निकाय चुनावः पत्नियां लगाएंगी पतियों की नैय्या पार! बदले सियासी समीकरण से दिलचस्प हुए मुकाबले
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निकाय चुनावः पत्नियां लगाएंगी पतियों की नैय्या पार! बदले सियासी समीकरण से दिलचस्प हुए मुकाबले

अब नेता अपनी पत्नियों के सहारे अपना राजनीतिक कैरियर को आगे बढ़ाने में जुट गए हैं, क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल के पास इतनी महिला कार्यकर्ता नहीं है कि उन्हें टिकट देकर चुनाव जिताया जा सके. 

निकाय चुनावः पत्नियां लगाएंगी पतियों की नैय्या पार! बदले सियासी समीकरण से दिलचस्प हुए मुकाबले

शैलेंद्र सिंह भदौरिया/ग्वालियर। मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा हो चुकी है. लेकिन अब तक बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से महापौर पद के लिए प्रत्याशियों का ऐलान नहीं किया गया है. लेकिन इस बार के चुनाव दिलचस्प होने वाले हैं. प्रदेश के कई शहरों में इस बार पतियों की नैय्या पत्नियों के भरोसे हैं. खासकर ग्वालियर-चंबल में तो ऐसी ही स्थिति बनती दिख रही है. आप सोच रहे होंगे कि भला हम ऐसा क्यों कह रहे हैं. तो हम आपको इसके पीछे की वजह भी बताने जा रहे हैं. 

ग्वालियर-चंबल में महिलाओं का रहेगा दबदबा
इस बार के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और नगरीय निकाय चुनाव में महिलाओं का ग्वालियर चंबल संभाग में दबदबा रहने वाला है, ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अंचल के दोनों नगर निगम ग्वालियर और मुरैना के महापौर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित है. वही ग्वालियर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भी इस बार महिला ही चुनी जाएगी. इसके साथ ही नगरी निकाय चुनाव में 50 प्रतिशथ महिलाओं को पार्षदों के टिकट भी दिए जाने हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में महिलाओं का दबदबा होने के चलते कई पुरुषों के अरमानों पर पानी फिर गया है. 

यही वजह है कि अब नेता अपनी पत्नियों के सहारे अपना राजनीतिक कैरियर को आगे बढ़ाने में जुट गए हैं, क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल के पास इतनी महिला कार्यकर्ता नहीं है कि उन्हें टिकट देकर चुनाव जिताया जा सके. ऐसे में अब वार्ड में पहले से सक्रिय पुरुषों की पत्नियों को टिकट दिया जाना संभव नजर आ रहा है. इसके लिए बाकायदा पति भी मंत्रियों के पास अपनी पत्नियों का बायोडाटा लेकर पहुंच रहे हैं और बता रहे हैं कि किस तरह वह लंबे समय से पार्टी के लिए काम करते आ रहे हैं, ऐसे में उन्हें टिकट मिलना चाहिए. 

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया 
वहीं महिलाओं को टिकट देने को लेकर दोनों राजनीतिक दलों का कहना है कि उनकी पार्टी महिला सशक्तिकरण चाहती है. यही कारण है कि पचास फीसदी महिलाओं को टिकिट दिए जा रहे हैं. राजनीतिक दलों का कहना है कि अधिकांश जगह महिला कार्यकर्ताओं को टिकट दिए जा रहे हैं, जहां कार्यकर्ता नहीं है वहां किसी पुरुष कार्यकर्ता के परिवार की महिला को टिकट दिया जाएगा.  

हालांकि देखने में यह भी आता है कि भले ही महिला सीट पर महिला चुनाव जीत जाती है और पद पर बैठ जाती है, लेकिन बाद में उसके पति के द्वारा ही पूरा संचालन किया जाता है. जिससे महिला प्रत्याशी एक रबड़ स्टांप की तरह उपयोग की जाती है. ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि यदि महिलाओं को सरकार ने आगे बढ़ाने की नियत से आरक्षण दिया है तो वास्तव में वह आगे बढ़े रबड़ स्टाम्प बनकर न रह जाएं. हालांकि अब तक बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से किसी भी दल अब तक प्रत्याशियों को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं. लेकिन नेता अपनी पत्नियों को टिकट दिलाने की कोशिशों में जुट गए हैं. 

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