Bhopal gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी को करीब 40 साल हो चुके हैं, लेकिन इतना वक्त बीत हो जाने के बाद भी इसका दंश लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहा है. आज भी गैस त्रासदी के अंश लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं. अब यह खतरा पानी तक पहुंच गया है.
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Madhya Pradesh News: दुनिया की चुनिंदा मानव निर्मित बड़ी त्रासदियों में से एक भोपाल गैस कांड के 40 साल बाद भी लोगों को खतरा बना हुआ है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के निर्देश पर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास के इलाकों में भूजल की जांच की जाएगी. इसकी वजह यह है कि यूनियन कार्बाइड के आसपास के भूजल से कैंसर का खतरा बना हुआ है.
केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने हाल ही में एनजीटी को एक रिपोर्ट सौंपी. इस रिपोर्ट में बताया गया कि भोपाल गैस त्रासदी के चार दशक बीतने के बाद भी यूनियन कार्बाइड के आसपास के इलाकों के ग्राउंड वाटर में हेवी मेटल मौजूद हैं. इससे लोगों को कैंसर का खतरा हो सकता है. प्राधिकरण ने एनजीटी के निर्देश पर यूनियन कार्बाइड के चारों ओर 36 जगह से ग्राउंड वाटर के 72 सैंपल लिए थे. सभी सैंपलों की जांच से पता चला कि ग्राउंडवाटर में 7 जगह पर नाइट्रेट तय सीमा से ज्यादा है. रेलवे स्टेशन के आसपास ग्राउंड वाटर में 142 मिग्रा/लीटर नाइट्रेट मिला, जबकि यह अधिकतम 45 मिग्रा/लीटर होना चाहिए.
99% सैंपल फेल
रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि भोपाल के मंगलवारा और गोलघर इलाके के पानी में फॉस्फेट का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की निर्धारित सीमा से ज्यादा पहुंच गया है. ग्राउंड वाटर के 99% सैंपल पीने योग्य नहीं पाए गए. इस पानी में कैल्शियम और मैग्निशियम का स्तर भी तय सीमा से ज्यादा मिला. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह का पानी लगातार पीने से गंभीर बीमारियों का खतरा हो सकता है.
हजारों लोगों की हुई थी मौत
3 दिसंबर 1984 का दंश आज भी राजधानी भोपाल का पीछा नहीं छोड़ रहा है. इसी दिन भोपाल में यूनियन कार्बाइड से लीक हुई गैस से ऐसी त्रासदी हुई कि हजारों लोगों की मौत हो गई. एक अनुमान के मुताबिक, इस त्रासदी में 3,787 लोग मारे गए थे. कई लोग लापता हो गए थे. इसके अलावा लाखों लोग घायल हुए थे. इसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भी कहा जाता है.
रिपोर्ट: अजय दुबे, भोपाल