28 सीटों का Analysis: करैरा सीट; ओबीसी बहुल क्षेत्र में जाटव और खटीक जिसकी तरफ, वही जीत का दावेदार
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28 सीटों का Analysis: करैरा सीट; ओबीसी बहुल क्षेत्र में जाटव और खटीक जिसकी तरफ, वही जीत का दावेदार

मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए 3 नवंबर को मतदान होगा. और 10 नवंबर को सभी 28 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे.

करैरा सीट

विवेक पटैया/भोपाल: मध्यप्रदेश में उपचुनाव का ऐलान हो गया है. राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी. हम आपको इन्हीं बिंदुओं के आधार पर एक-एक सीट का हाल बता रहे है. आज की सीट है करैरा सीट

  1. मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव होना है
  2. 3 नवंबर को सभी 28 सीटों पर मतदान होना है
  3. 10 नवंबर को मतदान के नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे
विधानसभा सीट नं. 23

करैरा जिला शिवपुरी

कुल वोटर

 2,41,445

महिला वोटर

 1,11,218  

पुरुष वोटर

 1,30,226

अन्य वोटर

 06 

 

शिवपुरी जिले का करैरा विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर-चंबल संभाग की उन 16 सीटों में से एक है जहां इस बार कांटे की टक्कर देखने को मिलने वाली है. गुना संसदीय क्षेत्र में आने वाली ये सीट 2008 के बाद से अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. जाटव और खटीक उम्मीदवारों की इस सीट पर पिछले दो विधानसभा चुनावों से कांग्रेस ने कब्जा कर रखा है. यहां किसी समय में बीजेपी का कब्जा रहा था, तो वहीं मायावती की बसपा ने भी पिछले चुनावों में इस सीट पर जीत दर्ज की है. 

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किस पार्टी का कौनसा उम्मीदवार खड़ा है मैदान में?

    पार्टी

    उम्मीदवार
   कांग्रेस     प्रागीलाल जाटव
   भाजपा             जसवंत जाटव
   बसपा    राजेंद्र जाटव

 

करैरा की कहानी
करैरा विधानसभा में साल 1957 में पहली बार वोटिंग हुई थी और 1957 से लेकर 1967 तक कांग्रेस के गौतम शर्मा करैरा के विधायक बने थे. लेकिन 1967 में तत्कालीन जनसंघ पार्टी की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस उम्मीदवार को हरा उनसे विधायक पद छीना था. 1980 से 1990 के बीच कांग्रेस के हनुमन्त सिंह, इस सीट पर दो बार विधायक चुने गए. तो वहीं 2003 में लाखन सिंह बघेल ने पहली बार बसपा को इस सीट पर जीत दिलाई थी. 

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दलबदलू उपचुनाव
2018 में कांग्रेस से जीत दर्ज करने वाले जसवंत जाटव इस बार भाजपा से उपचुनाव लड़ने वाले है. तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार प्रागीलाल जाटव ने कभी बसपा की ओर से तीन बार चुनाव लड़ा है.  

करैरा विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख जातियां
          जातियां - (अनुसूचित जाति, ओबीसी, रावत, सामान्य)

          अनुसूचित जाति - जाटव, खटीक जाति के 50 हजार वोटर्स
          ओबीसी - यादव, लोधी, कुशवाह, पाल(बघेल) और गुर्जर 
          रावत- 30 हजार वोटर्स
          सामान्य- ब्राह्मण 10 हजार वोटर्स, ठाकुर 10 हजार वोटर्स

क्षेत्र के प्रमुख गांव- विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख कस्बों में करैरा, नरवर, सिरसौद, ग्राम टीला, वगेदरी, थानरा सुनारी, करई सीहोर, चीतरी मगरौनी, सिला नगर, सिल्लारपुर, कलोथरा

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कौनसी जाति करती है डॉमिनेट?

अजा वोटर है निर्णायक 
अनुसूचित जाति - करैरा विधानसभा शिवपुरी जिले की सीट है, जो अनूसुचित जाति के लिए आरक्षित है. करीब दो लाख से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट पर 15 फीसदी से ज्यादा जाटव समाज के वोटर हैं. और यही हर चुनाव में हार-जीत का अंतर तय करते है. आरक्षित होने की बड़ी वजह है यहां की अनुसूचित जाति की आबादी, जिनमें जाटव और खटीक मिलकर 50 हजार से ज्यादा वोटर्स बनाते है. सीट आरक्षित होने की वजह से इसी समाज के उम्मीदवारों को चुनाव में जीत मिलती आई है. 

ओबीसी - करैरा विधानसभा सीट पर ओबीसी जाति के वोटर्स भी काफी मात्रा में है. यहां रावत समाज के 30 हजार वोटर्स, यादव समाज के 16 हजार वोटर्स, लोधी समाज के 25 हजार वोटर्स, कुशवाह समाज के 15 हजार वोटर्स, पाल (बघेल) समाज के 20 हजार वोटर्स तो वहीं गुर्जर समाज के 13 हजार वोटर्स हैं. जो मिलकर 1 लाख से अधिक वोटर्स होते है. 

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बंट जाते है ओबीसी वोटर्स 
ओबीसी समाज मिलकर 1 लाख से ज्यादा वोटर्स तो बनाता है, लेकिन इनमें एकता की कमी है. कोई भी समाज किसी एक राजनेता या पार्टी के पक्ष में वोटिंग नहीं करता है. यही वजह है कि एक तिहाई वोटर्स होने के बावजूद इस समाज को साधना, चुनाव में किसी पार्टी या उम्मीदवार के जीतने की ग्यारंटी नहीं दे सकता. 

रावत करते हैं बसपा को वोट
करैरा में रावत समाज के वैसे तो 30 हजार वोटर्स है, लेकिन इस समाज ने अजा वोटर्स के साथ मिलकर दलित समाज के उम्मीदवार और खास तौर पर बसपा को वोट दिए हैं. जो इस बार भी देखने को मिल सकता है. बावजूद इन सब के बसपा इस सीट पर केवल एक बार, 2003 में जीत दर्ज कर सकी है. 

सामान्य और पिछड़ा वर्ग दावेदारी पेश न कर पाने की वजह से नाराज
करैरा विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और ठाकुर के 10-10 हजार से ज्यादा वोटर्स हैं. तो वहीं पिछड़ा वर्ग के वोटर्स की आबादी, कुल वोटर्स का एक तिहाई है. लेकिन अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने की वजह से इस सीट पर सामान्य और पिछड़ा वर्ग की नाराजगी बनी हुई है. साथ ही ये वोटर्स बसपा को वोट न करते हुए कांग्रेस और बीजेपी में बंट कर एक दूसरे के वोट कांटते नजर आते है. 

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मुद्देः शिवपुरी और ग्वालियर जैसे बड़े नगरों के पास होने के बावजूद करैरा विधानसभा क्षेत्र बेहद पिछड़ा हुआ है. 

विकास के नाम पर छलः करैरा विधानसभा क्षेत्र में विकास के नाम पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल का ट्रेनिंग सेंटर मौजूद है. लेकिन इसके बावजूद क्षेत्र का विकास नहीं हो सका है. 

रोजगारः देश के अन्य क्षेत्रों की तरह यहां के युवा वर्ग को भी रोजगार की तलाश है. बेरोजगारी के कारण क्षेत्र का युवा वोटर लम्बे समय से जनप्रतिनिधियों से नाराज है. क्योंकि यहां के राजनेताओं ने इतने सालों तक राज करने के बावजूद उद्योग धंधों को स्थापित करने पर ध्यान नहीं दिया है. 

पानी की समस्याः करैरा विधानसभा क्षेत्र कृषि आधारित क्षेत्र है, जिस वजह से यहां के किसानों को सिंचाई के पानी की आवश्यकता होती है. साथ ही लोगों को शुद्ध पेयजल की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. 

भ्रष्टाचारः स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर तहसील कार्यालय तक, स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार से यहां की जनता परेशान है. इन्हीं वजहों के कारण क्षेत्र का किसान शासकीय योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहा है. तो वहीं लोग राजनीतिक पार्टियों के झूठे दावों और वादों से भी तंग आ चुके है.

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इस सीट पर कांग्रेस व बीजेपी की ताकत व मुश्किलें

कांग्रेस की ताकतः कांग्रेस से भाजपा में गए जसवंत जाटव को अब जनता का साथ नहीं है, जिसे कांग्रेस उपचुनाव में अपनी मजबूती के रूप में इस्तेमाल कर सकती है. 
कांग्रेस की मुश्किलेंः कांग्रेस द्वारा बसपा के प्रागीलाल जाटव को टिकट देने से कांग्रेस के ही लोगों ने पार्टी का साथ छोड़ना शुरू कर दिया है. जो कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या बन सकता है. 

बीजेपी की ताकतः विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर-चंबल में होने की वजह से सिंधिया की मजबूत पकड़ रखता है. यहां के वोटर्स ने सिंधिया वंश पर भरोसा दिखाया है. 
बीजेपी की मुश्किलेंः बीजेपी इस विधानसभा सीट पर आंतरिक कलह की वजह से दिक्कतों में आ सकती है. उनकी पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में भी इसी वजह से हार का मुंह देखना पड़ा था.

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राजनीतिक समीकरण
पिछले 7 विधानसभा चुनावों में इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस ने संयुक्त रूप से तीन-तीन बार जीत दर्ज की है. तो वहीं बसपा ने भी इस दौरान एक बार 2003 में जीत दर्ज की है. 

पिछले चुनावों में क्या रहा है नतीजा?

विधानसभा चुनाव 2018
2018 के विधानसभा चुनाव में 1,73,575 वोटर्स ने 73.29 प्रतिशत मतदान किया था. जिसमें कांग्रेस के जसवंत जाटव ने 37.01 प्रतिशत वोट हासिल कर बीजेपी के राजकुमार खटीक को हराया था, जिन्हें 28.47 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों के बीच जीत का अंतर 14,824 वोटों का था. तो वहीं बसपा के प्रागीलाल जाटव ने 23.08 प्रतिशत वोट जीत कर तीसरा स्थान प्राप्त किया था. 

विधानसभा चुनाव 2013
2013
के विधानसभा चुनाव में 1,64,449 वोटर्स ने 72,11 प्रतिशत मतदान किया था. तब कांग्रेस की शकुन्तला खटीक ने 36.11 प्रतिशत वोट हासिल कर बीजेपी के ओम प्रकाश खटीक को हराया था, जिन्हें 29.83 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों के बीच जीत का अंतर 10,321 वोटों का था. बसपा के प्रागीलाल जाटव इस बार भी तीसरे स्थान पर रहे थे. 

विधानसभा चुनाव 2008
2008 के विधानसभा चुनाव में 1,04,747 मतदाताओं ने 63.41 प्रतिशत मतदान किया था. जिसमें बीजेपी के रमेश प्रसाद खटीक ने  34.22 प्रतिशत वोट हासिल कर बसपा के प्रागीलाल जाटव  को 12,031 वोटों के अंतर से हराया था. कांग्रेस के बाबू रामनरेश तीसरे स्थान पर रहे थे. 

2003 विधानसभा चुनाव में बसपा के लाखन सिंह बघेल ने बीजेपी के रणवीर रावत को 5,340 वोटों के अंतर से हराया था. इसके बाद और पहले कभी भी बसपा के उम्मीदवार ने यहां जीत दर्ज नहीं की है. 

 

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