कन्हई बताते हैं कि वह इस नतीजे पर पहुंचे की विद्या का रास्ता पकड़कर ही उनके जीवन में बदलाव आ सकता है. ऐसे में कन्हई ने पहले इसके लिए भगवान को खुश करने का फैसला किया.
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प्रदीप शर्मा/भिंडः कई लोगों को पर्यावरण से बेहद प्यार होता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनका ये प्यार जुनून की हद तक होता है. यही लोग समाज में बड़ा अंतर लाने में सक्षम होते हैं. ऐसे ही एक गुमनाम हीरो भिंड जिले के कन्हई बघेल हैं, जो अपने जीवन में 2000 से भी ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं और हैरानी की बात ये है कि 85 बरस की उम्र में भी उनका ये जोश बरकरार है. कन्हई बघेल का प्रकृति से, पेड़ों से इतना प्यार है कि इस प्यार के चलते लोगों ने उन्हें पागल तक समझना शुरू कर दिया था लेकिन कन्हई इन बातों से जरा भी विचलित नहीं हुए.
भगवान को खुश करने के लिए शुरू किया था पेड़ लगाना
भिंड जिले के दबोह क्षेत्र के गांव बघेडी में रहने वाले कन्हई बघेल के पेड़ लगाने की शुरुआत का भी रोचक किस्सा है. दरअसल भगवान श्रीकृष्ण को खुश करने के लिए कन्हई बघेल ने पेड़ लगाने की शुरुआत की थी. कन्हई बताते हैं कि वह शुरू से ही गरीबी भरा जीवन जीते आए हैं. वह मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालते थे. एक दिन उन्हें ख्याल आया कि वह कब तक इस तरह अपने दिन गुजारेंगे? उनके पास ना खेती है ना पैसा, वो और उनका परिवार आगे कैसे बढ़ेगा?
कन्हई बताते हैं कि वह इस नतीजे पर पहुंचे की विद्या का रास्ता पकड़कर ही उनके जीवन में बदलाव आ सकता है. ऐसे में कन्हई ने पहले इसके लिए भगवान को खुश करने का फैसला किया. कन्हई ने गीता में पढ़ा था कि पेड़ लगाने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं. पेड़ लगाने का पुण्य भी अश्वमेध यक्ष के बराबर होता है. ऐसे में कन्हई बघेल ने पेड़ लगाने का फैसला किया.
लोगों ने समझा पागल
कन्हई बघेल के पास खुद की जमीन नहीं थी तो वह श्मशान, मंदिर, स्कूलों और तालाबों के किनारे पेड़ लगाने लगे. वह लोगों को घरों के बाहर जगह मिलने पर चबूतरों पर, जहां भी जगह मिलती, वहां पेड़ लगाने लगे. इसके चलते कई लोग नाराज भी हुए और कन्हई को लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा. किसी के खेत में पेड़ लगाने पर उन्हें पीटा भी गया लेकिन इस बुजुर्ग का समर्पण कम नहीं हुआ. ऐसे में लोगों ने कन्हई बघेल को पागल कहना शुरू कर दिया. आज भी पेड़ों की देखभाल ही कन्हई बघेल की दिनचर्या का हिस्सा है और बीते 50 सालों से वह हजारों पेड़ लगा चुके हैं. आज उनके लगाए पेड़ विशाल वृक्षों में तब्दील हो चुके हैं.
कन्हई बताते हैं कि पेड़ लगाने का उन्हें फल भी मिला क्योंकि उनके बच्चों का मन पढ़ाई में लगने लगा. एक तरह से कन्हई बघेल के पुण्य का लाभ उनके बच्चों को मिला. कन्हई बघेल ने जूते भी त्याग दिए हैं और वह एक संन्यासी की तरह नंगे पांव बस पेड़ लगाने और उनकी देखभाल में ही जुटे रहते हैं. पेड़ लगाने के अलावा कन्हई बघेल आवारा पशुओं को पानी पिलाने के लिए अपनी जेब से निजी ट्यूबवेल संचालक को पैसे देते हैं.
कन्हई बघेल सिर्फ कक्षा दो तक पढ़े हैं लेकिन उन्हें रामायण कंठस्थ याद है. उन्हें रामायण से ही पेड़ लगाने की सीख मिली. उनका कहना है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम 5 पेड़ लगाने चाहिए.