ग्रामीण-आदिवासी अंचलों में बीमारियों का जानलेवा देशी तरीके से उपचार करने के नाम पर गर्म सलाखों से दागने का अंधविश्वास प्रचलित है. इस वजह से कई मासूम सही उपचार के अभाव में जान भी गंवा बैठते हैं, लेकिन ये कुप्रथा समाज से खत्म नहीं होती.
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चंद्रशेखर सोलंकी/रतलाम: अंधविश्वास का दंश आज आधुनिकता के युग में भी अपना साया नहीं छोड़ रहा है और अलग-अलग तरीकों के अंधविश्वार की दर्दनाक तस्वीरें अब भी सामने आ रही है. ऐसा ही एक मामला रतलाम में सामने आया है. जहां एक 7 साल के मासूम बच्चे को गर्म सुइयों से गोदा गया है. जिस कारण अब बच्चा जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है.
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दरअसल राजस्थान के प्रतापगढ़ के 7 वर्षीय बच्चे का इलाज रतलाम जिला बाल चिकित्साल्य के आईसीयू में चल रहा है. बच्चे का नाम भरत बताया जा रहा है और इस बच्चे के शरीर पर गर्म सुइयों से जलाये जाने के कई निशान है. बीमारी के कारण मासूम बच्चे की हालात गंभीर बनी हुई है. फिलहाल बच्चे को वेंटिलेटर पर रखा गया है.
वेंटिलेटर पर बच्चे को रखा
बच्चे के परिजनों ने फिलहाल बच्चे के साथ इस तरह की हरकत किसने की इसे लेकर कोई बात मीडिया के सामने नहीं रखी है, लेकिन डॉक्टर का कहना है कि बच्चे के शरीर पर जलाने के काफी गहरे निशान है. बच्चा बेहद गंभीर स्थिति में है और बेहोश है. उसे वेंटिलेटर पर रखा है.
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आदिवासी ग्रामीण इलाकों में ये
बता दें कि इस तरह से बच्चों को शरीर पर जलाने को ग्रामीण-आदिवासी अंचल इलाकों में डॉम कहा जाता है और यह एक अंधविश्वास है. जिसमें ग्रामीण मानते हैं कि यदि बच्चे को कोई बीमारी हो तो उसे डॉम लगा देने यानी गरम सलाखों या सुइयों से जलाने से बीमारी चली जाती है और ऐसे मामले रतलाम जिला अस्पताल में पहले भी कई बार आ चुके है. इस अंधविश्वास में कई बार बच्चों को इलाज के नाम पर डॉम यानी गर्म सलाखों से जलाया गया और ऐसे कई बच्चे पहले भी रतलाम जिला अस्पताल में गंभीर हालात में इलाज के लिए लाए गए है. गर्म सलाखों या सुइयों से जलाने के अंधविश्वास में कई बार बच्चों की जान आफत में आ चुकी है, लेकिन यह अंधविश्वास अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है.