सागर/महेंद्र दुबे: आज पूरे देश में उत्साह के साथ होलिका दहन किया जाएगा, होलिका के पुतलों को जलाकर लोग होली की शुरुआत करेंगे. लेकिन प्रदेश के सागर जिले में एक गांव ऐसा है. जहां होलिका जलाने पर पाबंदी है. ये पाबंदी आज की नहीं बल्कि दशकों से यहां होलिका जलाने पर रोक है. जानिए आखिर इसके पीछे क्या रहस्य है.
आज पूरे देश में उत्साह के साथ होलिका दहन किया जाएगा, होलिका के पुतलों को जलाकर लोग होली की शुरुआत करेंगे.
लेकिन प्रदेश के सागर जिले में एक गांव ऐसा है. जहां होलिका जलाने पर पाबंदी है. ये पाबंदी आज की नहीं बल्कि दशकों से यहां होलिका जलाने पर रोक है.
ये पाबंदी सरकार या प्रशासन ने नहीं लगाई बल्कि एक देवी की वजह से यहां लोग होलिका दहन करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते और यदि गांव में होली जली तो समझो तबाही आ जायेगी.
दरअसल एमपी के सागर जिले के देवरी थानां क्षेत्र के हथखोय गांव देश के दूसरे गांव से अलग है. जहां होलिका जलाना मतलब आफत मोल लेना है.
आदिवासियों के इस हथखोय गांव मे मान्यता है कि होली जलाने के बाद यहां एक देवी है, जो नाराज हो जाती है और फिर उनका प्रकोप देखने को मिलता है. कई पीढ़ियों पहले यहां पाबंदी लगाई गई और आजतक उसका पालन किया जा रहा है.
देवरी ब्लॉक का ये गांव प्राकृतिक सुंदरता की नजीर है. खुले वातावरण के बीच यहां आदिवासियों का बसेरा कई पीढ़ियों से है. इसी गांव में एक प्रसिद्ध झारखण्डन माता का मंदिर है. इस प्राचीन मंदिर में विराजमान माता झारखण्डन आदिवासियों की आराध्य देवी है.
माना जाता है कि देवी को होलिका दहन पसंद नहीं है. बुजुर्ग बताते हैं कि सौ सालों से भी पहले इस गांव में होलिका को जलाया गया तो अचानक पूरे गांव में आग लग गई. लोगों ने झारखण्डन माता के दरबार मे हाजिरी लगाई तो आग का तांडव कम हुआ.
पुजारी के अनुसार होलिका दहन के दूसरे दिन गांव में बाकायदा लोग रंग गुलाल उड़ाते है, गीत संगीत का कार्यक्रम होता है. लेकिन होलिका दहन की रात गांव में सन्नाटा पसरा रहता है.
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