इस मदर्स डे पर पढ़िए उन मांओं की कहानी जो एक महिला को कराती हैं मां बनने का अहसास
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh1177203

इस मदर्स डे पर पढ़िए उन मांओं की कहानी जो एक महिला को कराती हैं मां बनने का अहसास

मदर्स डे आपको कुछ ऐसी मां की कहानी बताते हैं जो एक औरत को मां बनाने का एहसास कराती हैं. जो एक औरत के मां बनने के सुख में बराबर की भागीदार होती हैं.

इस मदर्स डे पर पढ़िए उन मांओं की कहानी जो एक महिला को कराती हैं मां बनने का अहसास

तृप्ति सोनी/रायपुर: मां....ये एक शब्द नहीं पूरा व्याकरण है जिसमें गुथे हैं ढेरो रिश्ते, अनगिनत अहसास और असीम धैर्य. इस मदर्स डे आपको कुछ ऐसी मां की कहानी बताते हैं जो एक औरत को मां बनाने का एहसास कराती हैं. जो एक औरत के मां बनने के सुख में बराबर की भागीदार होती हैं.

गीता नेताम गायनिक डिपार्टमेंट में दाई
नेपाली मूल की गीता नेताम जिनके माता-पिता उनके जन्म से पहले ही नेपाल से छत्तीसगढ़ आ गए थे वो ठेठ छत्तीसगढ़िया हैं और 22 सालों से हेल्थ सेक्टर में काम कर रही हैं. छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिसे ज्यादातर लोग मेकाहारा के नाम से ही जानते हैं, वहां के गायनिक डिपार्टमेंट के लेबर रुम में गीता पिछले 5 साल से दाई का काम कर रही हैं. 

अपने काम को लेकर गीता कहती हैं कि लेबर रुम में जब पहली बार आना हुआ तो मैं घबरा गई थी और मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, चारों तरफ चीखने-चिल्लाने की आवाजों से घबराहट होती थी तो दूसरे ही पल नन्हीं किलकारी की गूंज सूकून भरी खुशी देती थी. एक बच्चा दुनिया में कैसे आता है या यूं कहें कि बच्चे को दुनिया में कैसे लाया जाता है, गीता ने ये बहुत करीब से देखा है.

मां के पेट से बच्चे के बाहर आने तक वो 5 से 7 मिनट के मुश्किल पल, जितना गर्भवती के लिए चुनौतीपूर्ण होता है उससे ज्यादा डॉक्टर्स, दाई और नर्स के लिए होता है. दर्द से कराहती महिला के माथे पर प्यार भरा हाथ सहलाना हो, उसे सांत्वना देना हो या कभी-कभी उसे मां की तरह डांटना हो, ये सब काम गीता करती है ताकि वो महिला मां बन सके. 

गीता बताती हैं कि, कभी-कभी ऐसे केसेस होते हैं कि महिला का प्रसव कराना जैसे किसी युद्ध के मैदान में जंग लड़ना हो, ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार पेशेंट सहज नहीं होते वो दर्द में होते हैं तो दाई को अपशब्द भी कह देते हैं. हंसते हुए उन्‍होंने अपना किस्‍सा बताया कि एक बार तो एक पेशेंट ने उन्‍हें सीधे लात मार दी थी, कई बार तो ऐसा होता है कि लेबर पेन में पेशेंट एक जगह ठहरती नहीं, कभी जमीन पर ही लेट जाती हैं तो वहीं डिलवरी करानी पड़ती है. 

गीता आगे कहती हैं कि ज्यादातर पेशेंट को-ऑपरेट करते हैं उनकी हिम्मत बंधाने का काम दाई बखूबी करती है. बच्चे का जन्म हो तो खुशियां ही खुशियां, परिवार की खुशी देख मन गदगद हो जाता है जैसे हमारे घर में नन्हा मेहमान आया हो पर जब किसी बच्चे की डेथ हो जाती है तो मां का गम देखा नहीं जाता मैं भी एक मां हूं ना. मैंने यहां हजारों बच्चों को जन्म लेते देखा है, एक दिन में कम से कम 8 से 10 डिलवरी करवा लेते हैं, कभी ड्यूटी का टाइम खत्म हो जाए और किसी केस में लगे कि मेरी जरुरत है तो मैं रुक ही जाती हूं. बता दें कि गीता ने पांचवी तक की पढ़ाई की है भले ही उनके पास किताबों का अनुभव न हो लेकिन उनके पास एक औरत और एक मां का ऐसा अनुभव है जो कई पीढ़ियों को खुद में समेटे है।

बड़ी सिस्टर चिंता वर्मा की दोहरी भूमिका
चिंता वर्मा, एक मां है और मेकाहारा में आने वाली हर उस महिला की वो बराबरी से चिंता करती हैं जो मां बनने वाली है. 2 दशक से भी ज्यादा वक्त से मेडिकल के क्षेत्र में नर्स की भूमिका निभाती आ रही चिंता वर्मा मेकाहारा के लेबर डिपार्टमेंट में अब शिफ्ट इंचार्ज बन चुकी हैं. दो-ढाई साल से लेबर रुम में उनकी पोस्टिंग है वे स्टाफ का शिफ्ट डिसाइड करती हैं वे एक साथ दोहरी जिम्मेदारी निभाती नजर आती हैं. कई केसेस में डॉक्टर्स और दाई बड़ी सिस्टर यानी चिंता वर्मा की मौजूदगी को संजीवनी की तरह मानते हैं.
जब लेबर पेन से कराहती महिला के पास उनके परिवार का कोई नहीं होता तब बड़ी सिस्टर उस शोर और दर्द के बीच एक मां का आंचल बन जाती हैं. चिंता बताती हैं कि लेबर रुम में कई केसेस आते हैं. किसी महिला को परिवार वाले लेबर पेन में ऐसे ही छोड़कर चले जाते हैं, कभी रेप के केसेस आ जाते हैं, कभी कानूनी अनुमति से नाबालिग की डिलवरी के भी केसेस आ जाते हैं. बहुत तकलीफ होती है एक मां होकर मां का दर्द देखने में, लेकिन हम एक लक्ष्य के तहत काम करते हैं. जहां सबको खुशी देना है. 

लेबर रुम की सफाई बहुत चुनौतीपूर्ण
सरोज साहू लेबर रुम में सफाईकर्मी हैं. वे बताती हैं कि उन्हें यहां आए दो-ढ़ाई साल ही हुए हैं. पहले वे अलग-अलग वार्डों में क्लीनिंग का काम किया करती थीं, लेकिन लेबर रुम की सफाई बहुत चुनौतीपूर्ण होती है. पहली बार जब उन्‍हें फर्श पर फैले खून के थक्कों और बहे हुए खून की सफाई करनी थी तो मन सिहर उठा था पर अब आदत हो गयी है, अच्छा लगता है जब मैं उस काम में सहभागी बनती हूं जब कोई औरत मां बनती है क्योंकि मेरी जिम्मेदारी सफाई करके लेबर रुम को स्वच्छ बनाना है ताकि किसी मां और बच्चे को तकलीफ न हो.

Trending news