सिंधिया की राह पर अरुण यादव? कमलनाथ को दी चुनौती! किया बड़ा ऐलान
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सिंधिया की राह पर अरुण यादव? कमलनाथ को दी चुनौती! किया बड़ा ऐलान

अरुण यादव (Arun Yadav) के पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सुभाष यादव (Subhash Yadav) ने भी 23 साल पहले खलघाट में ही रैली कर अपनी ताकत का एहसास पार्टी नेतृत्व को कराया था, जिसके बाद ही उन्हें दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) की सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया था.

फाइल फोटो

भोपालः मध्य प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ (Kamalanath) और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव (Arun Yadav) के बीच की तनातनी सुर्खियों में बनी हुई है. खंडवा लोकसभा उपचुनाव के समय से ही दोनों नेताओं के बीच के मतभेद दिखाई दे रहे हैं लेकिन अब इस मतभेद की खाई गहरी होती जा रही है. बता दें कि खंडवा लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस (Congress) की हार के बाद कमलनाथ ने अरुण यादव के करीबी पदाधिकारियों को पद से हटा दिया. इसे परोक्ष रूप से अरुण यादव के लिए झटके के तौर पर देखा गया. ऐसे में अरुण यादव (Arun Yadav) ने भी प्रदेश नेतृत्व को अपनी ताकत का एहसास कराने का फैसला किया है. 

खलघाट में रैली करेंगे अरुण यादव (Arun Yadav)
अरुण यादव ने खलघाट में रैली करने का ऐलान किया है. अरुण यादव के इस ऐलान को उनके शक्ति प्रदर्शन से जोड़कर देखा जा रहा है. खास बात ये है कि खलघाट में होने वाली रैली के बारे में प्रदेश नेतृत्व से ना इजाजत ली गई है और ना अभी तक इसकी सूचना दी गई है. खलघाट (Khalghat) की रैली के जरिए अरुण यादव प्रदेश नेतृत्व को संदेश देना चाहते हैं कि मालवा निमाड़ क्षेत्र में वहीं कांग्रेस का चेहरा हैं और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. हालांकि अभी रैली की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है. उल्लेखनीय है कि अरुण यादव के पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सुभाष यादव ने भी 23 साल पहले खलघाट में ही रैली कर अपनी ताकत का एहसास पार्टी नेतृत्व को कराया था, जिसके बाद ही उन्हें दिग्विजय सिंह की सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया था. ऐसे में अरुण यादव की इस रैली को भी बेहद अहम माना जा रहा है. 

कांग्रेस पार्टी में पिछड़े वर्ग का चेहरा हैं अरुण यादव
अरुण यादव कांग्रेस पार्टी में पिछड़े वर्ग का चेहरा माने जाते हैं. ये बात इतनी अहम है कि मध्य प्रदेश अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के प्रभुत्व वाला राज्य है और यहां 52 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से आते हैं. साल 2000 के बाद से भाजपा के तीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान अन्य पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं. यही वजह है कि अरुण यादव के कद का नेता कांग्रेस की जरूरत है.

पार्टी में हाशिए पर पहुंच गए थे अरुण यादव!
2013 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने अरुण यादव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था. जिसके बाद अरुण यादव ने भी जमकर मेहनत की और शिवराज सरकार के खिलाफ कई बार सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया. अरुण यादव ने कोशिश कर 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई. हालांकि चुनाव से कुछ समय पहले ही अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद अरुण यादव को 2018 के विधानसभा चुनाव में सीएम शिवराज के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया. हालांकि अरुण यादव को हार का सामना करना पड़ा. इसका असर ये हुआ कि 2018 में कांग्रेस की सरकार तो सत्ता में आ गई लेकिन अरुण यादव एक तरह से साइडलाइन हो गए. इस बीच कांग्रेस की सरकार भी गिर गई. 

खंडवा उपचुनाव से शुरू हुई कलह
बीते दिनों जब खंडवा लोकसभा सीट के सांसद नंदकुमार चौहान के निधन के बाद खंडवा लोकसभा सीट पर फिर से उपचुनाव हुए तो अरुण यादव भी सक्रिय हो गए. अरुण यादव की सक्रियता को उनकी दावेदारी के तौर पर देखा गया लेकिन कमलनाथ ने यह कहकर अरुण यादव की दावेदारी खारिज कर दी कि उनकी तरफ से दावेदारी की कोई बात  नहीं कही गई है और टिकट सर्वे के आधार पर तय होगा. 

टिकट की राह मुश्किल देख अरुण यादव ने भी टिकट की दावेदारी से खुद को पीछे खींच लिया और पार्टी ने राजनारायण सिंह पुरनी को टिकट दिया. हालांकि खंडवा उपचुनाव में हार के साथ ही पार्टी के भीतर की कलह जगजाहिर हो गई. राजनारायण सिंह पुरनी ने आरोप लगाया कि संगठन के लोगों ने काम नहीं किया, जिसकी वजह से उनकी हार हुई. राजनारायण सिंह का सीधा निशाना अरुण यादव गुट के पदाधिकारियों पर था. 

इसके बाद कमलनाथ ने भी कार्रवाई करते हुए खंडवा जिले के कई पदाधिकारियों को पद से हटा दिया. जिससे कमलनाथ और अरुण यादव के बीच की तनातनी और गहराती नजर आ रही है. गौरतलब है कि इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच भी ऐसी ही तनातनी हुई थी, जिसके चलते कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए. ऐसे में कयास लग रहे हैं कि क्या अरुण यादव भी सिंधिया की राह पर हैं? हालांकि अरुण यादव भाजपा में शामिल होने की बात से साफ इंकार कर चुके हैं. 

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