Ajab Gajab News: कालेश्वर भैरव का इस गांव को ऐसा आदेश, गांव हो गया बेरंग, बड़े भवन लेकिन नही होगा रंग रोगन, काले कपड़े काले जूते भी इस गांव में वर्जित, घोड़े पर बैठकर दूल्हा भैरव मंदिर के सामने से नही गुजर सकता, नही माना कालेश्वर भैरव का आदेश तो हो जाएगी अनहोनी
बैरंग गांव, जी हां सही सुना आपने, ऐसा गांव जहां दिवाली और कोई त्योहार हो या घर में शादी समारोह और भी कोई बड़ा मांगलिक आयोजन, लेकिन इस गांव के घरों पर कभी रंग रोगन नहीं होता. यह गांव के कालेश्वर भेरूजी का आदेश है, जिसे सभी सालों से मनाते आ रहे हैं आइए स्पेशल रिपोर्ट में जानते हैं क्या है यह मान्यता?
इस गांव की ओर जाते रास्ते में जितने भी गांव मिले. सभी जगह एक से बढ़कर एक रंगीन भवन मकान दिखाई दिए. लेकिन गांव कछालिया पहुंचते ही मानों आंखों से रंग ही उड़ गए. पूरे गांव के छोटे बड़े सभी मकान बगैर रंग के दिखाई दिए.
वैसे तो यह गांव दूसरे गांव की तरह ही है. संपन्न किसान , सर्वसुविधायें, सड़क मार्ग, वही भाषा, वैसे ही लोग, सूरज भी यहां पूर्व से ही उगता है, लेकिन सारी समानताओं के बावजूद यह गांव दिखने में आज भी सबसे अलग है.
इस गांव में किसी भी मकान पर कोई रंग रोगन नहीं है और नहीं कोई करवाता है, बल्कि कहें कि यहां के लोग रंग रोगन करवाने से डरते हैं. इतना ही नहीं यहां सिर्फ दिवाली ही नहीं किसी भी त्यौहार और किसी भी मांगलिक कार्य में भी घरों पर रंगाई पुताई सजावट नहीं होती.
दरअसल, यहां सालों से भेरुजी के सम्मान में एक प्रथा चली आ रही है. यह लोग अपने घरों पर रंगाई पुताई नहीं करवाते हैं. न हीं काले जूते पहनते हैं और ना ही शादी में दूल्हा इस गांव के कालेश्वर भैरव मंदिर के सामने से घोड़ी पर बैठकर निकलता है.
सालों से यहां के ग्रामीण इस प्रथा को निभाते चले आ रहे हैं, जिसके कारण यह गांव बेरंग हो गया. ग्रामीणों का कहना है कि चाहे इसे परम्परा, मानें या काल भैरव का आदेश.
अब इसे मानना ही है क्यों कि नहीं मानने वालों को इससे नुकसान भी हुआ है, जो अपने मकान को रंगाई पुताई करवाता है उसे खामियाजा भुगतना होता है. परेशमियों में वह उलझ जाता है.
ग्रामीणों का मानना यह भी है कि कालेश्वर भैरव का आदेश नहीं मानने वाले की या परिवार में किसी की मौत भी हो सकती है. यहां के ग्रामीण इस प्रथा का कारण यह बताते हैं कि यह सब काल भैरव का आदेश है उसे पालन करना उनका सम्मान है.
गांव में इस अंधी मान्यता को पीढ़ी दर पीढ़ी लोग मानते आ रहे हैं और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी इसे मानने को कहते हैं. ऐसे में यह परंपरा माने अंधविश्वास या प्रथा जो भी हो अब इस गांव के ग्रामीणों के जहन में इस कदर छा चुकी है कि इसे न मानने से जान जाने तक का डर इन्हें मानने को मजबूर कर रहा है.
इसी कारण इस कुदरत के रंगीन नजारों के बीच आज भी दिखाई देता है यह बेरंग गांव कछालिया. भेरावजी के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से भी लोग आते हैं और मन्नतें मानते हैं भेरावजी के सम्मान मे यह प्रथा चलती रहेगी, लेकिन इस प्रथा ने गाव कछालिया को बेरंग कर दिया है.
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