छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का प्रतीक भोजली उत्सव: फसल से दोस्ती तक, जानें इसकी अनूठी परंपरा और महत्व
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छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का प्रतीक भोजली उत्सव: फसल से दोस्ती तक, जानें इसकी अनूठी परंपरा और महत्व

What is Bhojali Festival: छत्तीसगढ़ में भोजली उत्सव मितान दिवस के रूप में मनाया गया. इस पर्व में धार्मिकता और मित्रता का विशेष महत्व है. भोजली देवी की पूजा के बाद, महिलाओं ने शोभायात्रा निकालकर भोजली का जलाशय में विसर्जन किया.

Chhattisgarh  Bhojali Festival

Chhattisgarh Bhojali Festival: छत्तीसगढ़ में भोजली उत्सव को मितान दिवस के रूप में उत्साहपूर्वक मनाया गया. यह पर्व धार्मिकता और मित्रता का संगम है, जिसमें धान या गेहूं के बीज को थाल में अंकुरित कर भोजली माता की स्थापना की जाती है. प्रत्येक दिन हल्दी पानी का छिड़काव कर भोजली की सेवा की जाती है. बता दें कि आज सक्ती जिले के डभरा नगर में महिलाओं ने इस परंपरा को निभाते हुए नव कोपल भोजली को एक-दूसरे को प्रदान कर मित्रता का अभिवादन किया.  माना जाता है कि भोजली जितनी बड़ी होगी, फसल उतनी ही अच्छी होगी. 

लोक संस्कृति का पर्व: भोजली उत्सव
बता दें कि छत्तीसगढ़ में लोक संस्कृति का पर्व भोजली उत्सव आज उत्साह के साथ मनाया गया, इसे राज्य में मितान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व का अनोखा महत्व है, जिसमें धार्मिकता के साथ मितान अर्थात मित्रता दिवस के रूप में भी इसे जाना जाता है. धान अथवा गेहूं के बीज को थाल में अंकुरित कर भोजली माता को स्थापित किया जाता है, जिसे प्रत्येक दिन पूजा कर हल्दी पानी का छिड़काव किया जाता है. विभिन्न माध्यमों से भोजली माता की सेवा कर उसे समृद्ध किया जाता है तथा सप्तमी के दिन बाजे-गाजे के साथ शोभायात्रा निकालकर सामूहिक रूप से भोजली का विसर्जन जलाशय में किया जाता है.

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छत्तीसगढ़ में भोजली का पारंपरिक महत्व
भोजली पर्व का छत्तीसगढ़ में पारंपरिक महत्व है, जिसे वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाया जा रहा है. सक्ती जिले के डभरा नगर में इस परंपरा को निभाते हुए आज नगर की महिलाओं ने सामूहिक रूप से भोजली शोभायात्रा के साथ इसका जलाशय में विसर्जन किया. इस दौरान नव कोपल भोजली को एक-दूसरे को प्रदान कर मित्रता का अभिवादन किया गया. इसे छत्तीसगढ़ में मितान दिवस के रूप में भी जाना जाता है.

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