कहीं बर्बाद न हो जाए बेटे का साल, पिता ने 85 किमी चलाई साइकिल, 15 मिनट पहले पहुंचा दिया परीक्षा केंद्र
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कहीं बर्बाद न हो जाए बेटे का साल, पिता ने 85 किमी चलाई साइकिल, 15 मिनट पहले पहुंचा दिया परीक्षा केंद्र

शोभाराम ने बताया कि मंगलवार सुबह पेपर शुरू होने से मात्र 15 मिनट पहले 7:45 बजे ये परीक्षा केंद्र पहुंचे. बुधवार को सामाजिक विज्ञान का पेपर दिया है. परीक्षा पूरी होने तक ये दोनों यहीं रुके हैं. धार में ठहरने की व्यवस्था न होने के कारण तीन दिन का खाने का सामान भी अपने साथ लेकर आए हैं.

बेटे को परीक्षा दिलाने के लिए शोभाराम ने 85 किमी तक चलाई साइकिल

धार: मध्यप्रदेश के धार जिले से एक अच्छी खबर सामने है जहां एक मजदूर पिता अपने बच्चे को परीक्षा दिलाने के लिए 85 किलोमीटर साइकल चलाकर धार स्थित परीक्षा केंद्र पहुंचा दिया. इतना ही पिता ने बच्चे को 15 मिनट पहले परीक्षा केंद्र पहुंचाया.

दरअसल, प्रदेश में 'रुक जाना नहीं अभियान' के तहत 10वीं और 12वीं परीक्षा में असफल हुए छात्रों को एक और मौका दिया जा रहा है. मंगलवार को गणित का पेपर था. जिले के मनावर तहसील के रहने वाले शोभाराम के बेटे आशीष को 10वीं के तीन विषय की परीक्षा देनी थी, लेकिन परीक्षा केंद्र उसके घर से 85 किलोमीटर दूर था. कोरोना महामारी के चलते बसें भी बंद हैं. बेटे का साल बरबाद ना हो इसके लिए शोभाराम ने साइकल पर ही बेटे को लेकर निकल पड़े.

शोभाराम ने बताया कि मंगलवार सुबह पेपर शुरू होने से मात्र 15 मिनट पहले 7:45 बजे वो परीक्षा केंद्र पहुंच गए थे. बुधवार को सामाजिक विज्ञान का पेपर दिया है. परीक्षा पूरी होने तक ये दोनों यहीं रुके हैं. धार में ठहरने की व्यवस्था न होने के कारण तीन दिन का खाने का सामान भी अपने साथ लेकर आए हैं.

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मजदूर पिता का कहना है कि, ''मैं मजदूर हूं लेकिन बेटे को ये दिन नहीं देखने दूंगा. मैं मजदूरी करता हूं, लेकिन बेटे को अफसर बनाने का सपना देखा है और इसे हर कीमत पर पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं. ताकि बेटा और उसका परिवार अच्छा जीवन जी सके.'' शोभाराम ने बताया कि बेटा आशीष होनहार है और पढ़ाई में दिल-दिमाग लगाता है.

शोभाराम ने बताया कि कोरोना के कारण गांव में बच्चे की पढ़ाई नहीं हो पाई. जब परीक्षा थी तो गांव में शिक्षक ना होने के कारण ट्यूशन नहीं लगवा पाया. इसलिए बेटा तीन विषय में फेल हो गया. शोभाराम ने कहा, ''मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं, इसलिए कुछ नहीं कर पाया. ये योजना रुके हुए बच्चों को आगे बढ़ाने वाला कदम है और बेटा इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था.''

वहीं परीक्षार्थी आशीष का कहना है कि वह तीन विषयों में रुक गया था. अब वह इस योजना के तहत परीक्षा देकर पास होकर आने वाले समय में कलेक्टर बनना चाहता है.

इस मामले में धार कलेक्टर आलोक सिंह ने कहा कि उन्हें मीडिया के माध्यम से इस बात की जानकारी मिली है. अगर परीक्षार्थी के द्वारा बीआरसी को या शिक्षक में से किसी को बता दिया होता तो उसकी मदद की जाती. कलेक्टर ने कहा है कि अब प्रशासन द्वारा ऐसे विद्यार्थियों को चिह्नित कर उनकी मदद की जाएगी. कलेक्टर ने शोभाराम की सराहना करते हुए कहा कि पिता के द्वारा उठाया गया यह साहसिक कदम है, जिससे बाकी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए.

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