दुर्गा सप्तशती जितना ही फल देता है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, नवरात्रि में करें इसका पाठ
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दुर्गा सप्तशती जितना ही फल देता है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, नवरात्रि में करें इसका पाठ

नवरात्रि में व्रत और पूजा के अलावा दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना चाहिए.लेकिन अगर आपके पास समय की कमी है तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पढ़ सकते हैं. ये भी अत्यंत लाभकारी होता है.

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र करने से प्रसन्न होती है मां

गुंजन/शर्मा/नई दिल्ली: कहा जाता है कि नवरात्रि में व्रत और पूजा के अलावा दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना चाहिए. मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष लाभकारी होता है. इसे करने में कम से कम तीन घंटे का समय लगता है और आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में किसी के पास इतना समय नहीं रहता है. इसके लिए आप लोग सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पढ़ सकते हैं, ये भी अत्यंत प्रभावशाली होता है. स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं.

कैसे करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ?
वैसे तो इस पाठ को सुबह के समय भी कर सकते हैं, लेकिन शाम या रात को इसका पाठ करने से अधिक लाभ होता है. क्योंकि माता को लाल रंग पसंद होता है तो इस पाठ को करने के लिए लाल रंग के कपड़े पहनना शुभ होता है.साथ ही लाल आसन पर बैठकर ही ये पाठ करना चाहिए.सबसे पहले मां के सामने एक दीपक जलाना चाहिए और खुद लाल रंग के आसन पर बैठकर के समक्ष एक दीपक जलाएं. इसके बाद लाल आसन पर बैठें. लाल वस्त्र धारण कर सकें तो और भी उत्तम होगा. इसके बाद देवी को प्रणाम करके संकल्प लें. फिर कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें. कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक को पवित्रता का पालन करना चाहिए.

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शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।

अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''

।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।

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