छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर की अहम टिप्पणी, 'भारतीय संस्कृति के लिए कलंक है'
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर की अहम टिप्पणी, 'भारतीय संस्कृति के लिए कलंक है'

Chhattisgarh High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के मामले में कई अहम टिप्पणियां की हैं, पूरा मामला लिव इन रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुए बच्चे की कस्टडी को लेकर था. 

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की अहम टिप्पणियां

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस संजय एस अग्रवाल ने डिवीजन बेंच ने लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे के संरक्षण के मामले में कुछ अहम टिप्पणियां की हैं. हाईकोर्ट का कहना है 'भले ही समाज के कुछ वर्ग में लिव इन रिलेशनशिप का पालन किया जाता है, लेकिन यह पाश्चात्य अवधारणा है जो भारतीय रीति के विपरीत है. भारतीय संस्कृति में लिव इन रिलेशनशिप अभी कलंक के रूप में जारी है. क्योंकि एक विवाहित व्यक्ति के लिए लिव इन रिलेशनशिप से बाहर आना तो आसान रहता है, लेकिन इसके बाद उस इंसान की दशा दुखद होती है, इसलिए इस तरह के मामले में बच्चे को लेकर न्याय पालिका आंखें बंद नहीं कर सकती हैं.'

यह है पूरा मामला 

दरअसल, दंतेवाड़ा के रहने वाले शादीशुदा अब्दुल हमीद सिद्दिकी पिछले तीन सालों से एक हिंदू महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में था. 2021 में महिला ने अपना धर्म परिवर्तन किए बगैर अब्दुल से शादी कर ली थी, जबकि पहली पत्नी से अब्दुल के तीन बच्चे थे. इस दौरान हिंदू महिला ने 2021 अगस्त के महीने में एक बच्चे को जन्म दिया था. लेकिन अगस्त 2023 के महीने में महिला अपने बच्चे के साथ गायब हो गई थी. जिसके बाद अब्दुल ने बच्चे के संरक्षण को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. ऐसे में हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान माता-पिता बच्चे के साथ पेश हुए थे, जिसमें हाईकोर्ट ने यह अहम टिप्पणियां की हैं. 

दोनों के अपने-अपने तर्क 

इस दौरान हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों ने अपने-अपने तर्क दिए हैं. दरअसल, पहले अब्दुल हमीद ने निचली अदालत में याचिका दायर करते हुए कहा था कि वह बच्चे की देखभाल कर सकता है, इसलिए बच्चा उसे सौंपा जाए. लेकिन उसकी याचिका खारिच हो गई थी, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. याचिका में तर्क दिया था कि उसने मोहम्मडन लॉ के तहत ही दूसरी शादी की थी, इसलिए उसकी शादी वैध है इसलिए वह बच्चे का नेचुरल अभिभावक है. 

जबकि महिला ने तर्क दिया था कि हिंदु विवाह अधिनियम के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी वैध नहीं होती, इसलिए लिव इन रिलेशनशिप में रहने के दौरान पैदा हुए बच्चे पर उसका हक नहीं बनता है. कोर्ट ने इस मामले में कहा कि मुस्लिम ला में चार शादी की अनुमति होने के तर्क पर कहा इसके लिए सामान्य नियम हैस इसमें पहली पत्नी से तलाक होना चाहिये और यह मुस्लिम रीति को मानने वालों के बीच होना चाहिए, मामले में दूसरा पक्ष हिन्दू है और उसने अपना धर्म नहीं बदला है. ऐसे में मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया है. 

बिलासपुर से शैलेंद्र कुमार ठाकुर की रिपोर्ट

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