काम की खबर: जब सरकार के पास नोट छापने की मशीन है तो वह कर्ज क्यों लेती है?
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काम की खबर: जब सरकार के पास नोट छापने की मशीन है तो वह कर्ज क्यों लेती है?

क्या आपने कभी सोचा है कि जब सरकार देश में ही करेंसी छापती है तो फिर सरकार कर्ज क्यों लेती है? सरकार ज्यादा करेंसी छापकर ही विकास कार्य क्यों नहीं कर लेती? आइए हम आपको इसका जवाब बताते हैं.

सांकेतिक चित्र

नई दिल्लीः बीते दिनों केन्द्र सरकार ने बजट पेश किया और अब विभिन्न राज्य सरकारें भी अपना-अपना बजट पेश कर रही हैं. कोरोना महामारी के चलते राजस्व में भारी कमी आई है. ऐसे में सरकारों को विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए कर्ज भी लेना पड़ा है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब सरकार देश में ही करेंसी छापती है तो फिर सरकार कर्ज क्यों लेती है? सरकार ज्यादा करेंसी छापकर ही विकास कार्य क्यों नहीं कर लेती? आइए हम आपको इसका जवाब बताते हैं.

ये है इसकी वजह
सरकार एक तय सीमा से ज्यादा करेंसी इसलिए नहीं छापती क्योंकि इससे देश में महंगाई बढ़ सकती है. अगर ज्यादा नोट छपेंगे तो इससे लोगों के पास ज्यादा पैसा आ जाएगा. जब ज्यादा पैसा आएगा तो उनकी जरूरतें भी बढ़ेंगी. इससे महंगाई बढ़ेगी. साथ ही हम जिन चीजों का उपभोग करते हैं या सेवाएं लेते हैं वो तो उतनी ही हैं लेकिन बाजार में करेंसी बढ़ जाने से उनकी कीमत में इजाफा हो जाएगा. मतलब कोई देश जितनी ज्यादा करेंसी छापेगा, वहां उतनी ही महंगाई बढ़ जाएगी. इसे मुद्रास्फीति कहा जाता है. मुद्रास्फीति को अगर काबू नहीं किया गया तो इससे अर्थव्यवस्था भी चौपट हो सकती है.

इस बात को एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए सरकार ने खूब सारे पैसे छाप दिए और देश के हर नागरिक के पास लाखों रुपए की संपत्ति हो गई. लेकिन अब अगर आप बाजार से कोई चीज लेने जाएंगे, जिसकी कीमत पहले 50 रुपए थी, अब दुकानदार उस चीज को 50 रुपए में क्यों बेचेगा? क्योंकि 50 रुपए की अब उतनी कीमत नहीं रही है, जितनी पहले थे. साथ ही जब किसी चीज का उत्पादन होगा तो वहां भी उसकी लागत बढ़ जाएगी तो जब तक प्रोडक्ट मार्केट में आएगा तो उसकी कीमत भी बहुत ज्यादा बढ़ चुकी होगी. मतलब अगर ज्यादा करेंसी छापी जाएगी तो फिर छोटी-छोटी चीजों के दाम जो आज 5-10 रुपए है वो ज्यादा करेंसी छपने की स्थिति में सैकड़ों-हजारों में पहुंच जाएगी.

या इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि, मान लो अगर किसी देश में सिर्फ पांच लोग रहते हैं और उनके पास 100-100 रुपए की करेंसी है. उस देश में 50 किलो चावल पैदा होते हैं तो फिर इस तरह से उन 50 किलो चावल की कीमत 100 x5 मतलब 500 रुपए होगी. अब अगर सरकार ज्यादा करेंसी छाप देती है तो इन लोगों के पास ज्यादा पैसे आ जाएंगे लेकिन चावल तो 50 ही किलो हैं. ऐसे में ज्यादा करेंसी छापने की स्थिति में इन चावलों की कीमत बढ़ जाएगी. 

ज्यादा मात्रा में करेंसी की छपाई से उस देश की करेंसी डि-वैल्यू हो जाएगी. बता दें कि किसी देश में नोटों की छपाई इस बात पर निर्भर करती है कि उस देश की जीडीपी, राजकोषीय घाटा और विकास दर कितनी है. इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए देश की सरकार और केन्द्रीय बैंक इस बात का फैसला करते हैं कि कब और कितने नोट छापे जाने हैं. 

ये देश कर चुके हैं गलती

कई देशों द्वारा तय सीमा से ज्यादा नोट छापने की गलती की गई है, जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा है. दक्षिण अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे की सरकार ने एक बार बहुत सारे नोट छापने की गलती की थी. जिससे वहां की करेंसी की वैल्यू काफी गिर गई और हालात ये हो गए कि दूध-ब्रेड जैसी बुनियादी चीजों के लिए लोगों को बैग भर-भरकर नोट ले जाने पड़े. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने भी इस गलती को किया और युद्ध के हालात के दौरान विदेशी मुद्रा को खरीदने के लिए ज्यादा संख्या में करेंसी छाप दी. इसका असर ये हुआ कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था बदहाली के दौर में पहुंच गई. कुछ समय पहले वेनेजुएला में भी ऐसा किया गया और वहां भी हालात काफी खराब हो गए. लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी लाखों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं. 

  

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