28 सीटों का Analysis: अनुसूचित जाति की गोहद सीट पर ब्राह्मण नहीं करते वोटिंग, ओबीसी और क्षत्रिय वोटर निर्णायक
मध्य प्रदेश में इस बार 28 सीटों पर उपचुनाव होना है. जिसके लिए 3 नवंबर को वोटिंग होगी. तो वहीं 10 नवंबर को मतदान के नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे.
भोपाल: मध्यप्रदेश में उपचुनाव का ऐलान हो गया है. राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी. हम आपको इन्हीं बिंदुओं के आधार पर एक-एक सीट का हाल बता रहे है. आज की सीट है गोहद सीट
विधानसभा सीट (क्रं 13) | गोहद जिला भिंड |
मतदाता | 2 लाख 14 हजार |
पुरुष मतदाता | 1 लाख 21 हजार |
महिला मतदाता | 1 लाख 1 हजार |
भिंड जिले की गोहद सीट पर ग्वालियर और भिंड जिले के रहने वाले उम्मीदवार विधायक बनते आए हैं. गोहद के रहने वाले उम्मीदवारों को यहां कम ही सफलता मिलती है.
पार्टी | उम्मीदवार |
बीजेपी | रणवीर जाटव |
बसपा | मेवाराम जाटव |
कांग्रेस | जसवंत पटवारी |
विधानसभा सीट भिंड जिले में आती है, जो ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों में से एक है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित गोहद विधानसभा में गोहद किले ने काफी ख्याति प्राप्त की है. इस सीट पर हरिजन और क्षत्रिय वोटर निर्णायक भूमिका में रहते है. क्षत्रिय के अलावा ओबीसी वर्ग के वोटर भी चुनाव के वक्त अहम भूमिका में आ जाते है, जो चुनाव के नतीजों को किसी भी एक पक्ष से दूसरे पक्ष में खिसका सकता है.
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विधानसभा सीट का जातिगत समीकरण
जातियां- हरिजन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, गुर्जर
हरिजन- जाटव, आर्य, इन्दौलिया, देसाई, बरैया
क्षत्रिय- तोमर, भदौरिया
अन्य- गुर्जर, पटौरिया, जैन, मुस्लिम
ब्राह्मण- सनात, चतुर्वेदी
हरिजन
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर अक्सर जाटव और आर्य उम्मीवार ही खड़े होते हैं. तो वहीं बसपा जसवंत पटवारी को इस सीट 60 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर का समर्थन मिल सकता है. इसी विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति के जाटव, आर्य, इन्दौलिया और देसाई मिलाकर 60 हजार से ज्यादा वोटर होते हैं. जो एक साथ किसी भी पार्टी को बहुमत की ओर धकेल सकते है.
बसपा और कांग्रेस पार्टियों में इस समाज के वोट अक्सर बंट जाते हैं, जिसका फायदा अन्य पार्टी को मिलता आया है. इस बार चुनाव में तीनों ही पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे हैं, जिस वजह से इस समाज के वोट बंट सकते है. जिसका सीधा असर उपचुनाव के नतीजों में देखने को मिलेगा.
ब्राह्मण
सनात, चतुर्वेदी और इस समाज के अन्य वोटर आरक्षित सीट होने की वजह से वोटिंग में ही भागीदारी नहीं करते है. जिसका सीधा असर हमें गोहद में किए गए मतदान प्रतिशत को आंकड़ों में नजर आता है. यहां पिछले चार चुनावों में 60 प्रतिशत से ज्यादा मतदान नहीं हुआ है, तो वहीं उसके पहले के चुनावों में तो मतदान प्रतिशत 50 के आंकड़े को नहीं छू सका था.
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ब्राह्मण नहीं करते चुनाव में वोट
ब्राह्मण के 50 से 60 हजार वोटर अगर चुनाव में उपयोगी तौर वोटिंग करते हैं तो चुनाव नतीजों और मतदान प्रतिशत में फर्क नजर आ सकता है. लेकिन सीट आरक्षित होने की वजह से ब्राह्मण वर्ग को इस सीट पर ज्यादा रूचि नहीं है. हालांकि मुद्दों की बात की जाए तो उन्हें क्षेत्र में पानी और बिजली की समस्या का सामना करना पड़ता है. लेकिन इन सब के बावजूद समाज की ओर से प्रभावी तौर पर वोटिंग नहीं की जाती है.
क्षत्रिय
क्षत्रिय-राजपूत समाज के इस क्षेत्र में 40 हजार के लगभग वोटर है. जिनमें तोमर और भदौरिया मुख्य रूप से यहां के रहवासी है. पारंपरिक रूप से किसी सिंगल पार्टी को वोट तो नहीं करते, लेकिन बीजेपी की ओर झुकाव रहा है. साल 2018 में सवर्ण आरक्षण का विरोध और उस समय के भारत बंद आंदोलनों के चलते समाज के लोगों ने 2018 चुनाव में बीजेपी को वोट न देते हुए कांग्रेस उम्मीदवार को वोट दिया था. इस बार वही उम्मीदवार बीजेपी से चुनाव लड़ रहा है, ऐसे में देखना महत्तवपूर्ण होगा कि चुनाव में बहुमत दिलाने वाले वोटर किस पार्टी के उम्मीदवार पर अपना भरोसा दिखाते है.
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ओबीसी और अन्य
गोहद सीट पर गुर्जर और पटौरिया जाति के 20 हजार और 22 हजार वोटर हैं. इनके अलावा क्षेत्र में जैन और मुस्लिम धर्म के भी 20 हजार से ज्यादा वोटर होते है. ओबीसी पिछले चुनावों में बीजेपी को वोट करती आई है. लेकिन पिछले बार भारत बंद आंदोलन की वजह लगभग सभी मतदाताओं ने बीजेपी से किनारा कर लिया था और कांग्रेस उम्मीदवार को जीत दिलाई थी. तो वहीं मुस्लिम और जैन वोटर किसी एक पार्टी को वोट नहीं करते है. लेकिन 20 हजार से ज्यादा वोटर के साथ समाज के वोट चुनाव में अहम अंतर पैदा कर सकते है.
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मुद्दे-
बेरोजगारी- सीट का नाम अलग लेकिन समस्या की शुरुआत वहीं, क्षेत्र में रोजगार नहीं है. युवा वर्ग को सैना में भर्ती होने के लिए ट्रेंनिंग मैदान की जरूरत पड़ती है, जो अब रीवा के बाद यहां बन रहे सैनिक स्कूल से सुलझती नजर आ रही है. जिसे केन्द्र की बीजेपी सरकार द्वारा बनाने की मंजूरी दी गई है.
मालनपुर उद्योग का लाभ नहीं
विधानसभा क्षेत्र के मालनपुर में स्थापुत औद्योगिक क्षेत्र में स्थानीय लोगों को ही रोजगार नहीं दिया जा रहा है. बल्कि यहां दूसरे राज्यों के कामगारों को कम वेतन पर रखा जा रहा है, जिसके युवा वर्ग क्षेत्र में रोजगार का साधन होते हुए भी उसका लाभ नहीं ले पा रहा है.
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खारे पानी और बिजली की समस्या
यहां के 50 से ज्यादा गांवो में पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है. क्षेत्र में पीने के लिए खारा पानी होने की वजह से उसे आमजनों द्वारा उपयोग में नहीं लाया जा सकता. तो वहीं क्षेत्र में 50 ही गांव ऐसे है जहां लोगों की मूलभूत जरूरत बिजली और स्वास्थ्य की सुविधा भी नहीं मिल पा रही है.
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मवेशी समस्या-
सरकारों द्वारा वैसे तो गाय और मवेशियों को बचाने की मुहिम चली आ रही है. लेकिन यहां के किसानों को मवेशियों की ही समस्या का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, यहां के किसानों द्वारा खेत में लगाई गई फसल को क्षेत्र में स्थित मवेशियों द्वारा चर ली जाती है. क्षेत्र में खुलेआम इस तरह के मवेशियों के रहने से किसानों को हर वक्त फसल का ध्यान रखने के लिए चौकन्ना रहना पड़ता है. उनकी मांग है कि क्षेत्र में गोशाला बने ताकि इन पशुओं को भी आसरा मिले और किसानों की फसल भी बची रह सके.
इस सीट पर कांग्रेस व बीजेपी की ताकत व मुश्किलें
कांग्रेस की ताकतः गोहद विधानसभा के क्षेत्र पर क्षत्रिय और अन्य जातियां प्रभावी रूप में रहती है, तो वहीं इन वोटर्स पर कांग्रेस के पूर्व मंत्री गोविंद सिंह की अच्छी खासी पकड़ है.
कांग्रेस की चुनौतीः कांग्रेस से 2013 और 2008 में चुनाव लड़ने वाले मेवाराम जाटव को टिकट दिया गया है. जिसके बाद से पार्टी के लोगों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया है.
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बीजेपी की ताकतः बीजेपी के लाल सिंह आर्य ने 2013 में चुनाव जीता था. तो वहीं पिछले चुनाव में जीत हासिल करने वाले रणवीर जाटव अब बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ने वाले हैं. जो बीजेपी को इस चुनाव में फायदा पहुंचा सकता है.
बीजेपी की चुनौतीः कांग्रेस के रणवीर जाटव के बीजेपी में आने के बाद बीजेपी के नेताओं ने सामने आकर जाटव का समर्थन नहीं किया है. उपचुनाव के समय अगर बीजेपी अपने ही नेताओं से लड़ता रहा, तो उनके लिए ये एक बहुत बड़ी चुनौती होने वाली है.
बीजेपी के लाल सिंह आर्य यहां से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के मेवाराम जाटव ने हरा दिया था. मेवाराम जाटव इस बार बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं. गोहद सीट परंपरागत रूप से बीजेपी की सीट मानी जाती है. यहां 5 बार बीजेपी, 3 बार कांग्रेस और 3 बार अन्य दलों ने भी जीत दर्ज की है.
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पिछले चुनावों में क्या रहा परिणाम?
2018 विधानसभा चुनाव
2018 चुनाव में 1,29,800 मतदाताओं ने 59.32 प्रतिशत मतदान किया था. तब कांग्रेस के रणवीर जाटव ने 48.58 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, तो वहीं उनके विरोधी बीजेपी के लाल सिंह आर्य को 30.07 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों के बीच जीत का अंतर 23,989 वोटों का रहा था. तो वहीं बसपा उम्मीदवार जगदीश सिंह सागर 11.94 प्रतिशत वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे थे.
2013 विधानसभा चुनाव
2013 चुनाव में 1,13,265 वोटर ने 59.15 प्रतिशत मतदान किया था. तब बीजेपी के लाल सिंह आर्य ने 45.65 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस के मेवाराम जाटव को 19814 वोटों के अंतर से हराया था. कांग्रेस उम्मीदवार ने चुनाव में 28.16 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. तो वहीं बसपा के फूल सिंह बरैया तीसरे स्थान पर रहे थे.
2008 विधानसभा चुनाव
2008 चुनाव में 91,412 मतदाताओं ने 55.17 प्रतिशत मतदान किया था. तब कांग्रेस के माखनलाल जाटव, बीजेपी के लाल सिंह आर्य को 1,553 वोटों नजदीकी अंतर से हराने में कामयाब रहे थे. तो वहीं इस उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार मेवाराम जाटव ने बसपा की ओर से चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे थे.