वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी पढ़ा ये शेर, जानिए इसका मतलब?
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी पढ़ा ये शेर, जानिए इसका मतलब?

"यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है और हवा का सहारा लेकर भी चिराग जलता है''

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी पढ़ा ये शेर, जानिए इसका मतलब?

नई दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) की तारीखों की घोषणा कर दी है. मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने दिल्ली के विज्ञान विभन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनावों की तारीखों की घोषणा की. इस दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कोविड गाइडलाइन्स के अनुसार ही चुनाव कराए जाएंगे और महामारी से निकलने का यकीन जरूरी है. उन्होंने कहा कि "यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है और हवा का सहारा लेकर भी चिराग जलता है'' जिसका मतलब है कि अगर आपको खुद पर यकीन हो तो हवा का सहारा लेकर भी चिराग जल जाता है.

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दरअसल संविधान के आर्टिकल 172 में कहा गया है कि किसी भी चुनी हुई सरकार, विधायिका का कार्यकाल 5 साल का होगा, इसलिए चुनाव कराना जरूरी है. इसी को मद्देनजर रखते हुए इलेक्शन कमीशन ने चुनाव कराने का ऐलान किया है. इसी कड़ी में इलेक्शन कमीशन ने ये शेर पढ़ा. 

निर्मला सीतारमण ने पहले पढ़ा ये शेर
आपको बता दें कि 5 जुलाई 2019 को भारत में पहली बार किसी महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण  ने बजट पेश किया था. (हालांकि इंदिरा गांधी ने भी किया था, लेकिन वो प्रधानमंत्री भी थीं). आमतौर पर अंग्रेज़ी में बात करने वालीं सीतारमण ने बजट में वो ही एक शेर पढ़ा जो आज मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी पढ़ा. ये शेर था यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी लेकर चिराग जलता है. 

कौन थे मंजूर हाशमी?
ये शेर मंजूर हाशमी का हैं. वही मंज़ूर हाशमी जिनकी पैदाइश बदायूं की है. 14 सितंबर 1935 की. इनकी शुरुआत की पढ़ाई लिखाई हल्दवानी में हुई और फिर वो अलीगढ़ में बस गए. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया, पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया और रिटायर भी यूनीवर्सिटी की मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में डिप्टी लाइब्रेरियन के पद से हुए.

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पेश है मंज़ूर हाशमी की गज़ल पढ़िए - 

यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी लेकर चिराग जलता है
सफर में अब के ये तुम थे कि खुश गुमानी थी
यही लगा कि कोई साथ-साथ चलता है
गिलाफ-ए-गुल में कभी चांदनी के पर्दे में
सुना है भेष बदलकर भी वो निकलता है
लिखूं वो नाम तो कागज़ पे फूल खिलते हैं
करूं खयाल तो पैकर किसी का ढलता है
रावण दावन है उधर ही तमाम खल्क-ए-खुदा
वो खुश खिराम जिधर सैर को निकलता है

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