ऐसा मंदिर जहां 'मां' को लगता है मदिरा का भोग, कलेक्टर खुद चढ़ाते हैं शराब, भक्तों में बांटा जाता है प्रसाद
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ऐसा मंदिर जहां 'मां' को लगता है मदिरा का भोग, कलेक्टर खुद चढ़ाते हैं शराब, भक्तों में बांटा जाता है प्रसाद

उज्जैन में देवी का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां नवरात्र की महाअष्टमी के दिन मां को मदिरा का भोग लगता है. इस दिन यहां कलेक्टर माता को शराब की धार से भोग लगाते हैं. जानिए चौबीस खंबा माता मंदिर की परंपरा.

ऐसा मंदिर जहां 'मां' को लगता है मदिरा का भोग, कलेक्टर खुद चढ़ाते हैं शराब, भक्तों में बांटा जाता है प्रसाद

राहुल राठौड़/उज्जैन: नवरात्र में जहां एक ओर लोग मांस और मदिरा के सेवन से बचते हैं. वहीं उज्जैन में चौबीस खंबा माता मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां महाअष्टमी को माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है. इतना ही नहीं इस मंदिर में आने वाले भक्तों को भी प्रसाद के रूप में शराब ही बांटी जाती है. नवरात्र के दिनों में यहां बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जानकारी के अनुसार मंदिर में ये परंपरा राजा विक्रमादित्य के शासन काल से चली आ रही है.

निकाली जाती है नगर पूजन यात्रा
चौबीस खंबा माता मंदिर में देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित है. जहां अल सुबह पूजन के बाद नगर पूजन यात्रा शुरू होती है. माना जाता है सम्राट राजा विक्रमादित्य इन देवियों की आराधना किया करते थे. उन्हीं के समय से नवरात्रि के महाअष्टमी पर्व पर यहां सरकारी अधिकारी के द्वारा पूजन किये जाने की परम्परा चली आ रही है. हालांकि इस साल सरकारी अधिकारी के स्थान पर इस पूजा में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज शामिल हुए.

क्या होती है नगर पूजन
चौबीस खंबा मंदिर में पूजन के बाद कोतवाल एक हांडी में शराब लिए जिसमें छोटा सा छेद होता है 27 किलोमीटर तक पैदल भ्रमण कर मार्ग में आने वाले करीब 40 मंदिरों में धार को अर्पित करते हैं. ये सिलसिला देर शाम तक चलता है. राजाओं के शासनकाल के पश्चात जागीरदार, जमीनदार द्वारा यहां पर देवियों का पूजन किया जाने लगा और यह परम्परा आज भी लगातार चल रही है.

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जानिए मंदिर की मान्यता
उज्जैन नगर में प्रवेश का प्राचीन चौबीस खंबा माता का द्वार माना जाता है. नगर रक्षा के लिये यहां चौबीस खंबे लगे हुए थे, इसलिये इसे चौबीस खंबा द्वार कहते हैं. मान्यता है कि प्राचीन समय में इस द्वार पर 32 पुतलियां विराजमान थीं. यहां हर रोज एक राजा आता था, जिससे पुतलियां प्रश्न पूछती थीं. राजा इतना घबरा जाता था कि डर की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती थी. जब विक्रमादित्य की बारी आई तो उन्होंने नवरात्रि की महाअष्टमी पर देवी की पूजा की और पुतलियों के प्रश्नों का उत्तर दिया. तब उन्हें माता का आशीर्वाद मिला.

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