ZEE Madhya Pradesh Chhattisgarh के एडिटर दिलीप तिवारी ने केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ विभिन्न मुद्दों पर एक्सक्लूसिव बातचीत की. इस दौरान केन्द्रीय मंत्री ने बंगाल चुनाव, किसानों के मुद्दे, एसवाईएल का मुद्दा, राजस्थान सरकार से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी.
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नई दिल्लीः ZEE Madhya Pradesh Chhattisgarh के एडिटर दिलीप तिवारी ने केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ विभिन्न मुद्दों पर एक्सक्लूसिव बातचीत की. इस दौरान केन्द्रीय मंत्री ने बंगाल चुनाव, किसानों के मुद्दे, एसवाईएल का मुद्दा, राजस्थान सरकार से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी.
हिन्दुस्तान हो, दुनिया के कई मुल्क हों पानी के लिए युद्ध होते हैं. लेकिन एक तरह का पानी वो भी होता है कि पॉलिटिक्स में जो पॉवर होता है, वो भी अपने आप में कहीं वर्चस्व की लड़ाई चलती है. एक बडी लड़ाई इस समय चल रही है, केंद्र के सामने चुनौती है, विपक्षी एकजुट हो गए हैं. किसानों की लड़ाई. कल साथ में लंगर खाया, किसानों की चाय आपके नेताओं ने पी, चाहे वो केंद्रीय कृषि मंत्री हों या केंद्रीय रेल मंत्री हों या बाकी आपके जो नेता हैं. आपको क्या लगता है कि किसानों के मामले में सरकार से कहीं चूक हो गई, या सरकार किसानों का उतना भरोसा नहीं जीत पाई जितना उसको जीत लेना चाहिए था?
देखिए मैं इस बात को सिरे से खारिज करता हूं कि सरकार से कहीं चूक हुई है. ये जो तीनों कृषि कानूनों को लेकर इस तरह की स्थिति पैदा की जा रही है, इन तीन कानूनों को केवल इसी दायरे में रखकर आप नहीं देख सकते. ये पूरी उस श्रृंखला का हिस्सा है, जिसे कृषि क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन के लिए 2014 से ही माननीय मोदी जी की सरकार ने शुरू किया था. और यदि इसका मूल आधार कहीं है, इन सारे फैसलों का, चाहे वो कृषि क्षेत्र की तरफ देखने का नजरिया बदलना हो, प्रोडक्शन सेंटर के एप्रोच से प्रॉफिट सेंटर के एप्रोच तक खेती को ले जाना हो, खेती को लाभकारी बनाना हो, इन सबका आधार डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट जिसे नेशनल फार्मर पॉलिसी की दर्जा दिया गया है, उसकी सारी सिफारिशों पर आधारित है.
डॉ. स्वामीनाथन साहब की रिपोर्ट को लागू करने के लिए किसानों के हर एक आंदोलन में आवाज उठाई गई है. उसमें जो मूल बिंदू थे, अगर मैं 6 या 7 मेन पिलर्स हैं उनकी बात करूं तो पहला विषय था लैंड रिफॉर्म का, दूसरा विषय था सिंचिंत भूमि का रकबा बढ़ना चाहिए, तीसरा विषय था फ्री फ्लो ऑफ एग्रीकल्चर क्रेडिट होना चाहिए. चौथा विषय था खाद बीज की आपूर्ति सुनिश्चित हो. पांचवां विषय था इंवेस्टमेंट इंटू एग्रीकल्चर बढ़ना चाहिए, छठा विषय था कि कृषि को लाभकारी बनाने के लिए किसान की फार्म इनकम पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता है और इसके लिए एलाइड सेक्टर्स को चाहे पशुपालन होगा, चाहे मधुमक्खी पालन होगा, चाहे मछली पालन होगा, चाहे पेड़ लगाने का होगा, हार्टीकल्चर डेवलेपमेंट का होगा, इनको मजबूती प्रदान करने, प्रमोट करने की आवश्यकता है. सातवां विषय था कि पोस्ट हार्वेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में डेवलपमेंट होना चाहिए, उस पर ध्यान देना चाहिए.
आठवां विषय था कि एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस का एक रोबस्ट मैकेनिज्म देश में होना चाहिए. नौवां विषय था कि मार्केट रिफॉर्म्स होने चाहिए और दसवां विषय था कि एमएसपी लागत का डेढ़ गुना मिलना ही चाहिए, 50 प्रतिशत जोड़कर मिलना चाहिए. आज जितनी विपक्षी पार्टियां या तथाकथित राजनीतिक दल इस बात का विरोध कर रहे हैं, मैं पूछना चाहता हूं कि 2006 में स्वामीनाथन साहब ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी, तबसे लेकर 2014 तक उनका शासन था, उन्होंने उपरोक्त कितने विषयों पर क्या काम किया था? और दूसरी तरफ मोदी जी की सरकार है जो 2014 से लेकर आज तक इन सारे विषयों पर स्वामीनाथन साहब की रिपोर्ट की मंशा के अनुरूप जितनी सिफारिशें थीं उन सब पर हमने काम किया है. उनकी हर एक सिफारिश पर काम करने के क्रम में अब बारी आई है. जब इन तीन कानूनों के जरिए मार्केट रिफॉर्म्स किए गए. आज जितनी पॉलिटिकल पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं, आप उठाकर देख लीजिए कि उन्होंने हमेशा ही इन सारी सिफारिशों को लागू किया जाए इसके लिए कहीं न कहीं लिखित-अलिखित तौर पर भाषणों में सब जगह पर की है.
लेकिन आज तो वो इसका फायदा उठा रहे हैं, कह रहे हैं कि जो मोदी सरकार है भले ही साल में किसानों के खाते में एक रकम डालती है, उसके जरिए अपना आधार भी मजबूत किया है. लेकिन आज चाहे आम आदमी पार्टी हो, चाहे आपके सहयोगी दल रहे हों, शिअद अकाली दल के बादल, वो बैठे हुए हैं, कांग्रेस बैठी हुई है या और भी दल हैं जो आपके विरोध में हैं, वो सब कहते हैं कि मौजूदा सरकार किसानों की बात नहीं सुन रही है, उद्योगपतियों की बात सुन रही है, वो किसानों की जमीनें हड़प लेंगे.
देखिए जिन पॉलिटिकल पार्टीज का आपने नाम लिया, मैंने बहुत सुलझे हुए शब्दों में यह कहा था कि ऐसी पॉलिटिकल पार्टियां जो हमेशा इसकी मांग करती थीं वही आज हो जाने पर इसका विरोध कर रही हैं. यू टर्न किया है. मैं इससे आगे जाकर के बात करना चाहता हूं, ऐसी सारी पॉलिटिकल पार्टियां जिनको जनता ने लोकतंत्र के समर में नकार दिया है. या जिनकी लोकतांत्रिक जमीन खिसकती जा रही है. वो सारी पॉलिटिकल पार्टियां नॉन इशू को इशू बना करके, किसान के कंधे पर बंदूक रखकर के अपना लक्ष्य साधना चाहती हैं. अपने हितकांक्षाओं की पूर्ति करना चाहती हैं. राजनीतिक जमीन को वापस हरा करने के लिए किसान के कंधे का प्रयोग किया जा रहा है. और ये कोई नया विषय नहीं है. कांग्रेस पार्टी ने तो ऐसे नॉन इशू को इशू बनाकर उसके हिसाब से समाज को बांटना, मजहब को बांटना और इसके जरिए अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने को परिपाटी सी बना ली है.
चाहे अनुच्छेद 370 के समय के आंदोलन को देख लीजिए, चाहे सीएए के समय उनकी भूमिका को देख लीजिए और अभी कृषि कानूनों को लेकर देख लीजिए. नॉन इशू को इशू बनाना. सीएए में प्रावधान ये था कि जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से जो राजनीतिक संरक्षण में पीड़ित होकर या सत्ता के संरक्षण में पीड़ित होकर आए हैं उनको नागरिकता कानूनों में एक समय बाद ढील दी गई थी. उसको लेकर कैसा माहौल देश में खड़ा किया गया था. यही सारे लोग, यही वामपंथी लोग यही कांग्रेस के लोग, इनके साथ में आप जिनकी बात कर रहे हैं, आम आदमी पार्टी, इन सबने मिलकर एक धर्म विशेष के लोगों को देश से बाहर भेजने का षडयंत्र बताकर शाहीन बाग जैसा आंदोलन देशभर में खड़ा करने की कोशिश की. ठीक वैसा ही प्रयास अभी हो रहा है. झूठ को पैदा करना, पैदा करके उसे खड़ा करना, खड़ा करके उसे चलाने और दौड़ाने का प्रयास करना. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि वो इसमें सफल हो पाएंगे.
मंत्री जी एक और जो चिंता की बात है वो ये है कि किसान आंदोलन के दौरान पंजाब में खासतौर पर मोबाइल इंफ्रा से जुड़े हुए, मोबाइल के करीब 1600 टॉवर्स को नुकसान पहुंचाया गया. किसानों का ये आरोप है कि ये सरकार बड़े उद्योगपतियों को इन जमीनों का, एक तरह से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जब आएगी तो बड़े उद्योगपति जमीनों को हड़प लेंगे. ये किसानों का डर है. लेकिन प्रधानमंत्री ने अपील की है कि इंफ्रास्ट्रक्चर को जो नुकसान पहुंचाया जा रहा है, सरकारी संपत्ति को जो क्षति पहुंचाई जा रही है वो चिंता का विषय है.
ये दुर्भाग्यपूर्ण है. हम सब जानते हैं कि किसान आंदोलन के पीछे कौन लोग हैं, कौन सी ताकते हैं, पंजाब में कौन कौन सी ताकते हैं? जो उनके साथ में खड़ी हैं. मैं याद दिलाना चाहता हूं कैप्टन अमरिंदर सिंह का बयान जो उन्होंने ट्वीट करके लिखा था, 2013 के साल में कि अगर अकाली दल ने उनके द्वारा लिए गए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का फैसला नहीं बदला होता तो रिलायंस, जिसके टॉवर को आज तोड़ा जा रहा है, क्षति पहुंचाया जा रहा है, उन्होंने जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की होती उससे 3 लाख किसानों की जिंदगी बदल जाती. जब वो करें तो ठीक, और जब मोदी जी की सरकार कोई निर्णय ले तो उसे गलत ठहराना, जैसा मैंने कहा कि ये लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी चुनावी सरजमीं को हरा करने का प्रयास है.
जहां तक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सवाल है मैं एक बार आपके सामने खुलासा करना चाहता हूं. देखिए देश में अनेक स्थानों पर किसी एश्योर्ड प्राइस पर किसान द्वारा खेती करना, किसी प्रोसेसर द्वारा दी गई एश्योर्ड प्राइस पर या किसी एक्सपोर्टर के द्वारा दी गई एश्योर्ड प्राइस पर, मैं अनुभव के आधार पर बता सकता हूं, मेरे एक परिचित हैं मुझे बताया गया था, जब मैं कृषि मंत्री था तब मेरा उनसे परिचय हुआ. वो अश्वगंधा रूट्स का एब्सट्रेक्ट निकाल करके उसको एक्सपोर्ट करते हैं. लगभग 4000 फार्मर्स उनके लिए उनकी क्वालिटी पर अश्वगंधा उगाते हैं. जो उनके लिए उगाते हैं वो उसके लिए एश्योर्ड प्राइस उन्हें देते हैं. और वो ये दावा करते हैं कि कोई भी उनका वेंडर दो पहिया वाहन में नहीं घूमता, सब चार पहिया वाहन में घूमते हैं. मैं ऐसे परिवार को भी देश में जानता हूं जो जैपनीज मार्केट के लिए सब्जियां उगाते हैं. अपने खेत में भी उगाते हैं और उनके आस पास के 200 से 250 फार्मर्स उनके लिए उगाते हैं. उनको वो एश्योर्ड प्राइस देते हैं. ऐेसे अनेक उदाहरण देशभर में ढूंढे जा सकते हैं.
आने वाले समय में हमें अपने देश में अगर प्रोसेसिंग कैपेसिटीज बढ़ानी है तो देश की सरकार ने फार्मर प्रोड्यूस ऑर्गेनाइजेशन के माध्यम से या अन्य किसी माध्यम से भी इस तरह के कि हम किसी एक पर्टिक्यूलर मार्केट के लिए, एक कमोडिटी की खेती करें, इस पर बल देने का प्रयास किया है. लेकिन इसको लेकर कि भविष्य में किसान को किसी तरह का कोई नुकसान न होने पाए, इसको संरक्षित करने के लिए, किसान को ताकतवर बनाने के लिए यह कानून बनाया गया. अब इसको लेकर के कितनी तरह की भ्रांतियां फैलाई गईं. पहले तो यह किसान पर निर्भर करता है कि वह कॉन्ट्रैक्ट साइन करना चाहता है या नहीं. अगर वह कॉन्ट्रैक्ट साइन करता है तो उसे इस कानून में अनेक तरह से सुरक्षित करने के उपाय किए गए हैं. एक विषय ये है जिसको लेकर भ्रांति फैलाई जा रही है कि उसकी जमीन चली जाएगी. तो माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो उस दिन उल्लेख करते हुए कहा था कि अगर कोई दूध का कॉन्ट्रैक्ट करता है तो उसकी भैंस को कोई कैसे लेकर के जा सकता है? इस कानून में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि किसान की जमीन के साथ किसी तरह का कॉन्ट्रैक्ट नहीं किया जा सकेगा. अब उसको लेकर के बेजां जो है भ्रांति पैदा करके, लोगों को भड़काने का प्रयास किया जा रहा है. मुझे लगता है कि लोग इस विषय को ठीक से समझते भी हैं और कुछ लोग जानबूझकर के अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्हें उल्टा पढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं.
शेखावत साहब जैसा आपने कहा कि दूध का कॉन्ट्रैक्ट किया तो भैंस कैसे लेकर जाएगा. लेकिन बयान इस तरह के भी आए कि जो आंदोलन में शरीक लोग हैं उनको खालिस्तानी तक कहा गया कि कुछ लोग जो हैं वे खालिस्तानी संगठन जो हैं उनको सपोर्ट कर रहे हैं, फंड भी कर रहे हैं. एक बयान ये भी आया, कांग्रेस के जो सांसद हैं रवनीत सिंह बिट्टू उन्होंने कहा कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो पंजाब में लाशें बिछा दी जाएंगी. तो जब हम फार्मर्स की बात कर रहे हैं, 6 दौर की बातचीत हो गई है. एक संकेत मिला है कि 4 जनवरी को होने वाली अगली बातचीत में कुछ रास्ता निकल सकता है. मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आखिरकार यह इतना लंबा खिंच क्यों रहा है मामला? एमएसपी की गारंटी वो चाहते हैं, ये कानून में पहले नहीं है.
देखिए मैंने अभी अभी अपनी बातचीत में कहा कि ये इसलिए खिंच रहा है क्योंकि कुछ लोग अपनी राजनीतिक जमीन को तलाशने के लिए इसको खींचने का प्रयास कर रहे हैं. जानबूझकर इसको आगे बढ़ाया जा रहा है. आपने रवनीत सिंह बिट्टू जी का उल्लेख किया, मुझे याद है लोकसभा में उन्होंने इस बिल पर चर्चा के दौरान जो वक्तव्य दिया था, उन्होंने कहा था 10 साल तक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो जाएगा, 10 साल बाद उसका इम्प्लिमेंट खत्म हो जाएगा, उसका ट्रैक्टर नहीं रहेगा वो खेती कैसे करेगा? मैंने उस दिन भी बहस खत्म होने के बाद में उनसे कहा था कि मित्र कानून को ठीक से पढ़ लिया होता तो शायद आप यह बयान नहीं देते. कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कहीं भी ये नहीं कहता है कि खेती किसान नहीं करेगा. खेती तो किसान को ही करनी है. उसी को करके, अपनी उपज उगा करके तय करना है कि मंडी में बेचना है या व्यापारी को बेचना है या उसकी जगह प्रोसेसर को बेचना है. आज एक फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन बनता है, 500 फार्मर्स इकट्ठा होकर तय कर लेते हैं कि हम इकोनॉमी ऑफ स्केल पर काम करेंगे. और वो आपस में एक कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं, एफपीओ के साथ ही किसान तय कर ले कि हम अमुख चीज उगाएंगे और इस भाव पर खरीदी जाएगी, इसमें कहां अंबानी और अडानी आ गए? कहां उसमें कॉर्पोरेट घराने आकर के खेती करने लगे? मैं फिर एक बार कहूंगा कि इस तरह की धमकी देने वाले लोग या इस तरह की बातें करने वाले लोग, ये बेजा अपने हितों को साधने के लिए किसान को बरगलाने का, गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं और लगातार प्रयास कर रहे हैं.
एक और बड़ी चुनौती जो आपके मंत्रालय से जुड़ी है कि पंजाब और हरियाणा में SYL का विवाद है. हरियाणा का आरोप है कि पंजाब ने उसका हिस्सा या हक मार कर रखा हुआ है और यह हमको मिलना चाहिए, इस पर आप क्या कहेंगे?
देखिए यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए मुझे लगता है कि इस पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, लेकिन फिर भी मैं जानकारी के लिए बता दूं कि सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश किया था कि इसे भारत सरकार को सचिव स्तर पर वार्ता करके सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. सचिव स्तर पर वार्ता भी हुई लेकिन रास्ता नहीं निकल पाया. सुप्रीम कोर्ट ने दूसरा आदेश दिया कि भारत सरकार के जलशक्ति मंत्री दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकर चर्चा करें. हमने 18 अगस्त 2020 को दोनों मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकर इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की.
उन्होंने कहा- कैप्टन अमरिंदर सिंह जी ने इस बात का भरोसा दिया था कि आगामी 7-8 दिन में हम लोग साथ बैठकर इस पर विचार करेंगे. मैंने उनसे उस दिन भी निवेदन किया था कि पानी का कोई पैमाना नहीं हो सकता. प्रकृति प्रदत्त चीज है, हर साल कितना पानी आएगा इसका कोई पैमाना नहीं हो सकता. किसी साल 20 BCM पानी आता है, कभी 16 BCM पानी आता है, कभी 14 हो सकता है और कभी 12 भी हो सकता है. कभी शायद उससे भी कम हो जाए.
केंद्रीय मंत्री ने कहा- प्रोरिटी बेसिस पर जिसका जितना हिस्सा है उसे उतना मिलता रहेगा लेकिन इसकी वजह से हमें इंफ्रास्ट्रक्चर को नहीं रोकना चाहिए. कम से कम इंफ्रास्ट्रक्चर बन जाए जब ज्यादा पानी होगा तो हम ट्रांसफर तो कर पाएंगे या तो समुद्र में बह कर जाएगा या पाकिस्तान बहकर जाएगा. दोनों परिस्थितियों को हम बदल सकते हैं मुझे कैप्टन अमरिंदर सिंह जी द्वारा भरोसा दिलाया गया था कि वह हरियाणा के मुख्यमंत्री से बैठकर चर्चा करेंगेदुर्भाग्य से ठीक उसके बाद मुझे और हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर जी को कोरोना हो गया था लेकिन अगस्त से लेकर आज तक कैप्टन अमरिंदर सिंह जी ने कोई पहल नहीं की, बात आगे नहीं बढ़ी.
आपकी पार्टी बंगाल में बड़ा दांव लगा रही हैं, गृहमंत्री और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं. आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा वहां जा चुके हैं, आपको भी पार्टी ने जिम्मेदारी दी है. 5 लोकसभा और तकरीबन 35 विधानसभा सीटें हैं. पश्चिम बंगाल में जो हालात हैं, आपको लगता है कि सत्ता की फसल काटने का समय आ गया है?
देखिए, बंगाल में कम्युनिस्टों के 34-35 साल के शासन के बाद, जिस तरह का गुंडाराज वहां था, उसे बदलने की अपेक्षा थी, कि शायद हम इससे बच जाएंगे, इसी अपेक्षा के साथ, बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस को मौका दिया था. मां, माटी और मानुष का नारा देकर वह सत्ता में आई थीं, लेकिन आज अगर बंगाल में जाकर धरातल पर स्थिति को देखा जाए तो न बंगाल की मां-बहनों के साथ न्याय हुआ, न बंगाल की माटी के साथ न्याय हुआ, न ही बंगाल के भद्र पुरुष के साथ ही कोई न्याय हो पाया.
भ्रष्टाचार का राजनीतिकरण पिछले 10 साल में जो टीएमसी की सरकार में हुआ है, राजनीति का अपराधीकरण, जो परंपरा कम्युनिस्ट सरकार में थी, उसे और ऊंचाई पर ममता दीदी की सरकार लेकर गई है. उससे भी बड़ा विषय यह है कि जिस तरह से प्रशासनिक व्यवस्था का राजनीतिकरण हुआ है ये तीनों ही दोष अब बंगाल की जनता समझ चुकी है. इन सबसे उकता चुकी है. बंगाल की जनता अबकी बार बड़े परिवर्तन का मानस बना चुकी है. मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि भारतीय जनता पार्टी एक ऐतिहासिक बहुमत के साथ बंगाल में सरकार बनाएगी. हम वहां 200 के पार जाएंगे.
लेकिन शेखावत साहब, जहां तक मैं बात करूं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की, वह कहती हैं कि कैलाश विजयवर्गीय जो आपकी पार्टी के महासचिव हैं, वहां के इंचार्ज हैं पार्टी के, कहती हैं कि ये गुंडों के साथ गुंडों की फौज लेकर आए हैं. गुंडागर्दी भाजपा ने शुरू की. उनकी दूसरी टिप्पणी है कि गवर्नर राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार कर रहे हैं. तीसरा ये कि वहां कि जो लोकल ब्यूरोक्रेसी है, उसे केंद्र सरकार अपने इशारों पर नचाना चाहती है? अगर वे नहीं मानें तो CBI, ED और IT उनके पीछे लग जाती है.
भारतीय जनता पार्टी के 400 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की पिछले 10 साल में हत्या हुई है. हजारों कार्यकर्ताओं के घर-बार तोड़ दिए गए. हजारों-हजार कार्यकर्ताओं को निरापराध जेलों में ठूंसा गया. पुलिस कस्टडी में यातनाएं दी गईं. सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं के साथ आपत्तिजनक व्यवहार हुआ. उनको पीटा गया, उनके हाथ-पैर तोड़े गए. इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद क्या ममता जी को ये सब टिप्पणियां करने का अधिकार शेष है. अपने गिरेबां में झांककर देखें, अपने व्यवहार में झांककर देखें. बंगाल में जिस तरह की अराजकता की स्थिति है, जिस तरह का भय-भूख और भ्रष्टाचार का शासन है, जिस तरह का डर पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है, धरातल पर जाकर देखिए जनता उस डर के माहौल से निकलने के लिए कितना छटपटा रही है. मुझे लगता है कि ये सब विषय जो हैं, अपनी विफलताओं और अपनी क्रूरताओं से ध्यान हटाने के लिए ममता जी द्वारा खड़े किए जा रहे हैं.
लेकिन ममता तो चुनौती दे रही हैं, कहती हैं कि आप सपने देख रहे हो सरकार बनाने के. बंगाल में 30 सीटें जीतकर दिखा दो, ये चुनौती है उनकी.
अभी चार महीने शेष हैं. ये छटपटाहट अपने-आप में दिखाती है, उनका धरातल समाप्त हो गया है.
लेकिन शेखावत साहब, टीएमसी के जिन लोगों को आपकी पार्टी भ्रष्ट कहती थी, गुंडा कहती थी. वह नेता कई मामलों में फंसे हुए हैं. उनपर ED, इनकम टैक्स और CBI के मामले दर्ज हैं, वे सब आपकी पार्टी में आ गए तो क्या पाक साफ हो जाएंगे?
पहले, इसकी लगता है कि एक बार विस्तृत जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए कि हमारे साथ कौन लोग आए हैं? और उनपर क्या विषय पेंडिंग हैं और ऐसे कितने लोग हैं जिनके ऊपर वहां मामले पेंडिंग हैं. ये दोहरी नजर से मुझे लगता है कि देखने और कहने की आदत को बदलना पड़ेगा.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और गवर्नर के बीच जो टकराव है, ममता कहती हैं, वह केंद्र के इशारे पर उनकी सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं. आपकी मुलाकात भी पिछले दौरे पर गवर्नर से हुई थी. ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति को पत्र लिख गवर्नर को हटाने की मांग की है पश्चिम बंगाल से. क्या कहना चाहेंगे?
देखिए गवर्नर संवैधानिक पद है और राज्य के हालात पर नजर रखना उनका संवैधानिक कर्त्तव्य है. बंगाल में जैसा कि मैंने कहा, जिस अराजकता की स्थिति बनी हुई है, बंगाल में जिस तरह का लॉलेसनेस (खराब कानून व्यवस्था) है, मुझे लगता है कि गवर्नर अपना संवैधानिक कर्त्तव्य निभा रहे हैं, उसको लेकर इस तरह की अमर्यादित टिप्पणियां करना, इस तरह का बातें करना, यह अपने आप में उस बौखलाहट को दर्शाता है कि ममता बनर्जी की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है.
बंगाल में आपके मंत्रालय से जुड़ी कई योजनाएं हैं, आप फरक्का बैराज भी गए थे, आपने वहां पर कहा कि ममता सरकार ने बंगाल के चार करोड़ लोगों को केंद्र की 80 योजनाओं से वंचित रखा है, लाभ नहीं लेने दे रही हैं. सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक द्वेष के चलते?
बिल्कुल! मैं आपको उससे भी आगे ले जाना चाहता हूं. आप शासन व्यवस्था की बात कर रहे हैं. बंगाल में फरक्का बैराज प्रोजेक्ट है, भारत सरकार का प्रोजेक्ट है. मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं बंगाल में लॉलेसनेस की, जिसकी मैंने अभी चर्चा की है. 2500 मकान वहां कॉलोनी में भारत सरकार के बने हुए हैं. उनमें 1600 से ज्यादा मकानों में अवैध रूप से अतिक्रमण करके लोग रहते हैं. कब्जा किया है और गुंडागर्दी के दम पर कब्जा किया है. धमकाकर हमारे अधिकारियों को, उनका घर खाली कराकर कब्जा किया है. जब हमारे जनरल मैनेजर या अधिकारी पुलिस में शिकायत कराने जाते हैं तो इसको असंज्ञेय अपराध मानकर रोजनामचे में दर्ज कर पुलिस उन्हें कागज पकड़ा देती है.
मैं पूछना चाहता हूं कि भारत सरकार की संपत्ति की रक्षा का दायित्व क्या वहां के प्रशासन का नहीं है? क्या भारत सरकार की संपत्ति पर अपने आपराधिक तत्वों के जरिए कब्जा कराने का उन्होंने ठेका ले रखा है? मैं फिर एक बार कहना चाहता हूं कि बंगाल के 4 करोड़ लोगों को महरूम किया गया है केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं से. अभी पिछली 25 तारीख को पीएम मोदी ने एक बटन दबाया और किसान सम्मान निधि के तहत देश के 9 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 18 करोड़ रुपये ट्रांसफर हो गए. बंगाल के 70 लाख किसान भी इसके पात्र हैं. मैं पूछना चाहता हूं क्यों बंगाल के किसान के मुंह का निवाला छीना जा रहा है, क्यों उसे 2000 रुपये से महरूम किया जा रहा है.
बंगाल के 70 लाख किसानों के 1400 करोड़ रुपये होते हैं, अगर पिछली चारों किश्तों को जोड़ दिया जाए तो 5600 करोड़ रुपये किसानों के खाते में या उनके घर में जाने से क्यों उन्हें महरूम किया गया. गरीब के बूढ़े मां-बाप के इलाज के लिए, बीमार पत्नी, बच्चों और खुद के इलाज के लिए आयुष्मान भारत योजना, दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सा योजना प्रधानमंत्री मोदी ने प्रारंभ की. किस कारण से बंगाल के लोगों को इससे महरूम रखा गया है? इन सब विषयों पर हमको विचार करना पड़ेगा, देखना पड़ेगा, बंगाल की जनता निश्चित रूप से इन सब विषयों को देख रही है और इसीलिए सत्ता परिवर्तन का मानस बना चुकी है.
लेकिन एक तरफ ममता बनर्जी का चेहरा है और आपकी पार्टी में प्रधानमंत्री चेहरा हैं. स्थानीय स्तर पर आपके पास कोई नेता है? जिसका चेहरा आप आगे करेंगे? या आपकी पार्टी कहती है कि हम संगठन से लड़ेंगे, जब सरकार आएगी तो तय कर लेंगे.
देखिए! भारतीय जनता पार्टी की परंपरा रही है, इतिहास उठाकर देख लीजिए जहां हमने पहली बार सरकार बनाई है, चुनाव से पहले कोई चेहरा डिक्लियर नहीं किया. जहां लगातार जीतते रहे हैं, वहां के स्थापित नेता का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ते हैं. गुजरात में जब मोदी जी मुख्यमंत्री थे 14 साल, तब हमें कोई चेहरा डिक्लियर करने की कोई जरूरत नहीं पड़ी.
मध्य प्रदेश में हमने चुनाव लड़ा था तो चेहरा आगे करने की जरूरत नहीं थी कि कौन मुख्यमंत्री होगा. इसलिए हमारी परंपरा नहीं कि हम पहली बार सरकार बनाने की दिशा में जब आगे बढ़ें तो पहले से कोई चेहरा डिक्लियर करें. जब सरकार बनेगी निश्चित रूप से तय होगा, चेहरा सामने आएगा. लेकिन एक बात तय है जैसा माननीय गृहमंत्री अमित शाह जी ने कहा है, मैं दोहराना चाहता हूं कि ममता दीदी के सामने बंगाल की धरती में जन्मा बेटा चुनाव लड़ेगा, बंगाल का अगला मुख्यमंत्री वहीं की धरती में जन्मा बेटा ही बनेगा.
लेकिन कांग्रेस और वामदल हाथ मिला चुके हैं, क्या त्रिकोणीय मुकाबला होगा? क्या आपको लगता है कि आपकी पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ पाएगी? फिर वोट बंटने के खेल में आपको ही फायदा होगा?
देखिए मैं भविष्यवक्ता नहीं हूं, लेकिन एक बात कह सकता हूं, मुकाबला बहुत रोचक होगा और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी.
अब मैं आपके गृह राज्य चलता हूं. वहां पर भी यही समस्या आ रही है कि आप लोग कहते हैं सरकार कांग्रेस की है तो वो मदद नहीं करती है. आप लोग आरोप लगाते हैं कि भ्रष्टाचार जो है शिष्टाचार बन गया है. यही आरोप कांग्रेस आप पर लगा देती है कि आपकी जहां सरकारें हैं वहां भ्रष्टाचार चरम पर है. क्या कहना चाहेंगे?
देखिए मैं दो विषय आपके सामने रखना चाहता हूं. राजस्थान की गहलोत सरकार हर पैरामीटर पर फेल हुई है. राजस्थान के किसानों से जो वादा कांग्रेस पार्टी ने सरकार में आने से पहले किया था, आज प्रदेश का किसान जानता है कि उसके साथ में धोखा हुआ है. चाहे वो ऋण माफी का विषय हो, चाहे किसानों की बिजली का दर नहीं बढ़ाने का विषय हो. युवाओं के साथ में धोखा हुआ. ये वादा किया गया था युवाओं को कि स्टाइपेंड देंगे, बेरोजगारी भत्ता देंगे. आज तक किसी को नहीं मिल पाया. हर वादे पर विफल रहने के साथ साथ में राजस्थान में जिस तरह से लॉ एंड ऑर्डर की दुर्दशा हुई हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि राजस्थान में इस तरह से गैंगरेप की घटनाएं हों, महिलाओं के प्रति इस तरह से अत्याचार और अपराध बढ़ें और उसके साथ साथ में उन सबको ढंकने के लिए सरकारी तंत्र प्रयास करे. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि अपराधी इतने बेखौफ हो जाएं कि थाने में से अपने साथियों को छुड़ाकर ले जाएं और पुलिस मूक दर्शक बनकर देखती रहे.
इन सब असफलताओं के साथ साथ में सरकार के तमाम भड़काने के प्रयासों के बावजूद भी राजस्थान की जनता ने अभी हुए पंचायती राज के चुनावों में, और विशेष रूप से पंचायत का चुनाव है तो ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोग, किसान ही उसमें मतदान कर रहे थे. ढाई करोड़ लोगों ने मतदान किया, भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया. और ये इसलिए महत्वपूर्ण था कि राजस्थान में परंपरागत रूप से 5 साल में सरकारें बदलती हैं. जिस पार्टी की सरकार होती है, स्थानीय निकाय के चुनाव वही पार्टी जीतती है. लेकिन कांग्रेस की सरकार होते हुए भी परंपरा के विपरीत, प्रदेश के किसानों ने प्रदेश के ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी को एक तरफा विजयी बनाया. 21 स्थानों पर हुए चुनावों में 14 जगह यानी 2 तिहाई जगहों पर भाजपा जीती है. जबकि सत्तारूढ़ पार्टी परंपरा के विरुद्ध केवल 4 जगहों पर सिमट कर रह गई है. ये इस बात का प्रमाण है कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार जनता के दिल से बाहर निकल चुकी है. केवल अपना संवैधानिक आयु पूरा कर रही है.
लेकिन शेखावत साहब आरोप ये भी लगते हैं कि बीजेपी जहां सरकार नहीं बना पाती वहां खेल बिगाड़ देती है. हमारा खेल नहीं बना तो हम दूसरे का खेल बिगाड़ देंगे. चाहे मध्य प्रदेश का मामला हो, राजस्थान में भी आरोप ये लगे कि आप लोगों ने बहुत कोशिश की. उसमें आपको भी टारगेट किया गया कि आप इसमें शामिल हैं. इसके अलावा अगर आप महाराष्ट्र की बात करें तो सुबह 4 बजे शपथ ग्रहण कहीं भी नहीं देखा गया था हिन्दुस्तान में, वह आपकी पार्टी ने कर दिखाया. क्या कहना है आपको?
देखिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी जिस तरह से टूटकर आई और जिस तरह से विघटन हुआ वो हम सबके सामने है. लेकिन उसके बाद में हुए चुनाव में मध्य प्रदेश की जनता ने जिस तरह से सुशासन के नाम पर आदरणीय शिवराज सिंह जी के नेतृत्व में सरकार को समर्थन और मत दिया ये इस बात का प्रमाण है कि मध्य प्रदेश की जनता भी महसूस कर रही थी कि उनके साथ धोखा हुआ है. जहां तक राजस्थान का प्रश्न है, जब यहां पिछले महीनों में राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ था, अनेक तरह के लांछन लगाए गए हमारे पर, माननीय गृहि मंत्री जी का नाम लेकर उनको कहा गया कि वह षडयंत्र कर रहे हैं. माननीय मुख्यमंत्री जी ने कम से कम 10 बार मीडिया के सामने आकर कहा कि हमारे विधायकों को बंधक बनाकर रखा गया है. उनके मोबाइल फोन ले लिए गए हैं, बाउंसर्स उनके साथ लगा दिए गए हैं.
उनको टेलीफोन पर बात करने नहीं दी जा रही है. लेकिन एक महीने से भी ज्यादा समय बाद जब वो संकट समाप्त हुआ, मैं पूछना चाहता हूं माननीय मुख्यमंत्री जी से कि आपके एक भी विधायक ने आकर के थाने में मुकदमा दर्ज क्यों नहीं कराया? कि इस तरह से हमारे साथ दुर्व्यहार हुआ, हमें बंधक बनाकर रखा गया. एक भी विधायक ने, जो इनके 19.20 थे मीडिया में आकर स्टेटमेंट क्यों नहीं दिया? इसके उलट उन्होंने आकर के कहा था कि हम अपनी मर्जी से अपने आलाकमान को अपनी बात कहने आए थे. उन्होंने हमें समय दिया, हमारी बात हो चुकी है अब हम वापस जा रहे हैं. जब अपने घर की लड़ाई को दूसरे के सिर पर मढ़ने का यह प्रयास जनता के सामने स्पष्ट हो गया है.
मध्य प्रदेश में तो सिंधिया जी को अपनी पार्टी में ले लिया, राज्यसभा दे दिया उनको. कहा गया कि जो जमीनों का विवाद था या जिन सरकारी जमीनों पर उन्होंने कब्जा किया था उससे बचने के लिए उन्होंने पार्टी जॉइन किया, ऐसे आरोप लगे. क्या राजस्थान में सचिन पायलट वर्सेज मुख्यमंत्री का जो विवाद था उसमें आप लोगों को सफलता नहीं मिली या सचिन पायलट को पार्टी में लाने में कामयाबी नहीं मिली.
मैंने कहा न कि हम तो कहीं पिक्चर में ही नहीं थे. झगड़ा पति पत्नी का और दोष पटवारी का? ऐसा कैसे हो सकता है. मुख्यमंत्री जी और पायलट साहब के बीच जो झगड़ा है वो तो चुनाव के बाद रिजल्ट आया उसी दिन से चल रहा है. इसको सब लोग जानते हैं. पार्टी दो कैम्प में डिवाइडेड है. विधानसभा में एक दूसरे ग्रुप के मंत्रियों को निपटाने का विवाद हम सबने देखें हैं उसके बाद भी इस तरह के प्रश्न करना. मुझे लगता है कि इन प्रश्नों में भी राजनीति के अलावा और कुछ भी नहीं है.
गहलोत साहब कसे किससे डर लगता है? प्रधानमंत्री से लगता है, गृह मंत्री अमित शाह से लगता है, वसुंधरा राजे से लगता है या आपसे लगता है?
राजस्थान के मुख्यमंत्री को उनकी विफलताओं के कारण उपजी जनता की नारजगी से भय लगता है. और उनको इस बात की जानकारी है कि राजस्थान की जनता उनको नकार चुकी है, जैसा मैंने कि सरकार लोगों के मन से निकल गई है, केवल अपना संवैधानिक आयु पूरा कर रही है.
उनकी चिंता तो ये है कि आपको जल शक्ति मंत्रालय सौंपा गया है प्रधानमंत्री की तरफ से लेकिन आप सारी शक्ति जो है राजस्थान में लगा देते हैं उनकी सरकार को गिराने में.
मैं इसको दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं. माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में हम हर घर में नल और हर नल में जल पहुंचे, इस संकल्प के साथ में 2024 तक इसे पूरा करेंगे इस दिशा में काम कर रहे हैं. 2024 तक इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए मोदी जी के नेतृत्व में जब हमने कार्य प्रारंभ किया, 2019 तक हम 19 करोड़ घरों में सिर्फ 3 करोड़ 23 लाख घरों तक पहुंचे हुए थे. केवल 16 फीसदी घरों तक पीने का पानी पहुंचता था, शेष घरों की माताओं बहनों को सिर पर पानी उठाकर लाने के लिए मजबूर होना पड़ता था. इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने के लिए मोदी जी ने जब यह कार्यक्रम शुरू किया आज मैं खुशी के साथ में कह सकता हूं कि लगभग 15 महीने का समय बीतने के बाद तमाम विपरीत परिस्थितियों में 3 करोड़ का आंकड़ा छू पाए हैं. आज मैं खुशी के साथ कह सकता हूं कि गोवा देश का ऐसा राज्य बन गया है जहां हर घर में पीने का पानी नल से पहुंच रहा है.
अनेक ऐसे स्टेट्स हैं जिन्होंने इस दिशा में अभूतपूर्व प्रगति की है. तेलंगाना 99 फीसदी पर पहुंचा है, गुजरात ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. हरियाणा ने बेहतर कार्य किया है, उत्तर प्रदेश बहुत अच्छा काम कर रहा है. हिमाचल प्रदेश ने बहुत अच्छा काम किया है. कर्नाटक में काम ने गति पकड़ना प्रारंभ किया है. महाराष्ट्र में काम गति के साथ में हो रहा है. मुझे दुख होता है कि बंगाल का साझीदार इस काम में कोई सबसे नीचे के पायदान पर है तो वह मेरा राज्य राजस्थान है. पहले वर्ष में जितनी धनराशि भारत सरकार ने मुहैया करवाई थी आज तक उसका यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट सबमिट नहीं हो पाया, उसके कारण दूसरे साल की राशि केंद्र से लेने की पात्रता भी राजस्थान हासिल नहीं कर पाया. जो काम राज्य सरकार को करना है उसे करने के लिए राज्य सरकार 50 परसेंट ग्रांट दे रही है. तब तेलंगाना करता है, मध्य प्रदेश करता है, महाराष्ट्र करता है, गुजरात, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत सारे प्रदेश करते हैं, लेकिन राजस्थान नहीं कर पाता है. क्यों?
तो क्या आपको लगता है कि राजस्थान सरकार नाकाम है केंद्र की योजनाओं का लाभ उठाने में?
निश्चित रूप सेत. एक कहावत है हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या? आंकड़े आपके सामने हैं. जो टारगेट उनके सामने रखा गया था. केवल राजस्थान ही नहीं मैं बंगाल की भी बात करूंगा. 30 लाख कनेक्शन का पिछले साल का उनका टारगेट था. उसके लिए पैसा भारत सरकार ने दिया था. उसके बावजूद भी बंगाल 30 लाख में से 4890 कनेक्शन कर पाया है. राजस्थान के हालात भी लगभग ऐसे ही हैं. जो टारगेट उनके पास था उसका 10 प्रतिशत भी अचीव नहीं कर पाए हैं.