Tarkash Special: देवलोक के बराबर माना जाता है यह स्थान, इस वजह से हर साल आते हैं लाखों भक्त
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Tarkash Special: देवलोक के बराबर माना जाता है यह स्थान, इस वजह से हर साल आते हैं लाखों भक्त

CG News: कोंडागांव जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बड़े डोंगर की पहाड़ी पर मां दंतेश्वरी विराजमान हैं. मान्यता है कि बड़े डोंगर महाराजा पुरूषोत्तम देव के समय में ये बस्तर रियासत की राजधानी बनी, लेकिन इसका इतिहास इससे भी प्राचीन है.

Tarkash Special: देवलोक के बराबर माना जाता है यह स्थान, इस वजह से हर साल आते हैं लाखों भक्त

Chhattisgarh News: बस्तर दशहरा को कई बार दुनिया का सबसे लंबा त्यौहार भी कहा जाता है. माना जाता है कि ये अनोखा त्यौहार 13वीं शताब्दी में बस्तर के चौथे राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था. ये दशहरा उत्सव स्थानीय देवी दंतेश्वरी देवी के सम्मान में मनाया जाता है.

लोक मान्यताओं के अनुसार ये देवलोक है. जहां पहाड़ी पर माता ने महिषासुर का वध किया. बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का निवास स्थान प्रमुख रूप से दंतेवाड़ा के मंदिर में है. मान्यता ये भी है कि दशहरे का संचालन भी इसी मंदिर से शुरू हुआ था. चारों ओर पहाड़ियों और सुरम्य जंगलों के बीच स्थित बड़े डोंगर के हर पहाड़ पर देवी-देवताओं का वास है. कहा जाता है कि यहां 33 कोटि यानि 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं.

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यहां छिप गया था महिषासुर
कथाओं के मुताबिक, सतयुग में महिषासुर राक्षस ने इस देवलोक पर हमला कर त्राहि त्राहि मचा दी थी. तब देवताओं के आह्वान पर माता पार्वती देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुईं और दोनों के बीच संग्राम हुआ. माता के तेज से आहत महिषासुर जान बचाने के लिए घने जंगलों और पहाड़ों की ओर भागने लगा. उसके पीछे मां दुर्गा भी आ रही थी. भागते-भागते महिषासुर बड़े डोंगर के इसी पहाड़ के ऊपर पहुंचकर छिपने लगा. जहां माता ने उसका वध किया. 

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इस इन पहाड़ों में दफ्न है कई राज
इस संग्राम के निशान के रुप में शेर का पंजा, भैंस और माता के पद चिन्ह आज भी पहाड़ी की चट्टानों पर मौजूद हैं. जहां पूजा-अर्चना होती है. आज भी इन पहाड़ों में बड़ी-बड़ी गुफाओं का राज दफन है. जहां कोई नहीं जाता. कुछ गुफाओं को प्रशासन ने बंद करवाया है. यहां की पहाड़ी पर मौजूद प्राचीन मूर्तियां इस बात का प्रमाण है कि यहां पर पहले देवी का वास था.

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