मध्य प्रदेश में नए जिले की चर्चा हुई तो सागर में घमासान शुरू, क्या है खुरई बंद के मायने
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मध्य प्रदेश में नए जिले की चर्चा हुई तो सागर में घमासान शुरू, क्या है खुरई बंद के मायने

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में चर्चाएं हैं कि बीना और जुन्नारदेव विधानसभा को जिला बनाया जा सकता है. इस बीच सागर जिले में घमासान शुरू हो गया है. चर्चाओं के बीच खुरई विधानसभा में विरोध शुरू हो गया है. अब यहां लोगों ने 3 सितंबर को खुरई बंद करने का फैसला किया है. यहां के लोग सीएम मोहन यादव को संदेश देना चाहते हैं. 

मध्य प्रदेश में नए जिले की चर्चा हुई तो सागर में घमासान शुरू, क्या है खुरई बंद के मायने

MP NEWS: एमपी में दो नए जिलों की घोषणा की सुगबुगाहट के बीच आने वाली 4 तारीख को सीएम डॉ मोहन यादव सागर जिले के बीना दौरे पर रहेंगे. कयास लगाए जा रहे हैं कि 4 तारीख को सीएम बीना में आयोजित सभा में बीना को जिला बनाने की घोषणा करेंगे. इस सुगबुगाहट के बीच अब सरकार को ऐसी घोषणा आसान नहीं होगी. इस परेशानी में कोई कानूनी बाधा नहीं है, बल्कि लोगों का विरोध है. जो शायद सरकार की मुसीबत बड़ा दे. क्योंकि बीना से लगी दूसरी विधानसभा सीट खुरई में इस घोषणा से पहले घमासान मचने वाला है. 

4 तारीख को सीएम के दौरे से पहले यानी 3 सितंबर को खुरई बन्द का आह्वाहन किया गया है और इस बन्द के जरिये बीना की जगह खुरई को जिला बनाये जाने की मांग है. ये मांग और बन्द इसलिए भी खास हो जाता है कि खुरई सूबे के कद्दावर नेता मौजूदा भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह का विधानसभा क्षेत्र है. भूपेंद्र सिंह की वजह से इस बन्द को बेहद अहम माना जा रहा है. खुरई के लोग बीते 5 दिनों से दिन रात मेहनत कर के 3 तारीख के खुरई बंद को ऐतिहासिक बनाने की कोशिश में है, ताकि सरकार पर इसका सीधा असर पड़े. 

1965 से हो रही मांग 
खुरई तहसील के लोगों का कहना है कि खुरई सागर जिले की सबसे पुरानी तहसील है. सन 1965 से लगातार इसे जिला बनाने की मांग हो रही है. पिछली सरकारों के अलावा मुख्यमंत्रियों ने भी खुरई को जिला बनाने को लेकर आश्वासन दिए हैं. अब जब मौका आया तो खुरई की जगह बीना को ये मौका दिया जा रहा है. लिहाजा वो विरोध जाहिर करने सीएम के आने से पहले बन्द कर के अपनी बात सीएम तक पहुंचाना चाह रहे हैं. इस बन्द को न सिर्फ तमाम राजनीतिक दलों का समर्थन है बल्कि व्यापारिक संगठन और आम जनमानस भी इसके पक्ष में खड़ा है.

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क्या है पूरा मामला
इस पूरे मामले को बेहद बारीकी से समझना होगा और ये बन्द या विरोध साधारण नहीं बल्कि बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम बर्चस्व और साख से जुड़ा मसला है. जो सूबे की राजनीति के कई बड़े इशारे भी कर रही है. खुरई पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह का निर्वाचन क्षेत्र है. सिंह कई सालों से खुरई को जिला बनाये जाने की बात अपनी जनता से करते रहे. प्रदेश की राजनीति में हुए बड़े परिवर्तन के बाद बून्देलखण्ड के इस बड़े नेता के कद में कमी आई. भूपेंद्र सिंह को मोहन मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली और एक तरह से वो हासिये पर आ गए. साख बचाने के लिए भूपेन्द्र सिंह लगातार कोशिश कर रहे हैं उन्हें उम्मीद थी कि जब नए जिलों के गठन की बात आएगी तो खुरई उसमे शामिल होगा, लेकिन चर्चा बीना की होने लगी तो अब गेंद फिर फिसलने लगी और ऐसे में पूर्व मंत्री की साख कहीं न कही और कमजोर साबित होने वाली है. 

क्या है सरकार का गेम प्लान
इससे अलग आखिर बीना को कैसे जिला बनाये जाने की बात हुई तो ये मोहन सरकार का बड़ा गेम प्लान माना जा रहा है. दरअसल, 2023 के आम चुनाव में बीना सीट से कांग्रेस की निर्मला सप्रे ने जीत हासिल की और 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के कद्दावर मंत्री गोविंद राजपूत की पहल पर बीना में मुख्यमंत्री की आम सभा मे निर्मला सप्रे ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा की और सीएम ने सप्रे को भाजपा में शामिल कराया. सवाल यही उठता आ रहा है कि क्या वाकई कांग्रेस विधायक ने भाजपा ज्वाइन की तो अब तक उनकी विधिवत भाजपा में शामिल होने के प्रमाण नहीं है और न ही निर्मला सप्रे ने अपने विधायक पद से इस्तीफा दिया है. मतलब उनकी भाजपा में ज्वाइनिंग पूरी तरह से नहीं हुई है. इन हालातों के पीछे की जो कहानी है कि पद से इस्तीफा देने से पहले और फिर उपचुनाव में जनता के बीच जाने से पहले निर्मला कुछ ठोस वजह जनता के बीच रखना चाहती हैं. इनमें से एक बीना को जिला बनाये जाने की घोषणा अहम है. बताया जा रहा है कि इस्तीफे से पहले निर्मला सप्रे की इस बड़ी मांग को मुख्यमंत्री और सरकार पूरा करना चाहती है. लिहाजा 4 तारीख को सीएम बीना में ही इस घोषणा को करने वाले हैं. 

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दिग्गज नेताओं को किनारे किया
ये घोषणा साधारण नहीं बल्कि बुन्देलखण्ड के सियासी गलियारों की दशा और दिशा को अलग मोड़ देने वाली साबित होगी. मौजूदा समीकरणों पर गौर करें तो सत्ताधारी भाजपा ने बहुत कुछ बदलाव लाने के साथ अपने पुराने नेताओं को किनारे किया है. जिलेवार बात करें तो सागर के दिग्गज भाजपा नेताओ में शामिल गोपाल भार्गव, भूपेन्द्र सिंह, शैलेंद्र जैन प्रदीप लारिया जैसे सीनियर नेताओ को सिर्फ विधायक तक सीमित कर दिया. गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे दिग्गज किनारे कर दिए गए, जबकि कांग्रेस से भाजपा में आये गोविंद राजपूत को मंत्री बनाया गया. इसी तरह दमोह से पार्टी के सीनियर लीडर पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया भी महज विधायक ही हैं, जबकि उनके जूनियर लखन पटेल और धर्मेंद्र लोधी को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया. पन्ना जिले की बात करें तो पिछली सरकार में मंत्री रहे बृजेन्द्र प्रताप सिंह और छतरपुर जिले की वरिष्ठ नेत्री पूर्व मंत्री ललिता यादव भी सिर्फ विधायक हैं. 

पुराने नेताओं को कमजोर करना
ये बदलाव बड़े संकेत देने वाले थे और कहीं न कहीं भाजपा की बदली लाईन भी मानी जा रही थी. प्रदेश में कुछ भाजपा नेताओं को पावर लेस किये जाने की चर्चाओं के बीच लोकसभा चुनाव ने 29 में से 29 सीट जीतने के बाद पार्टी का ये प्रयोग सीएम मोहन यादव को मजबूत बनाता जा रहा है. इस बीच अब नए जिलो को लेकर शुरू हुई उठापटक में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है.

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