जल संरक्षण के काम को लेकर अब चर्चाओं में देश का पहला सोलर विलेज बाचा
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जल संरक्षण के काम को लेकर अब चर्चाओं में देश का पहला सोलर विलेज बाचा

गांव का ये मॉडल इतना सुर्खियों में है कि अब आईआईटी बॉम्बे के 13 छात्र इस मॉडल को देख और परख रहे हैं.

13 विद्यार्थियों ने शुक्रवार को यहां आयोजित जल महोत्सव में शिरकत की.

इरशाद हिंदूस्तानी/बैतूल: सूरज की रोशनी से जिंदगी में कैसे उजियारा भरा जाता है. कैसे उसकी ऊर्जा इंसानी जिंदगी के लिए मददगार होती है और पानी को कैसे बचाकर कुदरत के साथ तालमेल बैठाया जाता है. इसकी बानगी मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में बैतूल (Betul) के गांव बाचा में देखी जा सकती है.

पूरे देश का इकलौता धुंआ रहित सोलर विलेज बनकर सुर्खियों में आया बैतूल का बाचा गांव एक बार फिर अपने जल संरक्षण के काम को लेकर लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा है. अब की बार यहां आदिवासी ग्रामीणों ने हर घर में जल संरक्षण के लिए सोख्ता गड्ढा बनाकर फिर देश दुनिया को पानी की कद्र करने की सीख दी है.

74 घरों के इस गांव में हर परिवार ने बारिश का पानी सहेजने के लिए अपने आंगन, बाड़ी में वाटर हार्वेस्टिंग की तर्ज पर सोख्ता गड्ढा बनाकर वर्षा जल को जमीन में भेजने की संरचनाएं तैयार की हैं. तो वहीं हर घर ने लकड़ी से जलने वाले चूल्हों को साइड कर सोलर पैनल के जरिये सौर ऊर्जा चलित धुंआ रहित चूल्हों को अपनी रसोई में जगह दे दी है.

गांव का ये मॉडल इतना सुर्खियों में है कि अब आईआईटी के 8 देशों के छात्र इस मॉडल को देख और परख रहे हैं. IIT बॉम्बे के जापान, मलेशिया, कजाकिस्तान, कोरिया, सिंगापुर, हुबेई और भारत सहित 8 देशों के 13 विद्यार्थियों ने शुक्रवार को यहां आयोजित जल महोत्सव में शिरकत की. साथ ही गांव पहुंचकर हर उस नवाचार को देखा जिसमें कुदरत के तोहफो को संजोने सहेजने के लिए इस गांव ने कामयाबी की इबारत लिखी है. इस दौरान विदेशी छात्रों ने इन प्रयासों को खूब सराहा.

साधारण सा दिखने वाला बैतूल का बाचा गांव दुनिया के नक्शे पर अब चमक रहा है. आधुनिक गांवों की कतार में सबसे आगे खड़े इस गांव में चूल्हा तो जलता है, लेकिन धुआं नहीं उठता, यहां के लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है और न ही जंगल से लकड़ी काटने की. क्योंकि, यहां हर घर में सोलर चूल्हा जलता है. महिलाएं भी खुश हैं कि अब न तो लकड़ी लाने के लिए जंगल जाना पड़ता है और न ही गैस या किरोसिन खत्म होने की चिंता सताती है.

ग्रामीणों ने यहां अपने गांव को खुद साफ सुथरा रोकने के लिए जगह जगह कूड़े दान लगा लिए हैं. ग्रामीण गांव के आसपास बहने वाले नदी नालों पर बोरीबन्धान कर गांव का पानी गांव में रोकने का बेहतर नमूना भी पेश कर रहे हैं. भारत भारती शिक्षा संस्थान के डायरेक्टर मोहन नागर इस गांव के लिए प्रेरणा बने हुए हैं. उन्ही की पहल के बाद आईआईटी मुम्बई ने इस गांव को धुंआ रहित बनाने, सोलर पैनल चूल्हों का सिस्टम तैयार करवाया था. नागर ने अब आसपास के ग्रामों में जल संरक्षण के लिए छोटी-छोटी जल संरचनाएं तैयार करने का बीड़ा उठाया है.

ग्रामीणों की यह पहल न केवल उनकी जिंदगी में खुशियां भर रही है. बल्कि ये दूसरे गांवों के लिए एक मिसाल बन गयी है. जाहिर है, अगर खुद को संवारने के प्रयास ईमानदारी से किये जायें तो तकदीर और तस्वीर बदलते देर नहीं लगती.

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