बचपन में मजदूरों के लिए अपने पिता से ही भिड़ गए थे सीएम शिवराज, जानिए रोचक किस्सा
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बचपन में मजदूरों के लिए अपने पिता से ही भिड़ गए थे सीएम शिवराज, जानिए रोचक किस्सा

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमेशा जनता के बीच रहते हैं. वह जनता का दुख दूर करने के लिए हर वक्त खड़े रहते हैं. सीएम शिवराज की इसी खासियत के चलते वह जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. 

बचपन में मजदूरों के लिए अपने पिता से ही भिड़ गए थे सीएम शिवराज, जानिए रोचक किस्सा

भोपाल। मध्य प्रदेश में ''मामा'' के नाम से मशहूर प्रदेश मुखिया शिवराज सिंह चौहान की छवि देश में एक ऐसे नेता की है, जो हर वक्त जनता के लिए खड़े नजर आते हैं, चाहे परेशानी कैसी भी क्यों न हो. हाल ही में जब प्रदेश के कई जिलों में बाढ़ ने अपना कहर दिखाया तो जनता की मदद के लिए सीएम शिवराज ने आगे आकर सबसे पहले मोर्चा संभाला. विदिशा जिले में तो मुख्यमंत्री खुद बाढ़ के पानी में उतरकर जनता के बीच पहुंचे और उन्हें मदद का भरोसा दिलाया. लेकिन ऐसा नहीं है कि राजनीति में आने के बाद ही सीएम शिवराज जनता के बीच पहुंचते हैं, बल्कि उनमें यह गुण बचपन से ही. क्योंकि बचपन में मजदूरों के लिए सीएम शिवराज अपने पिता से ही भिड़ गए थे. उनके जीवन का यही रोचक किस्सा हम आपको बताते हैं. 

मजदूरों के लिए छेड़ दिया था आंदोलन 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जन्म 5 मार्च 1959 को सीहोर जिले के जैत गांव में किसान प्रेम सिंह चौहान के घर में हुआ था. शिवराज सिंह चौहान में नेतृत्व के गुण बचपन में ही दिखने लगा था. जब वे अपने खेतों में मजदूरी करने वाले मजदूरों के लिए अपने पिता प्रेम सिंह से ही भिड़ गए थे. दरअसल, खुद सीएम शिवराज भी यह किस्सा कई बार बता चुके हैं. उन्होंने अपने ही गांव में मजदूरों की मेहनत का पैसा दोगुना करने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ दिया था और उन्हें इसमें सफलता भी मिली थी.

9 साल की उम्र में किया था मजदूरों के लिए आंदोलन 
दरअसल, जब सीएम शिवराज 9 साल के थे, तब उनके गांव में मजदूरों की मजदूरी बहुत कम थी. ऐसे में उन्होंने एक दिन गांव के सभी मजदूरों को एकजुट किया और उनसे कहा कि जब तक उनकी मजदूरी दोगुनी न हो जाए तब तक किसी के यहां काम मत करना. मजदूरों ने भी बात मान ली, जिसके बाद मजदूरों का जुलूस लेकर शिवराज नारे लगाते हुए पूरे गांव में घूमे जिससे मजदूरों का हौसला और बढ़ गया. एक बच्चा मजदूरों के नेतृत्व का आंदोलन कर रहा था, यह देखकर गांव के लोग भी हैरान रह गए. उस वक्त सीएम ने नारा भी दिया था  ''मजदूरों का शोषण बंद करो, ढाई पाई नहीं-पांच पाई दो''. 

परिजनों से पड़ी थी डांट 
शिवराज सिंह चौहान के आंदोलन का असर यह हुआ कि उनके घर पर काम करने वाले मजूदर भी नहीं आए जिससे उनके घर का काम भी बंद हो गया. इसके लिए उन्हें अपने पिता और चाचा से डांट भी खानी पड़ी. जबकि घर का पूरा काम भी उन्ही को करना पड़ता था. लेकिन मजदूरों के लिए शिवराज अपने पिता से भी भिड़ गए. लेकिन उन्होंने मजदूरों को तब तक काम पर नहीं आने दिया जब तक उनकी मजदूरी दोगुनी नहीं हो गई. आखिरकार मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने के लिए हुए इस आंदोलन में सीएम शिवराज की जीत हुई और गांव के सभी मजदूरों की मजदूरी बढ़ी. 

जन-जन के प्रिए हैं सीएम शिवराज 
यह सीएम शिवराज के जीवन का पहला आंदोलन था और उन्हें पहले ही आंदोलन में सफलता मिली थी. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. विद्यार्थी परिषद से शुरू हुआ उनका राजनीतिक सफर आज देश के सबसे सफलतम मुख्यमंत्री के तौर पर जारी है. वह 17 सालों से प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं.  शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता को कमान मिलने के बाद लोक कल्याण और अंत्योदय की दिशा में काम करना शुरू किया. विद्यार्थियों को स्कूल जाने लिए साइकिल देना, तीर्थ दर्शन योजना या निर्धारित समय में नागरिक सेवाओं की गारंटी की बात हो, लाडली लक्ष्मी योजना, विधवा पेशन योजना, वृद्धा पेशन जैसी योजनाएं प्रदेश में उनकी पहचान है. किसान, गरीब, बेरोजगार, बुजुर्ग, युवा, बच्चे, महिलाएं सीएम शिवराज ने हर वर्ग का ध्यान रखा है. उनकी इसी सोच का नतीजा है कि आज मध्य प्रदेश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है.

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