मध्य प्रदेश में एक गांव ऐसा भी है, जहां के घर-घर में संस्कृत भाषा में बोली जाती है. गांव के करीब पचास प्रतिशत घरों पर लिखा है- संस्कृत गृहम. हालांकि इसकी शुरुआत सिर्फ 10 साल पहले ही हुई थी. जब एक बुजुर्ग ने गांव को संस्कृत गांव बनाने का सपना देखा. अब गांव में बच्चे, बूढ़े और युवा संस्कृत भाषा का उपयोग करते है.
राजगढ़ जिले के झीरी गांव के लगभग पचास प्रतिशत घरों के प्रवेश द्वारों पर ‘संस्कृत गृहम’ लिखा हुआ था. जब इस बारे में झीरी के ही रहने वाले लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि जिन घरों के सभी सदस्य संस्कृत में ही बात करते हैं सिर्फ उनके ही घरों को यह पदवी दी गई है.
कहने को तो कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित मुत्तूर ग्राम का नाम झिरी से पहले आता है, क्योंकि मुत्तूर की अस्सी फीसदी आबादी ब्राह्मणों की है, जिन्हें संस्कृत विरासत में मिली है.
बाकी बीस प्रतिशत लोग दूसरी जाति के हैं जो संस्कृत नहीं बोलते, लेकिन अगर बारीकी से देखा जाए तो झिरी का नाम पहले आना चाहिए क्योंकि झिरी में सिर्फ एक ब्राह्मण परिवार रहता है. यहां रहने वाले ज्यादातर लोग क्षत्रिय और अनुसूचित जनजाति के हैं. इसके बावजूद यहां के करीब 300 से अधिक लोग संस्कृत में बात करते हैं.
झीरी की कहानी शुरू हुई एक दशक पहले, जब यहां के लोगों ने ‘संस्कृत ग्राम’ का सपना देखा. उस वक्त यहां एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसे संस्कृत भाषा का ज्ञान रहा हो. अपने ‘संस्कृत ग्राम’ का सपना पूरा करने के लिए गांव के बड़े बुज़र्गों ने एक बैठक बुलाई. इस बैठक के लिए ‘संस्कृत भारती’ नाम की संस्था से संपर्क किया गया.
‘संस्कृत भारती’ संस्था संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्था है. संस्कृत भारती ने गांव वालों के इस सपने को सच करने के लिए गांव में एक संस्कृत पाठशाला शुरू कर दी.
इस बीच इस संस्था के इंदौर स्थित कार्यालय के एक स्वयंसेवी की मुलाकात विमला पन्ना नाम की एक ऐसी युवती से हुई जिसे संस्कृत पढ़ाने के लिए कहीं भी जाना स्वीकार्य था.
विमला ने संस्कृत भाषा के माध्यम से गांव का संस्कार ही बदल दिया. संस्कृत भाषा सीखने में महिलाओं की रुचि भी बढ़ी है और इस गांव की प्रगति भी हुई है. इस गांव की नई पीढ़ी ज्यादातर संस्कृत में बात करती है और भजन गीत भी संस्कृत में ही गाती हैं.
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