खंडवा लोकसभा उपचुनाव (Khandwa by election) को लेकर उम्मीदवारों की तस्वीर साफ होते ही दोनों बड़ी पार्टियां बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) सुपर एक्टिव मोड में आ चुकी हैं. इस सीट पर काबिज होना कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल के लिए प्रतिष्ठा की बात बन चुकी है.
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Khandwa By Election: खंडवा लोकसभा उपचुनाव (Khandwa by election) को लेकर उम्मीदवारों की तस्वीर साफ होते ही दोनों बड़ी पार्टियां बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) सुपर एक्टिव मोड में आ चुकी हैं. इस सीट पर काबिज होना कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल के लिए प्रतिष्ठा की बात बन चुकी है. इस रण के लिए कांग्रेस की तरफ से राजनारायण सिंह पुरनी मैदान में हैं वहीं उन्हें शिकस्त देने के लिए बीजेपी ने ज्ञानेश्वर पाटिल पर ओबीसी (OBC) कार्ड खेला है. सीट दोनों ही पार्टी के आला नेताओं कमलनाथ (Kamalnath) और शिवराज सिंह (Shivraj Singh) के लिए कई मायनों में बेहद खास है.
इंदिरा गांधी प्रचार के लिए ट्रेन से पहुंची थीं होशंगाबाद
बता दें बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे यहां से सांसद रह चुके हैं. इस सीट की अहमियत आज से नहीं हमेशा से रही है और इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक समय में जीत हासिल करने के लिए इस सीट पर इंदिरा गांधी तक प्रचार के रण में उतर चुकी हैं. 1979 के उपचुनाव के समय इंदिरा गांधी ने गांव-गांव घूमकर पार्टी के कद्दावर नेता रहे शिवकुमार सिंह के लिए वोट मांगे थे. हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस जीत दर्ज नहीं करवा पाई थी. उस दौरान जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी, चुनाव से जुड़ा एक किस्सा हमेशा याद किया जाता है. इंदिरा गांधी प्रचार के लिए दिल्ली से भोपाल तक तो पहुंच गई थीं, लेकिन वहां से खंडवा तक जाने के लिए उन्हें हेलीकॉप्टर नहीं मिला था. वो भोपाल से होशंगाबाद तक ट्रेन से गईं थीं, जहां वो खंडवा, बुरहानपुर, मांधाता के गांव गांव घूमी थीं और वोट अपील की थी.
41 साल बाद उप-चुनाव
खंडवा लोकसभा सीट को लेकर दूसरी बड़ी बात ये है कि इस सीट पर 41 साल बाद उप-चुनाव हो रहे हैं. इससे पहले यहां 1979 में उपचुनाव हुए थे. तब बीजेपी के कुशाभाऊ ठाकरे ने कांग्रेस के ठाकुर शिवकुमार सिंह को हरा दिया था, लेकिन एक साल बाद 1980 में हुए आम चुनाव में कुशाभाऊ को बुरी हार देखनी पड़ी थी.
बीजेपी का रहा है दबदबा
खंडवा लोकसभा सीट पर BJP के नंदकुमार सिंह के निधन के बाद उपचुनाव होना है. यहां से नंदकुमार सिंह ने सबसे ज्यादा बार जीत दर्ज की है, ऐसे में BJP इसे अपने पाले में रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है. इस सीट पर जिसमें खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल हैं, इसपर बीजेपी इस बार ओबीसी वोटर्स को साधने की जुगत में है.
वोटर्स की संख्या पर एक नजर
संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के आंकड़े पर नजर डालें तो यहां 19.68 लाख वोटर्स हैं, जिसमें OBC करीब 5 लाख हैं. इसके साथ समान्य वर्ग के मतदाता 4 लाख के करीब हैं और SC-ST वर्ग के वोटर्स की संख्या 7 लाख के आसपास है. इनके अलावा यहां एक और कार्ड मायने रखता है वो है आदिवासी वोटर्स, जो 3 विधानसभा क्षेत्रों पर प्रभाव रखते हैं. आदिवासी वोट बैंक ने अपना वर्चस्व 2018 के विधानसभा चुनाव में ही दिखा दिया था. ऐसे में खंडवा और जोबट सीट पर इन्हें रिझाना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर हो सकता है.
आदिवासी वोटबैंक साधने की तैयारी
मध्यप्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेता कमलनाथ ने हाल ही में अपने खंडवा दौरे के समय आदिवासी वोटबैंक को साधने के लिए एक कोशिश की है. उन्होंने अपने प्रचार के दौरान जनता को संबोधित करते हुए कहा कि खंडवा के आदिवासी अभी भी भूमिहीन हैं. हम वादा करते हैं कि 2023 में सत्ता में लौटते ही सभी आदिवासियों को जमीन लीज पर देंगे. साथ ही मंच से जीत का दंभ भरते हुए पूर्व सीएम कमलनाथ ने कहा कि दो नवंबर को उपचुनाव के नतीजे आने के बाद शिवराज सिंह चौहान को कुर्सी छोड़ना पड़ेगी.
जीत और हार का ट्रैक रिकॉर्ड
खंडवा संसदीय सीट पर जीत और हार का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो एक उपचुनाव सहित 17 आम चुनाव में यहां 9 बार कांग्रेस ने ताल ठोकी है और आठ बार भाजपा ने जीत दर्ज की. इनमें गौर करने वाली बात ये है कि खंडवा लोकसभा के लिए 10 बार बुरहानपुर के प्रत्याशी पर दांव खेला गया है.
BJP के उम्मीदवारों की लिस्ट
1951 में बद्रीनारायण, 1957 में अनोखीलाल, 1962 में कृष्णराव गद्रे, 1967 में मांगीलाल भट्ट, 1971 में वीरेंद्र कुमार आनंद, 1977 में परमानंद गोविंदजी वाला, 1980 के उपचुनाव में कुशाभाऊ ठाकरे, 1984 में आरिफ बैग, 1989 और 1991 में अमृत तारिवाला, 1996 से 2019 तक नंदकुमारसिंह चौहान.
कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट
1951 और 1957 में बाबूलाल तिवारी, 1962 में महेश दत्त मिश्र, 1967, 1971 और 1977 में गंगाचरण दीक्षित, 1980 के उपचुनाव में ठाकुर शिवकुमारसिंह, 1984, 1989 में कालीचरण सकरगाये, 1991 में महेंद्रसिंह, 1996 में ठाकुर शिवकुमारसिंह, 1998 के उपचुनाव में ठाकुर महेंद्रसिंह, 1999 में तनवंतसिंह कीर, 2004 में अमिताभ मंडलोई और 2009, 2014 और 2019 में अरुण यादव.
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