कोरोना काल में मध्य प्रदेश सरकार बेच रही इम्युनिटी बूस्टर कपड़े, संक्रमण से बचाव में हैं कारगर
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कोरोना काल में मध्य प्रदेश सरकार बेच रही इम्युनिटी बूस्टर कपड़े, संक्रमण से बचाव में हैं कारगर

मध्य प्रदेश हस्त शिल्प विकास निगम के एमडी और विभाग के आयुक्त राजीव शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद में इन वस्त्रों को आयुर्वस्त्र कहा गया है. प्राचीन जड़ी-बूटियों और परंपरागत मसालों का उपयोग करके इन वस्त्रों को बनाया जाता है. 

आर्युवस्त्र.

भोपाल: कोरोना संक्रमण काल में जब लोग इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को लेकर काफी सजग हो गए हैं तो फिर आउट फिट के मामले में कैसे पीछे रहा जा सकता है. मध्य प्रदेश सरकार के हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास निगम ने हर्बल ट्रीटमेंट के साथ कपड़े तैयार किए हैं, जो इम्युनिटी बूस्ट करते हैं और त्वचा पर कोरोना संक्रमण के खतरे से बचाव करते हैं. ये मेडिसिनल गारमेंट पहनने पर आसपास एक सुरक्षा कवच तैयार हो जाता है, जो हिन्दुस्तानी मसालों की खुशबू से महकता भी है और संक्रमण का खतरा भी दूर करता है.

मध्य प्रदेश हस्त शिल्प विकास निगम के एमडी और विभाग के आयुक्त राजीव शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद में इन वस्त्रों को आयुर्वस्त्र कहा गया है. प्राचीन जड़ी-बूटियों और परंपरागत मसालों का उपयोग करके इन वस्त्रों को बनाया जाता है. इनमें उन मसालों और जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो इम्युनिटी बूस्टर कही जाती हैं. इस प्रयोग से मध्य प्रदेश का नाम देश में ही नहीं विदेशों में मशहूर हो सकता है. इन वस्त्रों को लेकर लोगों में खासी दिलचस्पी देखी जा रही है.

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हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे विनोद मालेवार ने इन आयुर्वस्त्रों को तैयार करने की जिम्मेदारी उठाई है. मालेवार बताते हैं कि प्रशिक्षित रंगरेजों के जरिए इन वस्त्रों को तैयार किया जाता है. इसके लिए कुछ खास तरह के मसालों का इस्तेमाल किया जाता है, जो इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर उपयोग में लिए जाते हैं. इनमें जावित्री, जायफल, चक्रफूल, बड़ी इलायची, छोटी इलायची, लौंग, शाही जीरा और हल्दी जैसी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है. इनका उल्लेख यजुर्वेद में भी मिलता है. 

इन मसालों को खलबट्टे में पीसा जाता है. मसालों के तैयार पाउडर को गर्म पानी में 48 घंटे तक रखा जाता है. फिर भट्टी में वाष्पीकरण किया जाता है. इससे पहले कपड़े को खास तरह से तहों में लपेटा जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में चार से पांच दिन लगते हैं. इसके बाद आयुर्वस्त्र या मेडिसिनल क्लॉथ तैयार होता है.

मालेवार ने कहा कि इन वस्त्रों तरावट देने वाली खुशबू आती है. इन्हें धोने के लिए डिटर्जेंट का उपयोग नहीं किया जाए तो चार से पांच धुलाई तक इन जड़ीबूटियों का कपड़ों में असर रहता है. पीढ़ियों से कपड़ों पर रंगरेजी करने वाले विनोद मालेवार कहते हैं कि कोरोना काल में आयुर्वस्त्र काफी कारगर साबित हो सकते हैं.

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