MP Chunav 2023:कौन हैं ताराचंद्र गोयल? जिनके खिलाफ तराना विधानसभा में उठे बगावत के सुर
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MP Chunav 2023:कौन हैं ताराचंद्र गोयल? जिनके खिलाफ तराना विधानसभा में उठे बगावत के सुर

MP Election 2023: भाजपा ने आगामी मध्य प्रदेश चुनाव में तराना विधानसभा सीट के लिए पूर्व विधायक ताराचंद्र गोयल को अपना उम्मीदवार चुना है. बता दें कि इस फैसले के बाद पार्टी के कई सदस्य आश्चर्यचकित हो गए

MP Assembly Election 2023 Candidate Profile

MP Assembly Election 2023 Candidate Profile: साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Election 2023) की तैयारियों के मद्देनजर बीजेपी ने हाल ही में अपनी सूची जारी की थी. तराना विधानसभा में भाजपा ने 2003 में यहां से जीते पूर्व विधायक पर भरोसा जताते हुए इस सीट के लिए ताराचंद्र गोयल को अपना उम्मीदवार चुना है.  इस निर्णय से कई लोगों को आश्चर्य हुआ क्योंकि पार्टी ने 2003 के बाद के चुनावों में अन्य उम्मीदवारों को मौका दिया था. गौरतलब है कि केंद्रीय समिति के सदस्य सत्यनारायण जटिया के करीबी माने जाने वाले गोयल का लक्ष्य 2018 में कांग्रेस से हारी हुई सीट वापस हासिल करना है.

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कौन हैं ताराचंद्र गोयल?
बता दें कि तराना विधानसभा में भाजपा ने ताराचंद्र गोयल को मौका दिया है. गोयल केंद्रीय समिति के सदस्य सत्यनारायण जटिया के करीबी माने जाते हैं. ताराचंद गोयल पार्टी से पूर्व विधायक हैं, जिन्हें 2003 में विधानसभा तराना से जीत मिली थी. इसके बाद अब दोबारा ताराचंद गोयल पर पार्टी ने भरोसा जताया है. पार्टी ने इस बीच 2008 में रोडमल राठौड़ को मौका दिया था, जिन्होंने जीत दर्ज की, उसके बाद उज्जैन-आलोट संसदीय क्षेत्र से सांसद अनिल फिरोजिया को मौका दिया. जिन्होंने 2013 में जीत दर्ज की, फिर 2018 में कांग्रेस नेता महेश परमार ने भाजपा प्रत्याशी फिजोरिया को हराकर कांग्रेस के कब्जे में सीट को लिया. वहीं, आपको बता दें कि वर्ष 2003 में तारा चंद्र गोयल जिन्हें प्रत्याशी बनाया गया है. उन्होंने पूर्व मंत्री बाबूलाल मालवीय को हराया था. लूप लाइन में चले गए गोयल का जब नाम पार्टी ने जारी किया तो हर कोई दंग है.

वहीं ताराचंद्र गोयल को विधानसभा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद तराना में कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं का असंतोष भी सामने आया. कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि बिना सर्वे के चुने गए गोयल 10,000 वोटों के अंतर से हार सकते हैं. पार्टी के कुछ सदस्यों का तर्क है कि प्रमुख पद उन नेताओं को दिए जा रहे हैं जो सक्रिय रूप से काम नहीं कर रहे हैं, जबकि जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है.

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