके लिए भाजपा के कई बड़े नेता, संगठन के लोग, सांसद, विधायक जुटेंगे. जिसके लिए बड़े पैमाने पर तैयारी की जा रही है. वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी जल्द ही छत्तीसगढ़ का दौरा करने वाले हैं. सीएम भूपेश बघेल का कहना है कि राहुल गांधी छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान बस्तर भी जाएंगे. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि बीजेपी और कांग्रेस बस्तर में इतना फोकस क्यों कर रही हैं? दरअसल इसकी वजह ये है कि ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता बस्तर से ही होकर गुजरता है. यही वजह है कि राज्य में विधानसभा चुनाव भले ही दूर हो लेकिन दोनों ही पार्टियां बस्तर में अपनी अपनी पकड़ बनाने में जुट गई हैं.
आदिवासी दबदबे वाला इलाका
बस्तर जोन आदिवासी बहुल इलाका है. इस संभाग में विधानसभा की 12 सीटें आती हैं. गौरतलब है कि इन 12 सीटों में से 11 आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. सिर्फ जगदलपुर ही सामान्य श्रेणी की सीट है. बस्तर संभाग में जो 12 सीटें हैं, उनमें जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोंटा, बस्तर, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर शामिल हैं.
छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी बहुल राज्य है, जिसकी 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. इन 29 में से 11 सीटें बस्तर संभाग में ही हैं. माना जाता है कि बस्तर संभाग के आदिवासी मतदाता एकजुट होकर किसी भी पार्टी को समर्थन देते हैं और पूरे राज्य में इसका असर दिखाई देता है. मतलब राज्य में आदिवासी मतदाता किसी पार्टी के साथ जाएगा, ऐसा माना जाता है कि वह बस्तर से ही तय होता है. यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए बस्तर बेहद अहम है.
बस्तर सत्ता की चाबी
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग सत्ता की चाबी माना जाता है. इसकी वजह ये है कि बीते कई चुनाव में देखा गया है कि जिस पार्टी ने बस्तर में जीत हासिल की, राज्य में उसी पार्टी की सरकार सत्ता पर काबिज हुई है. बता दें कि साल 1998 में कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई थी, उस समय कांग्रेस ने बस्तर में 11 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसी तरह साल 2003 विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आई तो उसने बस्तर में 8 सीटों पर जीत दर्ज की. 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से सत्ता हासिल की, उस वक्त भी भाजपा ने बस्तर में 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का बस्तर से सूपड़ा साफ हो गया और पार्टी सत्ता से बाहर हो गई.
भूपेश बघेल सरकार का फोकस भी बस्तर पर
बस्तर नक्सल प्रभावित इलाका है. ऐसे में यहां किए गए विकास कार्यों का बड़ा असर पड़ता है. भूपेश बघेल सरकार ने भी बस्तर पर काफी फोकस किया है. यही वजह है कि जब राहुल गांधी छत्तीसगढ़ का दौरा करेंगे तो सीएम उन्हें बस्तर ले जाने की बात भी कह रहे हैं. दरअसल भूपेश बघेल राहुल गांधी को बस्तर में किए जा रहे विकास कार्यों को दिखाकर विकास का एक मॉडल पेश करना चाहते हैं. राज्य में आदिवासी मतदाताओं की संख्या कुल जनसंख्या के करीब 30 फीसदी है. ऐसे में बस्तर में विकास कार्य कर इन 30 फीसदी मतदाताओं में से काफी मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जा सकता है.