रायसेन जिले के सिलवानी में होली दहन के बाद एक ऐसी परंपरा है, जिसमें गांव के सभी लोग धधकते अंगारों में चलते हैं. गांव वालों का मानना है कि इस तरह आग में चलने से लोगों को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है.
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रायसेन: भारत मान्यताओं का परंपराओं का देश हैं. यहां हर मौके के लिए कोई न कोई मान्यता प्रचलन में है, लेकिन कई बार ये परंपराएं अंधविश्वास का रूप बन जाती है. ऐसी एक परंपरा प्रचलित हैं रायसेन जिले के सिलवानी क्षेत्र में, जहां लोग होलिका दहन के बाद धधकते हुए अंगारो पर नंगे पैर चलते हैं. इसमें बच्चे, बूढ़े महिलाएं सभी शामिल होते हैं.
इन दो गांवों में है परंपरा
सिलवानी इलाके के महगवां और चंदपुरा में इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. ये परंपरा यहां करीब 100 साल से मनाई जा रही है. ग्रामीणों की आस्था का आलम यह है कि नाबालिग बच्चों से लेकर महिलाएं उम्र दराज बुजुर्ग तक अंगारों पर नंगे पैर निकलते हैं.
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बारी-बारी से सभी लोग लेते हैं भाग
ग्रामीणों का मानना है कि होलिका दहन के अंगारों पर निकलने के बाद भी बच्चों और महिलाओं से लेकर बुजुर्गों के पैर नहीं जलते और ना ही किसी भी गांव के व्यक्ति को कोई भी परेशानी नहीं होती है. सभी ग्रामीण बारी-बारी से आग पर से निकलते हैं.
100 साल से निभाई जा रही है परंपरा
चंदपुरा में ग्रामीण पिछले दस साल से आग पर से निकलने की परंपरा निभा रहे हैं, जबकि महगवां में ग्रामीण करीब सौ वर्षों से ये परंपरा निभाते आ रहे हैं. रात में महगवां के चौराहे पर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के पश्चात ग्रामीणों के सहयोग से होलिका दहन किया जाता है. यहां होलिका दहन को देखने के लिए आस पास के कई गांवों से लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है.
प्रथा के पीछे का कारण किसी को नहीं मालूम
क्यों और किसलिए यह जानलेवा आयोजन किया जाता है. इसकी सटीक जानकारी किसी भी ग्रामीण के पास नहीं है, लेकिन आस्था इतनी है कि पर्व के आने के कई दिन पूर्व से ही तैयारियां प्रारंभ कर दी जाती है. ग्रामीणों ने कहा कि इस परंपरा को निभाने से कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आती है. इसीलिए बुजुर्गों द्वारा सैकड़ों वर्षों से यह प्रथा चलाई जा रही है.
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