काशी-मथुरा ही नहीं, मध्यप्रदेश के इन मंदिरों पर भी है विवाद, कहीं लटका ताला तो कहीं मस्जिद का नाम आया सामने
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काशी-मथुरा ही नहीं, मध्यप्रदेश के इन मंदिरों पर भी है विवाद, कहीं लटका ताला तो कहीं मस्जिद का नाम आया सामने

500 साल के लंबे विवाद के बाद अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Mandir-Babri Masjid dispute) खत्म हुआ और अब अयोध्या में भव्य श्री राम का मंदिर बनाया जा रहा है.

काशी-मथुरा ही नहीं, मध्यप्रदेश के इन मंदिरों पर भी है विवाद, कहीं लटका ताला तो कहीं मस्जिद का नाम आया सामने

MP Temple controversy: 500 साल के लंबे विवाद के बाद अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Mandir-Babri Masjid dispute) खत्म हुआ और अब अयोध्या में भव्य श्री राम का मंदिर बनाया जा रहा है. ये विवाद तो खत्म हो गया लेकिन अभी भी देश के अंदर कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिसे लेकर आए दिन विवाद होते रहता हैं.  ऐसे में हम आपको कुछ विवादित धार्मिक स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं...

1. धार का भोजशाला मंदिर (Dhar Bhojshala)
मध्य प्रदेश के धार जिले में भोजशाला सरस्वती मंदिर स्थित है. भोजशाला संरक्षित धरोहर होकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है. यहां हिंदू समुदाय प्रति मंगलवार यहां हनुमान चालिसा का पाठ कर पूजन करता है. जबकि मुस्लिम समुदाय को शुक्रवार के दिन दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज की अनुमति रहती है. हर साल भोज उत्सव समिति द्वारा बसंत पंचमी पर मां वाग्देवी सरस्वती जन्मोत्सव भोजशाला में सूर्योदय से सूर्यास्त तक धूमधाम से मनाया जाता है. वहीं बसंत पंचमी और शुक्रवार एक ही दिन आने पर विवाद की स्थिति भी बनती है और इसीलिए यह मामला विवादित है. 

बता दें कि सन 1034 में धार के राजा भोज में भोजशाला का निर्माण करवाया था. यहां फिर 1035 में सरस्वती जी की मूर्ति स्थापित की गई. लेकिन 1305 में अक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर दिया. भोजशाला के कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया. इसके बत 1456 में महमूद खिलजी ने भोजशाला परिसर के पास मौलाना कमालुद्दीन की दरगाह और मकबरे का निर्माण करवाया. उसके बाद से ही मुस्लिम इसे मौलाना कमाल मस्जिद के नाम से जानते हैं.

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भोजशाला का अबतक का इतिहास
- धार शासक परमार वंश के राजा भोज ने वर्ष 1034 में सरस्वती सदन और वाग्देवी मूर्ति की स्थापना की थी. तब वहां महाविद्यालय संचालित होता था.
- वर्ष 1456 में मेहमूद खिलजी ने सरस्वती सदन में मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनाई.
- वर्ष 1857 में सरस्वती सदन की खुदाई में वाग्देवी की मूर्ति मिली.
- वर्ष 1909 में धार रियासत ने एन्शिएंट मोन्यूमेंट एक्ट लागू करते हुए भोजशाला परिसर को संरक्षित स्मारक घोषित किया था. आजादी के बाद ये पुरातत्व विभाग के अधीन हो गया.
- वर्ष 1935 में धार रियासत के दीवान ने भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार की नमाज पढ़ने की अनुमति दी.
- भोजशाला में सरस्वती जन्मोत्सव की शुरुआत वर्ष 1952 में केशरीमल सेनापति, प्रेमप्रकाश खत्री, बसंतराव प्रधान, ताराचंद अग्रवाल ने की।
- 4 फरवरी 1991 से प्रति मंगलवार सत्याग्रह शुरू किया गया. यह सत्याग्रह भोजशाला की मुक्ति के नाम पर भोजशाला उत्सव समिति ने शुरू किया था.
- सत्याग्रह में हर मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता था.
- वर्ष 1995 में भोजशाला में विवाद हुआ. इसके बाद मंगलवार को यहां पूजा करने और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई.
- 12 मई 1997 को धार कलेक्टर ने भोजशाला में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन सत्याग्रह जारी रहा. बैरिकेड्स के बाहर से हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता रहा.
- 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भी यहां आम लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी.
- 6 फरवरी 2003 को बसंत पंचमी के दिन नमाज को लेकर भोजशाला में विवाद हुआ. इससे तनाव बढ़ा और 18 फरवरी 2003 को धार में दंगे हुए.

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2. रायसेन सोमेश्वर धाम मंदिर (Raisen someshwar mandir)
मध्यप्रदेश के रायसेन किले पर स्थित प्राचीन सोमेश्वर धाम शिव मंदिर में देश की आजादी के बाद से ताला लगा हुआ है. यह देश का एक मात्र ऐसा शिवालय हैं, जो साल में केवल 12 घण्टों के लिए शिवरात्रि के दिन खोला जाता हैं. पुरातत्व विभाग अपने नियमों का हवाला देकर मन्दिर को पूजन के लिए बंद किये हुए हैं. वहीं आज तक किसी सरकार ने यहां से ताले खोलने का साहस नहीं जुटाया. जबकि रायसेन के शिव भक्त श्रद्धालु हर साल यह मांग शासन प्रशासन से करते आ रहे हैं.

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बता दें कि इस मंदिर को हर वर्ष महाशिवरात्रि के मौके पर सिर्फ 12 घंटे के लिए खोला जाता है.  यह व्यवस्था साल 1974 में बनाई गई थी, जब इस मंदिर को मस्जिद बताए जाने को लेकर कुछ लोगों ने आपत्ति की थी. उस वक्त प्रशासन  ने इस मंदिर के गर्भगृह में ताला डाल रखा है. इसे लेकर कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने यह मुद्दा फिर उठाया है.

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क्यों लगा मंदिर पर ताला
मीडिया रिपोर्ट और पुरातत्वविद के मुताबिक सन् 1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप पहचाना जाता था. इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया. उसके बाद यहां शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई.  लेकिन गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति सहित अन्य चिन्ह स्थापित ही रहे. जिससे साबित हुआ कि ये मंदिर ही है.

3. अमरकंटक का ज्वालेश्वर महादेव धाम (Jwaleshwar mandir)
इस मंदिर को लेकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच कई बार सीमा विवाद का मुद्दा उठा है. वहीं एक और विवाद ज्वालेश्वर महादेव मंदिर (Jwaleshwar Mahadev Mandir)  को लेकर भी है. मध्यप्रदेश की अमरकंटक नगर पंचायत ने मंदिर की दीवार अपना बोर्ड लगाया था. लेकिन ये मंदिर छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के गौरेला नगरपंचायत में दर्ज है. मंदिर के पुजारी इसे छत्तीसगढ़ का हिस्सा ही मानते हैं.

4. भोपाल में जामा मस्जिद पर विवाद (Jama masjid)
काशी की ज्ञानवापी मस्जिद पर चल रहे विवाद के बीच मध्यप्रदेश के कई शहरों में  भी मस्जिद के अंदर मंदिर के दावे सामने आने लगे हैं. जिसपर समय-समय पर काफी राजनीति भी होती आ रही है. वहीं भोपाल में संस्कृति बचाओ मंच ने दावा किया है कि जामा मस्जिद पहले शिव मंदिर था. उसे तोड़कर जामा मस्जिद बनाई गई है. इसे लेकर चौक बाजार स्थित जामा मस्जिद में पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराने की मांग की गई है. संस्कृति बचाओ मंच ने इस मामले को कोर्ट में उठाने की बात कही है.

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5. इंदौर में बोलिया सरकार शिव मंदिर (indore boliya shiv mandir)
वहीं इंदौर के एमजी रोड इलाके में बोलिया सरकार छत्री में शिव मंदिर स्थापित है. यह मंदिर 200 वर्ष पुराना बताया जाता है.  इंदौर के इतिहास को जानने वालों के मुताबिक यह चिमनजी राव अप्पा बोलिया सरकार का स्मारक है. यहां राजा और उनकी पत्नी के अलावा भगवान शिव और नंदी की स्थापना प्राचीन वक्त में की गई थी. कुछ साल तो सब कुछ ठीक रहा फिर मंदिर  की अनदेखी होने लगी. राज परिवार की अगली पीढ़ी के सदस्य नरेंद्र बोलिया यहां एक पुजारी भी रखा था, लेकिन फिर उनके निधन के बाद मंदिर में पूजा का सिलसिला रुक गया. तभी से इस मंदिर पर ताला लगा हुआ है. अब यह मंदिर कई वर्षों से पुरातत्व विभाग के पास है. जिसे क्षेत्र को लोग खोलने का अनुरोध कर रहे है.

6. उज्जैन की बिना नींव वाली मस्जिद 
वहीं महाकाल की नगरी उज्जैन में भी अखंड हिंदू सेना औऱ महामंडलेश्वर अतुलेशानंद ने दावा किया है कि उज्जैन के दानी गेट पर बनी बिना नींव की मस्जिद में प्राचीन शिव मंदिर है. इस मस्जिद में भगवान गणेश की मूर्ति भी मौजूद है. महामंडलेश्वर ने कहा है कि मस्जिद की जांच कराई जाए जिससे सच सामने आए. इसके अलावा 

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7. विदिशा का प्रसिद्ध विजय मंदिर (Vidisha vijay mandir)
रायसेन में शिव मंदिर खुलनावे की मांग के बीच विदिशा के प्रसिद्ध विजय मंदिर खुलवाने की मांग तेज हो गई है. विदिशा के मध्य में बना यह विजय मंदिर में 71 वर्षो से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का ताला लटका हुआ है. यहां लोगों को दर्शन करने की इजाजत नहीं है. इस मंदिर का ताला खुलवाने के लिए शहर में कई आंदोलन हुए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. बता दें कि विदिशा के प्राचीन विजय मंदिर को सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर में अभी सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही बंद ताले के बाहर से पूजा करने की अनुमति है. 

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