Cow Dung Paint: अब गोबर के पेंट से रंगे जाएंगे सरकारी भवन; छत्तीसगढ़ी महिलओं ने दी बड़ी कंपनियों को टक्कर
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Cow Dung Paint: अब गोबर के पेंट से रंगे जाएंगे सरकारी भवन; छत्तीसगढ़ी महिलओं ने दी बड़ी कंपनियों को टक्कर

Cow Dung Paint: छत्तीसगढ़ में इन दिनों गोबर से बन रहा पेंट मल्टी नेशनल कंपनियां के प्रोडक्ट को टक्कर दे रहा है. इतना ही नहीं इस पेंट की को अब राज्य सरकार ने सरकारी भवनों में उपयोग करने के आदेश दिए हैं. जानिए, कैसे होता है इसका निर्माण....

Cow Dung Paint: अब गोबर के पेंट से रंगे जाएंगे सरकारी भवन; छत्तीसगढ़ी महिलओं ने दी बड़ी कंपनियों को टक्कर

Cow Dung Paint: रायपुर। गांवों में लिपाई-पुताई के काम आने वाले गोबर से अब इमल्शन और डिस्टेंपर पेंट तैयार किए जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ की महिलाओं का बनाया गया पेंट मल्टी नेशनल कंपनियों को टक्कर दे रहा है. पेंट निर्माण में मल्टी नेशनल कंपनियों के एकाधिकार को गांवों की महिलाएं तोड़ रही हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे इस उच्च गुणवत्ता के पेंट को देखते हुए सभी शासकीय भवनों की पुताई कराने के निर्देश दिए हैं. लोक निर्माण विभाग द्वारा इसके लिए एसओआर भी जारी कर दिया गया है.

मल्टी नेशनल कंपनियां को टक्कर
राजधानी रायपुर के जरवाय गौठान, दुर्ग जिले के गांव लिटिया और कांकेर के सराधुननवागांव में गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने का कार्य शुरू किया गया है. पेंट निर्माण में अमूमन मल्टी नेशनल कंपनियां ही काबिज थीं, लेकिन अब ग्रामीण महिलाएं भी इस क्षेत्र में मजबूती से कदम रख चुकी हैं. गोबर से बनने वाला प्राकृतिक पेंट बिल्कुल मल्टी नेशनल कंपनियों के द्वारा तैयार किए गए पेंट जैसा है. इसकी गुणवत्ता उच्च स्तरीय है, यह पेंट एंटी बैक्टीरिया और एंटीफंगल होता है.

गावों में बढ़ा रहा रोजगार
गोबर से पेंट और वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर महिलाएं महात्मा गांधी जी के आत्मनिर्भर गांव की कल्पना को साकार कर रही हैं. इससे गांव के लोगों को रोजगार के साथ ही उनकी तरक्की के लिए नए-नए अवसरों का निर्माण हो रहा है. जरवाय गौठान में डिस्टेंपर, इमल्शन पेंट के साथ ही पुट्टी का भी निर्माण हो रहा है. इसकी बिक्री राजधानी रायपुर के सीजी मार्ट में की जा रही है. इसे जल्द ही विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध कराने की योजना है.

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बाजार के पेंट से सस्ता
यह पेंट पर्यावरण के अनुकूल भी है. गोबर से बने इस पेंट की कीमत बाजार में उपलब्ध प्रीमियम क्वालिटी के पेंट की तुलना में 30 से 40 फीसदी कम है. इमल्शन पेंट की कीमत 225 रूपए प्रति लीटर है. यह 1,2,4 और 10 लीटर के पैकेज में तैयार किया जा रहा है. साथ ही यह बड़ी कम्पनियों के पेंट की तरह करीब 4 हजार रंगों में भी उपलब्ध है. साथ ही पुट्टी डिस्टेंपर भी तैयार किया जा रहा है.
 
राष्ट्रीय स्तर की संस्था से प्रमाणित एवं गुणवत्तापूर्ण
यह पेंट भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय प्रशिक्षण शाला के द्वारा प्रमाणित भी किया गया है. साथ ही इसके विभिन्न प्रकार के गुण है. यह एन्टी बैक्टीरिया, एंटीफंगल, इको-फ्रेंडली, नॉन टॉक्सिक है. यह भी वैज्ञानिक संस्थान द्वारा प्रमाणित है. इस प्राकृतिक पेंट में हैवी मटेरियल का उपयोग नही किया गया है और यह नेचुरल थर्मल इन्सुलेटर है अर्थात् इसमें चार से पांच डिग्री तापमान कम करने की क्षमता भी है.

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रायपुर, दुर्ग और कांकेर के यूनिट में निर्माण शुरू
यह राजधानी के जरवाय गौठान के गोवर्धन क्षेत्र स्तरीय महिला स्व सहायता समूह द्वारा लक्ष्मी ऑर्गेनिक संस्थान के सहयोग से बनाई जा रही है. इस समय इस गौठान में स्थापित यूनिट द्वारा प्रतिदिन 2 हजार लीटर इमल्शन पेंट बनाने की क्षमता है. जिसे भविष्य में मांग अनुरूप 5 हजार लीटर तक वृद्धि की जा रही है. यहां पर पुट्टी और डिस्टेंपर भी बनाई जा रही है. इस पेंट से राजधानी के नगर निगम मुख्यालय की इमारत जोन क्रमांक 8 की इमारत में पोताई की गई है.

दुर्ग जिले के ग्राम लिटिया की ग्रामीण बहनें गांव में ही डिस्टेंपर निर्माण कर रही हैं. डिस्टेंपर यूनिट की निर्माण क्षमता हर दिन हजार लीटर तक की है. उन्होंने इसका विक्रय भी आरंभ कर दिया है.

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कांकेर जिले के चारामा विकासखण्ड के ग्राम सराधुननवागांव के गौठान में सागर महिला क्लस्टर समूह द्वारा गोबर से पेंट का निर्माण किया जा रहा है, जिससे महिला स्व-सहायता समूह को आमदनी भी हुई है. इस गौठान में अब तक 1400 लीटर पेंट का निर्माण किया जाकर 373 लीटर पेंट का विक्रय भी किया जा चुका है, जिससे स्व-सहायता समूह की महिलाओं को 75 हजार 525 रूपये की आमदनी हुई है.
 
गोबर से पेंट बनाने की प्रक्रिया
विशेषज्ञों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यह विधि दो दिन पुराने गोबर से होती है. सबसे पहले गोबर को एक मिक्सिंग टैंक में डाला जाता है और उसमें बराबर मात्रा में पानी डाला जाता है. पानी डालने के बाद मिक्सिंग टैंक में एजिटेटर लगा होता है यह एजिटेटर तब तक चलाते हैं जब तक गाय का गोबर बिल्कुल पेस्ट के समान ना हो जाए. इस पेस्ट को पंप के माध्यम से आगे टीडीआर मशीन में भेजा जाता है, जहां पर यह बिल्कुल बारीक पीसकर आगे ब्लीचिंग टैंक में भेजा जाता है. यहां इसे 100 डिग्री तक गर्म किया जाता है और इसमें हाइड्रोजन पराक्साइड एवं कास्टिक सोडा मिलाया जाता है जिससे गोबर का रंग बदल जाता है एवं उसकी सारी अशुद्धियां दूर हो जाती हैं.

गोबर से मिले उक्त स्लरी को पेंट बनाने के अगले चरण में बेस की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद इसे अन्य सामग्रियों पिगमेंट, स्क्सटेंडर, ब्लाइंडर, फिलर के साथ मिलाकर हाई स्पीड डिस प्रेशर मशीन में 3 से 4 घंटे तक अलग अलग आरपीएम में मिलाया जाता है. इसके पश्चात प्राकृतिक पेंट बनकर तैयार हो जाता है. यह अच्छी पैकेंजिंग की पश्चात बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध हो जाता है.

मुख्यमंत्री दे रहे हैं विशेष ध्यान
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप राज्य के 75 गौठानों में गोबर से प्राकृतिक पेंट एवं पुट्टी निर्माण की इकाईयां तेजी से स्थापित की जा रही हैं. इन इकाईयों के पूर्ण होने पर प्रतिदिन 50 लीटर तथा साल भर में 37 लाख 50 लीटर प्राकृतिक पेंट का उत्पादन होगा.

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