मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को 28 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. इनमें से ही एक सीट जौरा सीट पर भी उपचुनाव होना है, जहां जातिगत समीकरण उम्मीदवार को चुनाव में जीत दिलाने में अहम रोल निभाता है.
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भोपाल: मध्यप्रदेश में उपचुनाव का ऐलान हो गया है. राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी.हम आपको इन्हीं बिंदुओं के आधार पर एक-एक सीट का हाल बता रहे है. आज की सीट है जौरा सीट
विधानसभा सीट- जौरा जिला मुरैना
सीट क्रमांक - 04 वोटर- 243546
महिला वोटर- 111481 पुरुष वोटर- 132050
विधानसभा क्षेत्र की प्रमखु जातियां/ उपजातियां
जातियां- (राजपूत , ब्राह्मण, अनुसूचित जाति और ओबीसी)
राजपूत- सिकरवार
ब्राह्मण - शर्मा, मिश्रा, उपाध्याय
ओबीसी- धाकड
अनुसूचचि जाति-
सीट पर कौन सी जाति डोमिनेट करती है?
जौरा विधानसभा सीट, ब्राह्मण, राजपूत और ओबीसी बाहुल्य क्षेत्र है. यहां अनुसूचित जाति के मतदाता भी बड़ी तादाद में है. जाटवों की अच्छी खासी संख्या है. ओबीसी में कुशवाह और धाकड मतदाताओं की संख्या भी अधिक है. यानी जौरा में चार प्रमुख जातियां ब्राह्मण, राजपूत ओबीसी और अनुसूचित जाति के मतदाताओं का दबदबा है.
इसके अलावा यादव, वैश्य, नाई, नट और आदिवासी भी निर्णायक भूमिका में हैं. जौरा विधानसभा के इतिहास में कांग्रेस और बसपा को तो जीत मिलती रही है लेकिन बीजेपी को केवल एक बार जीत नसीब हुई है 2013 के विधानसभा चुनाव में. यहां जातियों का ऐसा जाल फैला है कि कब किसके पक्ष में जबरदस्त समर्थन उमड़ पड़े कहा नहीं जा सकता है.
जौरा विधानसभा की जमीनी राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जौरा में किसी राजनीतिक पार्टी पर नहीं बल्कि उम्मीदवार की विश्वसनीयता पर वोट पड़ता है. हालांकि यह भी देखा गया है कि राजपूत, ब्राह्मण और ओबीसी मतदाताओ का अपनी जाति के उम्मीदवार के प्रति झुकाव होता है. तब निर्णायक की भूमिका में अनुसूचित जाति और ओबीसी की अन्य उपजातियां होतीं हैं.
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जातियों का वोट पैटर्न क्या है?
राजपूत और ब्राह्मण वोटों में दिखता है बंटवारा
जौरा विधानसभा में यूं तो लगभग हर जाति का अच्छा खासा वोट बैंक है लेकिन चुनावी मैदान में राजपूत, ब्राह्मण और ओबीसी मतदाता ही दिखाई देते है. अपने उम्मीदवारों के लिये राजपूत और ब्राह्मण मतदाता बंट जाते है ऐसा ही ओबीसी की उस जाति में भी देखने को मिलता है जहां उनकी जाति का उम्मीदवार मैदान में हो.
ओबीसी वोटों में भी देखने को मिलता है विभाजन
जौरा विधानसभा क्षेत्र में ओबीसी की कई जातियां हैं जिनमें कुशवाह, धाकड, यादव और नाई प्रमुख है. धाकड़ समाज से बसपा ने मनीराम धाकड पर कई बार दांव लगाया है जिसमें से 2008 में मनीराम धाकड ने जीत भी दर्ज की है. हालांकि इस बार बसपा ने पूर्व विधायक सोनेराम कुशवाह को टिकट दिया है. तो ऐसे में ओबीसी को धाकड़ और कुशवाह जाति में मतभेद दिख सकता है.
अनुसूचित जाति-
जौरा विधानसभा में अनुसूचित जाति निर्णायक भूमिका में है. वैसे तो इनका झुकाव बसपा की ही तरफ रहता है लेकिन उम्मीदवार के नाम पर भी यह वोट डालते हैं.
जातियों का प्रमुख मुद्दा:
राजपूत और ब्राह्मण
रोजगार : रोजगार का मुद्दा यहां अहम है. जौरा में कैलारस शुगर मिल के बंद हो जाने से किसानी और रोजगार पर गहरा प्रभाव पड़ा है. चुनाव में कैलारस मिल चुनावी भी रहती है.
पानी की समस्या: जौरा विधानसभा में पानी की किल्लत बड़ी समस्या है. पगारा डैम से पानी की सप्लाई की मांग यहां निरंतर उठती रहती है.
स्वास्थ्य और शिक्षा की अनदेखीः जौरा में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली है. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी और स्कूलों की लचर हालत भी चिंता का विषय बनी हुई है.
झुकाव- उम्मीदवार के प्रति झुकाव होता है. चूंकि जातिगत समीकरण सभी जातियों से होकर गुजरता है तो अपनी जाति के उम्मीदवार को मतदाता वोट करते हैं.
प्रमुख नेता- उम्मीदवार पर ही वोट करते हैं.
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ओबीसी-
रोजगार- रोजगार का मुद्दा यहां अहम है. जौरा में कैलारस शुगर मिल के बंद हो जाने से किसानी और रोजगार पर गहरा प्रभाव पड़ा है. चुनाव में कैलारस मिल चुनावी भी रहती है.
पानी की समस्या: जौरा विधानसभा में पानी की किल्लत बड़ी समस्या है. पगारा डैम से पानी की सप्लाई की मांग यहां निरंतर उठती रहती है.
स्वास्थ्य और शिक्षा की अनदेखीः जौरा में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली है. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी और स्कूलों की लचर हालत भी चिंता का विषय बनी हुई है.
झुकाव- बसपा की तरफ ज्यादा होता है क्योंकि ओबीसी उम्मीदवार को बसपा ही मौका देती हैं लेकिन धाकड़ और कुशवाह समाज में भी विभाजन देखने को मिलता है.
प्रमुख नेता- उम्मीदवार पर ही वोट करते हैं.
अनुसूचित जाति-
रोजगार- रोजगार का मुद्दा यहां अहम है. जौरा में कैलारस शुगर मिल के बंद हो जाने से किसानी और रोजगार पर गहरा प्रभाव पड़ा है. चुनाव में कैलारस मिल चुनावी भी रहती है.
पानी की समस्या: जौरा विधानसभा में पानी की किल्लत बड़ी समस्या है. पगारा डैम से पानी की सप्लाई की मांग यहां निरंतर उठती रहती है.
स्वास्थ्य और शिक्षा की अनदेखीः जौरा में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली है. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी और स्कूलों की लचर हालत भी चिंता का विषय बनी हुई है.
स्कूलों में सामाजिक भेदभाव
झुकाव- बसपा की ओर अधिकतर
प्रमुख नेता- उम्मीदवार को देखकर करेंगे वोट
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इस सीट पर कांग्रेस-बीजेपी की ताकत व मुश्किल
कांग्रेस की ताकत: नए चेहरे के साथ है, साथ ही कमलनाथ के गुट से आते है. कांग्रेसी कार्यकर्ता का भरपूर साथ मिलने की उम्मीद.
कांग्रेस की मुश्किलः पंकज उपाध्याय को टिकट मिलने से अन्य दावेदार प्रत्याशी ने चुप्पी साध ली.
बीजेपी की ताकत: इस सीट पर जातिगत वोट काम करता है. बीजेपी के पास जो दो प्रत्याशी है दोनों ही जातिगत मजबूत है.
बीजेपी की मुश्किलः इस सीट पर दो गुटो का टकराव देखा जा सकता है, तोमर व सिंधिया समर्थको में टिकट को लेकर टकराव
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पिछले विधानसभा चुनाव-
जौरा विधानसभा चुनाव - 2008
2008 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी के मनीराम धाकड़ ने जीत दर्ज की थी. दूसरे नंबर पर कांग्रेस से वृन्दावन सिकरवार और तीसरे स्थान पर बीजेपी के नागेन्द्र तिवारी रहे.
किस पार्टी को कितने परसेंट वोट
बसपा को 31.39 %, कांग्रेस को 23.99% तथा बीजेपी को 15.15% वोट मिले.
जौरा विधानसभा चुनाव- 2013
2013 में बीजेपी के सुबेदार सिंह सिकरवार रजौधा पहले स्थान पर रहे, जबकि कांग्रेस से बनवारी लाल शर्मा दूसरे और मनीराम धाकड़ तीसरे स्थान पर रहे.
किस पार्टी को कितने परसेंट वोट
बीजेपी को 29.16%, कांग्रेस को 27.45%, बसपा को 20.9% वोट मिले.
जौरा विधानसभा चुनाव - 2018
2018 में कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा विजयी रहे. दूसरे स्थान पर बीएसपी के मनीराम धाकड़ और तीसरे स्थान पर बीजेपी के सूबेदार सिंह रजौधा रहे.
किस पार्टी को कितने पर्सेंट वोट
कांग्रेस को 34.54%, बसपा को 25.21% और बीजेपी को 23.35% वोट मिले.
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