भोपाल: मध्यप्रदेश में उपचुनाव का ऐलान हो गया है. राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी. हम आपको इन्हीं बिंदुओं के आधार पर एक-एक सीट का हाल बता रहे है. आज की सीट है ग्वालियर पूर्व सीट
पूर्व विधायक - मुन्ना लाल गोयल (बीजेपी)
विधानसभा सीट नं. 16 |
ग्वालियर पूर्व सीट |
मतदाता |
3 लाख 14 हजार |
महिला वोटर |
1 लाख 43 हजार |
पुरुष वोटर |
1 लाख 66 हजार |
परंपरागत रूप से बीजेपी की सीट रही ग्वालियर पूर्व की इस सीट पर पार्टी ने पिछले 50 सालों में 6 विधायक दिए है. कांग्रेस के सतीश सिकरवार को उम्मीदवार बनाने से पहले यहां अशोक सिंह को टिकट देने की कवायद तेज हो रही थी. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अंत में बीजेपी से पिछला चुनाव लड़कर हारने वाले सतीश सिकरवार को पार्टी में शामिल कर टिकट दिया है. तो वहीं बसपा ने महेश बघेल को टिकट दिया है.
उम्मीदवार
भाजपा |
मुन्नालाल गोयल |
कांग्रेस |
सतीश सिकरवार |
बसपा |
महेश बघेल |
जातिगत समीकरण
- मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव होना है.
- 3 नवंबर को सभी 28 सीटों पर मतदान होगा.
- 10 नवंबर को उपचुनाव के नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे.
ग्वालियर पूर्व की सीट, इस बार होने वाले उपचुनाव की उन कुछ सीटों में से है जो ग्रामीण न होते हुए, शहरी है. यहां वैसे तो जातिगत मुद्दे उतने कारगार नहीं होता है. लेकिन इसके बावजूद भी सिंधिया घराने का गढ़ कहे जाने वाले इस क्षेत्र में ओबीसी, ब्राह्मण और वैश्य समुदाय निर्णायक भूमिका में रहने के आसार है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ग्वालियर और ग्वालियर पूर्व की सीटों पर जातिगत राजनीति कारगर सिद्ध नहीं होती है.
ग्वालियर पूर्व विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख जातियां
जातियां- (सवर्ण, राजपुत, ओबीसी, अजा/अजजा)
सवर्ण - ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय
ओबीसी- गुर्जर, बघेल, कुशवाह
दलित- अनुसूचित जाति, आदिवासी
अन्य- सिंधी, पंजाबी, क्रिस्चियन, मुस्लिम
सवर्ण-
ग्वालियर जिले की ग्वालियर पूर्व सीट आरक्षित नहीं होने की वजह से सवर्णों के हित की सीट रहती है. यहां ब्राह्मण वर्ग के 30 हजार वोटर हैं व वैश्य समुदाय के 40 हजार वोटर हैं. ये दोनों ही जातियां हर बार होने वाले चुनाव में मुख्य भूमिका में रहते है. इनके अलावा ग्वालियर पूर्व में क्षत्रिय वोटर जिनमें सिकरवार और तोमर जाति के करीब 28 हजार वोटर है. जो पारंपरिक रूप से अपने ही समाज के उम्मीदवार को वोट देते आए है.
ओबीसी-
ग्वालियर पूर्व घनी आबादी वाला क्षेत्र है, यहां अन्य पिछड़ा में गुर्जर, बघेल और कुशवाह जाति के लगभग एक लाख वोटर हैं. इस उपचुनाव में बसपा की ओर से उम्मीदवार महेश बघेल को इन ओबीसी वोटर का साथ मिल सकता है. लेकिन ग्वालियर के पिछले विधानसभा चुनावों में बसपा उम्मीदवार को कभी भी सम्मानजनक वोट नहीं मिले है. ओबीसी कई उपजातियों में बंटे होने के कारण आपसी मतभेद का शिकार है, इसी कारण ये किसी एक पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं करते है.
दलित-
ग्वालियर पूर्व विधानसभा में कई खेतिहर और मजदूर भी आते हैं, जिनमें अधिकतर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग शामिल है. यहां ये दोनों वर्ग मिलकर लगभग 80 हजार से ज्यादा वोटर होते हैं. जो अक्सर दबंगों के आतंक से परेशान होने के बाद कांग्रेस को वोट देते नजर आते हैं.
अन्य-
ग्वालियर पूर्व में कई धर्मों के वोटर शामिल है. जिनमें सिंधी, पंजाबी के 25 हजार से वोटर और क्रिस्चियन समुदाय के वोटर मिलकर 40 हजार वोटर होते हैं. इनके अलावा 7 हजार मुश्लिम वोटर भी अपने मत का प्रयोग कर यहां का विधायक चुनने के लिए मतदान करने वाले है.
ओबीसी और ब्राह्मण-क्षत्रिय वोटर होते है निर्णायक
ओबीसी के 1 लाख से अधिक वोटर और ब्राह्मण-वैश्य समाज के 70 हजार वोटर्स इस बार होने वाले उपचुनाव के लिए निर्णायक साबित होने वाले है. बीजेपी अक्सर इस जाति के वोटर्स को साधकर चुनाव में जीत दर्ज करती आई है. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मुन्ना लाल गोयल ने जीत दर्ज की थी. तो वहीं मुन्ना लाल गोयल इस बार बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ने वाले है. दलबदलू उम्मीदवारों के साथ इन निर्णायक वोटर्स के साथ मुकाबला इंटरेस्टिंग होने वाला है.
निर्णायक मुद्दे-
रोजगार- ब्राह्मण, राजपूत से लेकर दलित, आदिवासी तक युवाओं और लोगों को अगर सबसे ज्यादा किसी क्षेत्र में विकास की जरूरत है, तो वो रोजगार क्षेत्र में है. यहां के 3 लाख से ज्यादा वोटर के पास रोजगार और आमदनी के उपयुक्त साधन नहीं है. बीजेपी सरकार ने यहां उपचुनाव से पहले यहां करोड़ों की योजनाओं का लोकार्पण और भूमिपूजन किया. लेकिन इन सभी योजनाओं में रोजगार का मुद्दा अब भी सामने नहीं आ सका है.
पानी की समस्या- ग्वालियर पूर्व के खेतिहरों को सिंचाई के साथ ही पीने के पानी की अत्यधिक जरूरत है. इस क्षेत्र गर्मी बेहद पड़ने से तालाबों में पानी नहीं ठहर पाता, जिस वजह से यहां के लोगों को फसल उगाने में परेशानी होती है. साथ ही लोगों के पास पहले तो बिजली ही नहीं है, और अब लोगों का कहना है कि बिजली बिल भी ज्यादा आने लगा है.
आम जन का कहना है कि अब बिजली बिल भरे कहां से जब न तो फसल का सहारा है और न ही रोजगार का. हालांकि प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा किए गए करोड़ों के लोकार्पण कार्यों में डैम और सिंचाई सुविधाओं को लाभ पहुंचाना बहुत हद तक नजर आया.
उच्च शिक्षा की कमी- प्रदेश का लगभग हर कृषि आधारित क्षेत्र मूलभूत विकास को तरस रहा है. यही हाल ग्वालियर पूर्व के रहवासियों का भी है, उनका कहना कि क्षेत्र में स्कूल के बाद की पढ़ाई के ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं है. जिससे यहां के युवाओं में आधुनिक कौशल (Modern Skill) का विकास नहीं हो पाता है. और यहां के युवा बाकि क्षेत्रों के युवाओं से पीछे रह जाते है.
स्वास्थ्य क्षेत्रों की लचरता- इसी तरह के खस्ता हाल यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं के भी है, क्षेत्र की ज्यादातर जगहों पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक स्थापित नहीं किये गए है. जिससे यहां के लोगों को उपचार के लिए दूसरे शहरी क्षेत्रों में जाकर इलाज करवाना पड़ता है. इस दौरान मरीजों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है.
इस सीट पर कांग्रेस-बीजेपी की मुश्किलें व ताकत
कांग्रेस की ताकत: विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक इलाके में कांग्रेस का लगातार लोगों से संपर्क है. कांग्रेस व्यक्तिगत लोगों से भी खासी जान पहचान रखती है.
कांग्रेस की मुश्किलः सिकरवार को कांग्रेस के नेता, कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतना है और जीत हासिल करना है.
बीजेपी की ताकत: क्षेत्र में पार्टी का मजबूत कनेक्शन है साथ ही सिंधिया राजघराने के प्रति लोगों को अच्छा खासा भरोसा है.
बीजेपी की मुश्किलः जो इस सीट से बीजेपी के दावेदार थे उन्हें मनाना तथा उनकी नाराजगी को दूर करना एक चुनौती है.
पिछले चुनावों में क्या रहा है नतीजा?
विधानसभा चुनाव 2018
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 1,74,125 लोगों ने 57.17 प्रतिशत वोटिंग की थी. तब कांग्रेस के मुन्ना लाल गोयल ने 51.92 प्रतिशत वोट हासिल कर बीजेपी के सतीश सिकरवार को 17,819 वोटों के अंतर से हराया था. बीजेपी उम्मीदवार को 41.65 प्रतिशत वोट मिले थे.
विधानसभा चुनाव 2013
2013 में हुए चुनाव में क्षेत्र के 1,43,356 वोटर्स ने 54.45 प्रतिशत वोटिंग की थी. जिसमें बीजेपी की माया सिंह ने 41.81 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस के मुन्ना लाल गोयल को महज 1,147 वोटों के अंतर से हराया था. मुन्ना लाल गोयल को 41.01 प्रतिशत वोट मिले थे, तो वहीं बसपा के आनंद शर्मा तीसरे स्थान पर रहे थे.
विधानसभा चुनाव 2008
2008 चुनाव में 92,282 लोगों ने 52.12 प्रतिशत मतदान किया था. तब बीजेपी के अनुप मिश्रा ने 40.38 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस के मुन्ना लाल गोयल को 1,538 वोटों के अंतर से हराया था. बसपा इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी.
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