magh mass snan niyam in hindi: माघ माह में नदी स्नान का बहुत महत्व है. ऐसी मान्यता है माघ माह में स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है. लेकिन आज हम ऐसे नदी के बारे में बता रहे हैं, जिसमें स्नान करने से नरक मिलता है. आइए जानते हैं इसके बारे में...
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Magh Month Triveni Sangam Snan 2023: माघ का महीना चल रहा है. इस महीने संगम स्नान किया जाता है. वहीं जिन्हें संगम स्नान नहीं नसीब होता है, वे लोग अपने घर के आस-पास स्थित पवित्र नदियों ( magh mass snan niyam ) में जाकर स्नान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि माघ माह में पवित्र नदियों में स्नान करने मात्र से जानें-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है और हमें स्वर्ग की प्राप्ति होती है. लेकिन हमारे देश में एक ऐसी नदी भी बहती है, जिसमें स्नान करना तो दूर उसके पानी झूने मात्र से हमारे पुण्य-प्रताप भी चले जाते हैं और हमें मृत्यु के बाद नरक नसीब होता है. आइए जानतें हैं कौन सी है वो नदी जिसमें कभी स्नान नहीं करना चाहिए.
भूलकर भी न करें इस नदी में स्नान
भारत में गंगा समेत ऐसी कई पवित्र नदियां बहती हैं, जिसके पानी का इस्तेमाल लोग मांगलिक कार्यों के लिए करते हैं. लेकिन हमारे देश में एक ऐसी भी नदी है जिसमें स्नान तो दूर लोग उसके पानी को झूने से डरते हैं. आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी नदी है, जी हां बता दें कि इस नदी का नाम कर्मनाशा ( Karmanasa River ) है. यह नदी बिहार और उत्तर प्रदेश में बहती है. इस नदी का नाम दो शब्दों कर्म और नाशा यानी काम और नाश से मिलकर बना है. इस नदी के बारे में ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इसके पानी को स्पर्श करने मात्र से हमारे किए गए अच्छे कर्मों के भी दान-पुण्य का नाश हो जाता है. साथ ही मृत्यु के पश्चात हमें नरक की प्राप्ति होती है.
कहां बहती है कर्मनाशा नदी
कर्मनाशा नदी बिहार के कैमूर जिले से निकलती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल वाले हिस्से में बहती है. इस नदी की कुल लंबाई लगभग 192 किलोमीटर है, जिसका करीब 116 किलोमीट हिस्सा उत्तर प्रदेश में है. कर्मनाशा नदी यूपी के सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर निकलती है. यह नदी बक्सर के पास जाकर गंगा नदी में मिल जाती है.
जानिए क्या है मान्यता
पौराणिक मान्यता अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के पिता एक बार सत्यव्रत अपने गुरुवर विशिष्ट जी से शरीर के साथ स्वर्ग जाने की इच्छा जताई. जिस पर उन्होंने इंकार कर दिया. जिससे नाराज होकर स्तयव्रत विश्वमित्र जी के पास गए. वहां उन्होंने यह बात दोहराई. साथ ही उन्होनें अपने गुरु वशिष्ट के मना करने की बात भी बताई. वशिष्ट और विश्वामित्र में शत्रुता थी. इसलिए विश्वमित्र ने अपने तप के बल पर सत्यव्रत को शरीर सहित स्वर्ग भेज दिया. राजा सत्यव्रत को स्वर्ग में सशरीर देख इंद्र देव नाराज हो गए. क्रोध में इंद्रदेव ने राजा सत्यव्रत का सिर उल्टा करके वापस पृथ्वी पर भेज दिया. वहीं विश्वमित्र ने अपने तप के बल पर राजा सत्यवत को धरती और स्वर्ग के बीच में रोक दिया. ऐसे में सत्यव्रत बीच में ही उलटे लटके रह गए.
इस बीच देवताओं और विश्वमित्र में युद्ध होने लगा. युद्ध के दौरान राजा सत्यव्रत धरती और स्वर्ग के बीच में उलटे लटके रहें. उलटे लटकने की वजह से उनके मुंह से लार टपकने लगा. राजा सत्यव्रत का लार धरती पर नदी के रूप में प्रकट हुई. इधर राजा सत्यव्रत के गुरु ने उनसे पहले से क्रोधित थे और उन्होंने सत्यव्रत को चांडल होने का शाप दे दिया. साथ ही उन्होनें यह भी शाप दे दिया कि, तुम्हारे लार से बनी नदी के पानी को जो भी स्पर्श करेगा, उसके अच्छे कर्मों का फल भी पाप में मिल जाएगा और उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग नसीब नहीं होगा. इसी लिए इस नदी को शापित नदी कहा गया और इसे कर्मनाशा का नाम दिया गया.
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( Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और विभिन्न जानकारियों पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है. )