MP News: एमपी (Madhya pradesh) के झाबुआ जिले में कम्युनिटी रेडियो (community radio) ने आदिवासियों (tribals) को नई पहचान दी है. इसके जरिए यहां पर स्थानीय भाषा में प्रसारण किया जाता है. महान क्रांतिकारी टंट्या मामा के नाम पर सामुदायिक रेडियो की शुरूआत हुई और धीरे-धीरे इसकी अलग पहचान बन गई.
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World Radio Day: आज वर्ल्ड रेडियो दिवस है. इस डिजिटल युग में रेडियो का प्रसारण पहले से काफी ज्यादा बढ़ गया है. मध्य प्रदेश (MP ) के आदिवासी बाहुल्य जिला झबुआ (Jhabua) में भी इसी तरह का एक रेडियो चैनल चलता है, जो वहां के लोगों को एक अलग पहचान दे रहा है. आज से चार महीने पहले तक इस जिले के गडवाड़ा गांव का रहन-सहन बिल्कुल सामान्य था लेकिन अब यहां के लोग अपने ही गांव में बने कम्युनिटी रेडियो (community radio) से पहचाने जाते हैं. क्या है इस रेडियो की खासियत आइए जानते हैं.
भीली भाषा में कार्यक्रम होता है प्रसारित
झाबुआ जिले के इस गांव में रेडियो के प्रति अलख स्थानीय लोगों ने जगाई. इसके तहत महान क्रांतिकारी टंट्या मामा के नाम पर सामुदायिक रेडियो की शुरूआत हुई और धीरे - धीरे इस पर प्रसारण होने लगा. इस रेडियो के द्वारा भीली भाषा में कार्यक्रम का प्रसारण किया जाने लगा और आदिवासी लोगों का रूख इसके तरफ बढ़ गया. इस रेडियो के माध्यम से लोगों को न केवल मनोरंजन होता है बल्कि सामान्य जानकारी भी मिलती है. जिसकी वजह से ये रेडियो स्टेशन चर्चा में बना हुआ है.
बैतूल में भी होता है प्रसारण
एमपी के बैतूल में भी कुछ इसी तरह से रेडियो स्टेशन में प्रसारण किया जाता है. जिले के चिचोली में गुनेश मरकाम और उनके साथी मिलकर गोंड भाषा में कार्यक्रम बनाते हैं और प्रसारित करते हैं. इस रेडियो के जरिए बैतुल जिले के 15 - 20 गांव के लोगों में गुनेश की अच्छी खासी पकड़ हो गई है. स्थानीय लोगों की माने तो इस रेडियो के द्वारा लाखों ग्रामीणों आदिवासियों और वंचित लोगों को आवाज मिल रही है, जिन्हें अब तक अनसुना कर दिया गया था. यहां के निवासियों का कहना है कि सामुदायिक रेडियों के द्वारा ही लोग अपने मन पसंद के गाने और लोक गीत सुनते हैं और पीएम मोदी की मन की भी बात सुनते हैं.