MP Nama: 67 साल का हुआ मध्य प्रदेशः जानिए स्थापना की दिलचस्प कहानी, इस वजह से भोपाल बनी राजधानी
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh1018806

MP Nama: 67 साल का हुआ मध्य प्रदेशः जानिए स्थापना की दिलचस्प कहानी, इस वजह से भोपाल बनी राजधानी

Madhya Pradesh Foundation Day: मध्य प्रदेश 67वां स्थापना दिवस मना रहा है. इस मौके पर राज्यभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने भी राज्य स्थापना दिवस की बधाई दी है. 

मध्य प्रदेश का 67वां स्थापना दिवस

Madhya Pradesh Foundation Day: देश का दिल यानि मध्य प्रदेश, एक ऐसा राज्य जो अपनी अनोखी कला-संस्कृति और विविधताओं के लिए देशभर में एक अलग पहचान रखता है. प्राकृतिक संपदा और संसाधनों से समृद्ध होने के साथ तरह-तरह की बोलियों लोक संस्कृतियों और अपने-अपने अलग रहन-सहन से रचा बसा है, मध्य प्रदेश अपने आप में भारत का एक संपूर्ण दर्शन कराता है. क्योंकि इस राज्य में संपूर्ण भारत की एक झलक देखने को मिल जाती है. यही मध्य प्रदेश एक नवंबर 2021 को अपना 67वां स्थापना दिवस मना रहा है. आज ही के दिन मध्य प्रदेश देश के पटल पर स्थापित हुआ था. मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस पर हम आपको प्रदेश की स्थापना से जुड़ीं ऐसी ही जानकारियां दे रहे हैं. 

ऐसे हुआ मध्य प्रदेश का गठन 
आज से 67 साल पहले मध्य प्रदेश का गठन हुआ था. लेकिन देश के बीचों-बीच बसे इस राज्य की स्थापना की कहानी बहुत पुरानी है. क्योंकि आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन के लिए प्रक्रिया शुरू हुई,  राज्यों के पुनर्गठन के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. आयोग के सामने तमाम तथ्य और सिफारिशों को रखने के लिए पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में महाकौशल के नेताओं ने एक बैठक की गई, इस बैठक में यह निर्णय लिया गया गया कि महाकौशल, ग्वालियर-चंबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल के आसपास के हिस्सों को जोड़कर एक ऐसा प्रदेश बनाया जाए, जो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की तरह हो. 

पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में हुई बैठक से निकली तमाम सिफारिशों को राज्य पुनर्गठन आयोग को समक्ष रखा गया. इन सिफारिशों को लागू करवाने की जिम्मेदारी कांग्रेस के बड़े नेता द्वारका प्रसाद मिश्र और घनश्याम सिंह गुप्त को दी गई थी. इन दोनों नेताओं ने राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने सभी सिफारिशों को रखा और फिर उन पर विचार शुरू हुआ. 34 महीने यानि ढाई साल से भी ज्यादा समय तक इन सिफारिशों पर विचार-विमर्श हुआ और तब जाकर मध्यप्रदेश का स्वरूप सामने आया. 

गठन से पहले चार भागों में विभाजित था मध्य प्रदेश 
दरअसल, मध्य प्रदेश का अस्तित्व ब्रिटिश शासन से ही था. उस वक्त मध्य प्रदेश को सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था. जो पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी में बंटा हुआ था. जबकि भोपाल में नवाबी शासन था. जिसमें पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी और इसमें बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल थी. इसी तरह पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी, जिसमें पश्चिम की रियासतों को इसमें शामिल किया गया था. यानि आज का मालवा-निमाड़ इसमें शामिल था. पार्ट-सी की राजधानी रीवा थी, जिसे उस वक्त विंध्य प्रदेश के नाम से जाना जाता था.  जिनकी अपनी विधानसभाएं भी थी. लेकिन आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन के लिए 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया था. इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति सैयद फजल अली और सदस्य डॉ. केएम पणिक्कर, पंडित हृदयनाथ कुंजरू थे. डीपी मिश्र और घनश्याम सिंह गुप्त की तमाम सिफारिशों पर इन्ही लोगों ने विचार-विमर्श किया. जिसके बाद ग्वालियर-चंबल, मालवा-निमाड़, और विंध्य प्रदेश के अलावा मध्यभारत के हिस्से को जोड़कर मध्य प्रदेश की गठन करने पर सहमति बन गई. 

चारों भागों से इस तरह एक हुआ मध्य प्रदेश 
खास बात यह है कि जब मध्य प्रदेश की स्थापना हुई तो पार्ट-ए का हिस्सा नागपुर महाराष्ट्र में शामिल हो गया, जबकि बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें मध्य प्रदेश के हिस्से आई. लेकिन बुंदेलखंड का आधा हिस्सा उत्तर प्रदेश के पास गया, जबकि आधा मध्य प्रदेश को मिला. जबकि इसी तरह पार्ट-बी पूरी तरह से एमपी का हिस्सा बना और विंध्य प्रदेश को भी खत्म कर दिया गया. स्वतंत्रता के बाद नवाबी शासन भी खत्म हो था. इस तरह इन चारों भागों को जोड़कर मध्य प्रदेश बनाया गया. डॉ. पटटाभि सीतारामैया मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल बने, जिन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल को मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई. वहीं पंडित कुंजी लाल दुबे को मध्यप्रदेश का पहले विधानसभा अध्यक्ष बने. 

भोपाल के राजधानी बनने की कहानी 
ढाई साल से भी ज्यादा वक्त तक चली कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश का गठन तो गया. लेकिन देश के दिल में बसे इस राज्य की राजधानी का किस्सा भी बड़ा रोचक है. गठन के बाद उस वक्त तीन बड़े शहर ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर मध्य प्रदेश के हिस्से में थे. ऐसे में तीनों की क्षेत्र के नेताओं की यह कोशिश थी कि उनके शहर को राजधानी का तमगा मिले. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. क्योंकि यह तीनों शहर एक दूसरे से काफी दूरी पर थे. जिसके क्षेत्रीय विवाद भी थे. बड़ा सवाल यह था कि इतने बड़े राज्य की राजधानी ऐसी हो जो प्रशासनिक और राजनैतिक कामकाज के लिए सबसे उपयुक्त हो. इंदौर और ग्वालियर राजधानी के रेस में आगे थे. लेकिन अचानक नाम आया भोपाल का. 

भोपाल को राजधानी बनाने में इस नेता की थी अहम भूमिका 
भले ही इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर राजधानी बनने के लिए अपना-अपना दावा ठोक रहे थे. लेकिन देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के दिमाग में उस वक्त कुछ और ही चल रहा था. मध्य प्रदेश के बीचो-बीच बसे भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनवाना चाहते थे. ऐसे में उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात कर यह प्रस्ताव उनके सामने रखा. डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने बताया कि पहाड़ी इलाके पर बसा यह शहर हर लिहाज से प्रदेश की राजधानी बनने के काबिल है. 

क्योंकि अन्य शहरों के मुकाबले यहां न गर्मी पड़ती है, ना ही सर्दी और ना ही थोड़ी सी बारिश से यहां बाढ़ के हालात बनेंगे. इसके अलावा जिस तरह मध्य प्रदेश देश के बीचो बीच स्थित है, ठीक उसी तरह भोपाल भी प्रदेश के बीचों बीच स्थित है. यहां से प्रदेश में चारों और के हालात ज्यादा बेहतर ढंग से जाने जा सकते थे. जबकि राज्य के अन्य तीनों बड़े शहरों से भी यहां आसानी से आया जा सकता है. डॉ. शंकर दयाल शर्मा का यह प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू को पसंद आया. ऐसे में उन्होंने भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. जब भोपाल राजधानी बना तब वह सीहोर जिले की एक तहसील मात्र था. लेकिन यह शहर बाद में प्रदेश का केंद्र बन गया, जहां 1972 में भोपाल को अलग जिले का दर्जा भी मिल गया. 

ऐसा है वर्तमान मध्य प्रदेश 
अपने 67 साल के सफर में मध्य प्रदेश के गठन के समय प्रदेश में कुल 43 जिले ही बनाए गए थे. लेकिन, वर्तमान में बढ़ती आबादी के कारण व्यवस्थाओं को सुचारू ढंग से चलाने के लिए अब तक मध्य प्रदेश में कुल 52 जिले बनाए जा चुके हैं. 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से निकालकर छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बना दिया गया. वर्तमान में मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें और 29 लोकसभा सीटें हैं. 

6 भागों में है मध्य प्रदेश 
वर्तमान मध्य प्रदेश को 6 भागों में बांटा जाता है, जिनमें ग्वालियर-चंबल, महाकौशल, बुंदेलखंड, विंध्य, मध्य भारत मालवा-निमाड़ शामिल है.  यहां अलग-अलग जीवन शैली, बोलियां, खानपान और पहचान है. मालवा में मालवीय निमाड़ में निमाड़ी, बुंदेलखंड में बुंदेली, बघेलखंड में बघेली बोलियां आज भी यहां के आत्मीय संवाद का हिस्सा है. यही नहीं इन तमाम इलाकों की कृषि, पुरातात्विक संपदा और भौगोलिक स्वरूप का यहां के रहवासियों पर प्रभाव रहता है. मध्य प्रदेश में आपको मराठी, गुजराती, यूपी और राजस्थान का रंग भी देखने को मिल जाएगा.

Trending news