Madhya Pradesh Assembly Elections: मध्य प्रदेश में इस बार एक-एक विधानसभा सीट पर कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है, लेकिन कुछ सीटों पर कांग्रेस लगातार जीत दर्ज कर रही है.
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Madhya Pradesh Assembly Elections: मध्य प्रदेश में जल्द ही विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है. 2003 से 2013 तक सूबे की सत्ता पर बीजेपी ने लगातार 15 साल शासन किया, जबकि 2018 में 15 महीने की कमलनाथ सरकार को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी 18 सालों से प्रदेश में शासन चला रही है. लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस पिछले कई चुनावों से अजेय बनी हुई है. इन सीटों पर कांग्रेस लगातार जीत दर्ज करती आ रही है. ये सीटें कांग्रेस के गढ़ में तब्दील हो चुकी हैं, जिन्हें भेदना बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
राघौगढ़
राघौगढ़ यानि कांग्रेस और कांग्रेस यानि राघौगढ़, गुना जिले की इस सीट का यही सियासी नाम चलता है, क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस के साथ दिग्विजय सिंह के परिवार का दबदबा है, 1977 से 2018 तक कांग्रेस यहां से लगातार 9 विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं, वर्तमान में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह यहां से विधायक हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में जयवर्धन ने अपनी सियासी पारी का आगाज किया था और 2018 में भी उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी, ऐसे में यहां जीत अभी भी बीजेपी के लिए सपना बनी हुई है.
लहार
भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट एमपी में कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ों में से एक हैं. वर्तमान नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह यहां से लगातार 7 विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं, 1990 का चुनाव वह जनता दल से जीते थे, लेकिन 1993 से 2018 तक वह कांग्रेस के टिकट पर 6 चुनाव जीत चुके हैं. लहार सीट भी कांग्रेस का मजबूत गढ़ बन चुकी है.
पिछोर
शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा सीट कांग्रेस किला बना चुकी है, 1993 से कांग्रेस के केपी सिंह यहां से लगातार 6 विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं, जिससे यह सीट बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. बीजेपी की सरकार होने के बाद भी केपी सिंह लगातार पिछोर से जीत दर्ज कर रहे हैं. बीजेपी ने एक बार फिर यहां प्रीतम लोधी को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने पहली ही लिस्ट में उनका नाम फाइनल कर दिया था.
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भोपाल उत्तर
भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट भी कांग्रेस के मजबूत किले में तब्दील हो चुकी है, कांग्रेस के सीनियर नेता आरिफ अकील 1998 से 2018 पांच चुनाव यहां से जीत चुके हैं, हालांकि इस बार स्वास्थ्य कारणों से उनका चुनाव लड़ना तय नहीं है. आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील और उनके भाई आमिर अकील का नाम यहां से रेस में चल रहा है. वहीं बीजेपी ने यहां एक बार फिर भोपाल के पूर्व महापौर रह चुके आलोक शर्मा को टिकट दिया है.
भितरवार
ग्वालियर जिले की भितरवार विधानसभा सीट पर कांग्रेस 2008 से लगातार तीन चुनाव जीत चुकी है, कांग्रेस विधायक लाखन सिंह यादव इस सीट पर 2008 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं, 2013 और 2018 के चुनाव में उन्होंने बीजेपी के कद्दावर नेता अनूप मिश्रा को हराया था. जिससे यह सीट भी 2008 के बाद कांग्रेस की मजबूत सीट मानी जाती है.
राजनगर विधानसभा सीट
छतरपुर जिले की राजनगर सीट से पर भी कांग्रेस 2008 से 2018 तक लगातार तीन जीत दर्ज कर चुकी है, विक्रम सिंह नातीराजा यहां से लगातार चार बार विधायक बन चुके हैं, हालांकि 2003 का विधानसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीता था. हालांकि 2018 के चुनाव में यहां बीजेपी और कांग्रेस में क्लोज फाइट देखी गई थी, लेकिन आखिर में बाजी कांग्रेस के हाथ लगी थी.
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परिसीमन के बाद डबरा में भी कांग्रेस मजबूत
इन सीटों के अलावा भी कुछ सीटें ऐसी है, जहां कांग्रेस मजबूती से जमी है, जिनमें ग्वालियर जिले की डबरा विधानसभा सीट भी शामिल हैं, परिसीमन के बाद डबरा सीट रिजर्व हो गई थी, जिसके बाद से ही कांग्रेस 2008 से लगातार यहां तीन जीत दर्ज कर चुकी है, ग्वालियर जिले की डबरा विधानसभा सीट पर पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस का कब्जा है। 2008 , 2013 और 2018 चुनाव में कांग्रेस की इमरती देवी जीती थी, जबकि 2020 के उपचुनाव में भी डाबरा सीट कांग्रेस के खाते में गई थी.
वहीं धार जिले की गंधवानी सीट पर भी कांग्रेस 2008 से लगातार जीत रही है. यहां से उमंग सिंघार तीन चुनाव जीत चुके हैं, इसी तरह डिंडौरी सीट पर भी कांग्रेस के ओमकार सिंह मरकाम 2008 से 2018 तक तीन चुनाव जीत चुके हैं, जबकि बड़वानी जिले की राजनगर सीट पर कांग्रेस के नेता बाला बच्चन भी लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं, ये सीटें भी कांग्रेस की मजबूत सीटें मानी जाती हैं. जबकि लांजी, राऊ, जबलपुर पश्चिम, कसरावद, कुक्षी, पांढुर्ना सीटों पर भी कांग्रेस 2013 से लगातार दो चुनाव जीत चुकी हैं, ऐसे में इस बार भी इन सीटों पर मुकाबला दिलचस्प होने की पूरी उम्मीद हैं.
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