लाइफ मैनेजमेंट सिखाती है भगवद गीता, इन बातों को जरूर जानिए
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh1145699

लाइफ मैनेजमेंट सिखाती है भगवद गीता, इन बातों को जरूर जानिए

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जून के माध्यम से मनुष्य को कैसे जीवन जीना चाहिए इसके बारे में बताते हैं. ऐसे में हम आज आपको भगवद गीता की कुछ महत्वपुर्ण श्लोकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हमें लाइफ मैनेजमेंट की कला सीखाती है. 

लाइफ मैनेजमेंट सिखाती है भगवद गीता, इन बातों को जरूर जानिए

भोपालः मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में आयोजित युवा संसद में ऐलान किया है कि अब प्रदेश के कॉलेजों में भगवद गीता पढ़ाई जाएगी. ऐसे में कुछ लोगों के मन में सवाल उठ सकता है कि भगवद गीता से ऐसा क्या खास है, जिसे सरकार कॉलेजों में खास तौर पर पढ़ाने जा रही है. आइए जानते हैं कि भगवद गीता में कौन से वो महत्वपूर्ण उपदेश हैं जो मनुष्य जीवन में मार्गदर्शक का काम करते हैं? बता दें कि महाभारत के युद्ध क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था. उस उपदेश को मानव जीवन का सार माना जाता है. जिसे हम भगवद गीता कहते हैं. तो आइए जानते हैं कि भगवद गीता से हमें क्या सीख मिलती है और इसमें जीवन जीने के क्या सूत्र बताए गए हैं. 

1. नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
     शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण।।
      
अर्थः मनुष्य को हमेशा अपने धर्म के हिसाब से कर्म करना चाहिए.
 
मैनेजमेंट सूत्रः भगवान कृष्ण अर्जुन के माध्यम से मनुष्य को बताना चाहते हैं कि हर मनुष्य को अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए. जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना है वैसे ही मनुष्य को अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए.

2.यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। 
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।

अर्थः श्रेष्ठ मनुष्य को हमेशा मधुर व्यवहार करना चाहिए. क्योंकि और भी लोग आपके व्यवहार को धारण करते हैं.

मैनेजमेंट सूत्रः जो व्यक्ति किसी बडे़ पद पर आसीन होता है. उसे अपने पद की गरिमा के हिसाब से व्यवहार करना चाहिए. क्योंकि जो व्यवहार श्रेष्ठ पुरुष करता है, सामान्य व्यक्ति उसे अपना आदर्श मान अपने जीवन में अपनाते हैं.

3.त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तरमादेतत्त्रयं त्यजेत्।।

अर्थ: काम, क्रोध व लोभ, यह तीन प्रकार के नरक के द्वार हैं, जो आत्मा का नाश करने वाले हैं, अर्थात् बर्बाद करने वाले हैं, इसलिए मनुष्य को इन तीनों को त्याग करना चाहिए.

मैनेजमेंट सूत्र: मनुष्य में काम यानी इच्छाएं, गुस्सा व लालच ही सभी बुराइयों के मूल कारण हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने काम, क्रोध व लोभ को नरक का द्वार कहा है. क्योंकि जिस मनुष्य के भीतर ये 3 बुराईयां होती हैं, वे हमेशा दूसरों को दुख पहुंचाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे रहते हैं. इसलिए अगर आप किसी लक्ष्य को पाना चाहते हैं तो ये इन तीनों अवगुणों की त्याग करनी पड़ेगी. क्योंकि जब तक ये बुराईयां आपके मन में रहेंगी, तब तक हम अपने लक्ष्य से भटकते रहेंगे.

4.तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।

अर्थ: श्रीकृष्ण अर्जुन से बताते हैं कि मनुष्य को चाहिए कि वह संपूर्ण इंद्रियों को अपने वश में कर लें, क्योंकि जिस पुरुष की इंद्रियां वश में होती हैं, उसकी ही बुद्धि स्थिर होती है.

मैनेजमेंट सूत्र: जीभ, त्वचा, आंखें, कान, नाक आदि मनुष्य की इंद्रियां कही गई हैं. जिसके माध्यम से मनुष्य तमाम सांसारिक सुखों का भोग करता है. जैसे- जीभ अलग-अलग स्वाद चखकर तृप्त होती है, सुंदर दृश्य देखकर आंखों को अच्छा लगता है. श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो मनुष्य अपनी इंद्रीयों पर काबू रखता है उसी की बुद्धि स्थिर होती है. जिसकी बुद्धि स्थिर होगी, वही व्यक्ति अपने क्षेत्र में बुलंदी की ऊंचाइयों को छूता है.

5. योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

अर्थ: अर्जुन को उपदेश देते हुए कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योगयुक्त होकर, कर्म कर, समत्व करने को ही योग कहते हैं.

मैनेजमेंट सूत्र: धर्म का वास्तविक अर्थ होता है कर्तव्य, लेकिन हम धर्म के नाम पर अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं. हिंदू धर्म के ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है. भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ के बारे में नहीं सोचना चाहिए. बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य पर टिकाकर काम करने से परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति मिलेगी जिससे परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा.

6. नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।

अर्थ: जो पुरुष योगरहित है, उसमें निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती. इस तरह के भावनारहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा.

मैनेजमेंट सूत्र: हम सभी की इच्छा होती है कि हमें सुख की प्राप्ति हो, इसके लिए हम भटकते रहते हैं, लेकिन सुख का मूल तो अपने मन में स्थित होता है. जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में लिप्त है, उसके मन में भावना ( आत्मज्ञान) नहीं होती. जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं होती, उसे शांति कभी नहीं मिलती है. इसलिए सुख की प्राप्ति के लिए मन पर नियंत्रण होना बहुत आवश्यक है.

ये भी पढेंः हिंदू धर्म ग्रंथों को कॉलेजों में पढ़ाने पर विवाद, अन्य धर्मों को भी करेंगे शामिल?

7. विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।

अर्थ: जो मनुष्य के भीतर सभी कामनाओं व अहंकारों को त्याग कर अपने कर्तव्यों का पालन करता है वो हमेशा सुखी रहता है.

मैनेजमेंट सूत्र: भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे है कि मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व कामना को रखने वाले मनुष्य को कभी शांति नहीं मिल सकती है. शांति प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने मन से इच्छाओं को मिटाना होगा. हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ अपने अपेक्षित परिणाम को साथ में चिपका देते हैं. अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें कमजोर कर देती है. मन से ममता अथवा अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से अपने कर्तव्यों का पालन करने से मनुष्य को शांति प्राप्त होगी.

ये भी पढेंः MP में भगवद गीता पर सियासी रार! कांग्रेस ने बताया एजेंडा तो बीजेपी ने दे दी ये सलाह

WATCH LIVE TV

Trending news