Ayodhya ही नहीं ओरछा के भी राजा हैं भगवान राम, Indira Gandhi के लिए भी नहीं टूटे थे नियम, करवाया था लंबा इंतजार
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Ayodhya ही नहीं ओरछा के भी राजा हैं भगवान राम, Indira Gandhi के लिए भी नहीं टूटे थे नियम, करवाया था लंबा इंतजार

14 साल का वनवास काटकर जब भगवान राम (Bhagwan Ram) अयोध्या वापस लौटे तो उनके स्वागत में अयोध्या (Ayodhya) में ऐसा उत्सव मना, जो पहले कभी नहीं देखा था. उसे आगे दीपावली (Diwali 2021) का त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा.

इंदिरा गांधी को नियमों का हवाला देते हुए करीब 30 मिनट इंतजार करवाया था

नई दिल्ली:14 साल का वनवास काटकर जब भगवान राम (Bhagwan Ram) अयोध्या वापस लौटे तो उनके स्वागत में अयोध्या (Ayodhya) में ऐसा उत्सव मना, जो पहले कभी नहीं देखा था. उसे आगे दीपावली (Diwali 2021) का त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा. ये तो सभी को पता है, लेकिन अयोध्या से करीब चार सौ किलोमीटर दूर झांसी जनपद में ओरछा की दिवाली (Orchha Diwali) के बारे में सबको नहीं पता है. यहां राम को भगवान नहीं  राजा की तरह देखा जाता है. यहां भगवान श्री राम को ओरछा नरेश का सम्मान प्राप्त है और रोजाना सूर्योदय के समय और सूर्यास्त के समय उन्हें सैनिक सलामी देते हैं.

अयोध्या से ओरछा तक का सफर
ओरछा में राजा राम को सैनिक सलामी के बाद ही आम श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति है. अपने राजा के सम्मान में यहां कोई भी बेल्ट लगाकर मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करता. भगवान श्री राम के अयोध्या से ओरछा तक का सफर बेहद रोचक है. दुनिया के लिए पूज्य भगवान राम को ओरछा में राजा का दर्जा प्राप्त है. यहां राम रसोई घर से अपना राजपाठ चलाते हैं और उनके सम्मान में बनाए गए नियम कोई नहीं तोड़ सकता. देश का प्रधानमंत्री भी नहीं.

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इंदिरा गांधी को करवाया था 30 मिनट इंतजार
ओरछा के राजा राम को लेकर एक दिलचस्प कहानी है, जो कम ही लोगों को पता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब ओरछा के राजा राम के दर्शन करने आईं उस वक्त पट बंद हो चुके थे, जो उनके लिए भी नहीं खोलो गए. इस कारण इंदिरा गांधी को आधे घंटे इंतजार करना पड़ा था. ये बात 31 मार्च 1984 की है, जब चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ओरछा गई थीं. वो मंदिर में दर्शन करने पहुंचीं, लेकिन दोपहर के 12 बज चुके थे और भगवान को भोग लग रहा था, जिसके लिए पुजारी ने पट गिरा दिए थे. अफसरों ने पट खुलवाने को कहा, लेकिन इंदिरा गांधी को नियमों का हवाला देते हुए मना किया गया. इसके बाद इंदिरा गांधी करीब 30 मिनट इंतजार किया.

प्रभु राम को ओरछा लाने के लिए तप
मान्यता है कि दिवाली पर भगवान राम दिन में ओरछा में वास करते हैं और रात को अयोध्या में. इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता. कथाओं के अनुसार, संवत् 1631 में ओरछा स्टेट के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी रानी कुंवरि गणेश जी की रामभक्त थीं. एक बार दोनों के बीच वृंदावन जाएं या अयोध्या इसपर बहस हुई. राजा ने कहा था कि राम सच में हैं तो ओरछा लाकर दिखाओ. ये सुनकर महारानी कुंवरि ने अयोध्या जाकर प्रभु राम को प्रकट करने के लिए तप शुरू किया. कई दिन कोई परिणाम नहीं मिलने पर वो दुखी हो गई और सरयू नदी में कूदने चल पड़ी. जैसे ही वो कूदी भगवान श्रीराम बाल स्वरूप में उनकी गोद में आकर बैठ गए. श्रीराम जैसे ही महारानी की गोद में बैठे तो महारानी ने ओरछा चलने को कहा.

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भगवान राम ने रखी थीं 3 शर्तें 
ओरछा जाने की बात पर भगवान ने तीन शर्तें रखीं. पहली शर्त थी कि ओरछा में जहां बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं. दूसरी  मेरे राजा के रूप में विराजमान होने के बाद वहां पर किसी और की सत्ता नहीं रहेगी और तीसरी शर्त ये कि वो खुद बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ चलेंगे. श्रीराम के ओरछा आने की खबर सुन राजा मधुकर शाह ने उनके लिए चतुर्भुज मंदिर का भव्य निर्माण करवाया. रानी चाहती थीं कि मंदिर ऐसी जगह हो कि महल से सीधे भगवान के दर्शन हों. इसी कारण चतुर्भुज मंदिर रानी के महल के ठीक सामने बनाया. लेकिन मंदिर पूरा नहीं हुआ, तब तक महारानी कुंवरि की रसोई में भगवान को ठहराया गया.

रानी भूल गईं कि श्रीराम की शर्त थी कि वो एक बार जहां बैठेंगे वहां से नहीं उठेंगे. इसी कारण वो आज भी महल में नहीं महारानी की रसोई में विराजमान हैं. भगवान साढ़े 400 साल से रसोई में विराजित है. बाद में उसी जगह अलग मंदिर बनाया गया. 

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