छत्‍तीसगढ़ के कांकेर में मिली उड़ने वाली गिलहरी, अफ्रीका में इसे मानते हैं अशुभ
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छत्‍तीसगढ़ के कांकेर में मिली उड़ने वाली गिलहरी, अफ्रीका में इसे मानते हैं अशुभ

छत्‍तीसगढ़ के कांकेर के कोसरोंडा के जंगल में सर्चिंग में गये एसएसबी के जवानों को उड़ने वाली गिलहरी मिली है. 

ये गिलहरियां असल में उड़ती नहीं बल्‍क‍ि हवा में ग्‍लाइड करती हैं.

रायपुर: छत्‍तीसगढ़ के कांकेर के कोसरोंडा के जंगल में सर्चिंग में गये एसएसबी के जवानों को उड़ने वाली गिलहरी मिली है. 26 मई को मिली इस गिलहरी को जवान एसएसबी कैम्प लेकर आए और बाद में इसे वापस जंगल में छोड़ दिया. उड़ने वाली गिलहरी की लंबाई 3 फिट के करीब है. इस प्रजाति की गिलहरी को वैज्ञानिक भाषा में पेट्रो मियानी कहते हैं. इस प्रजाति की गिलहरी फल, फूल, बीज, गोंद, मशरूम, पक्षियों के अंडे और कीड़े-मकोड़े खाकर जीवन जीती हैं. 

ग्रामीणों ने इस गिलहरी के बारे में बताया कि 50 साल पहले ये प्रजाति इस क्षेत्र में बड़ी संख्‍या में पाई जाती थी. लेकिन अब इनकी संख्या तेजी से घट रही है. कांकेर में पाई गई ये गिलहरी भारतीय विशाल उड़न गिलहरी प्रजाति की है. दुनिया में उड़ने वाली गिलहरी की 45 प्रजातियां हैं. भारत में सिर्फ 12 पाई जाती हैं. 

अफ्रीका में इन गिलहरियों को अशुभ मानते हैं 
दुनिया की सबसे बड़े साइज वाली उड़न गिलहरी हिमालय के पर्वतों में पाई जाती है. इसके अलावा ये गिलहरी तिब्‍बत में भी पाई जाती है. जंगल में रहने वाली उड़न गिलहरियों का जीवन 5 से 6 साल तक का होता है. लेकिन चिडि़याघर में रखी गई इन गिलहरियों की प्रजाति 10 से 15 साल तक जीवित रहती हैं. अफ्रीका में इन गिलहरियों को अशुभ माना जाता है. इसकी वजह इनका पेड़ पर उल्‍टा लटकना हो सकता है. 

असल में ये उड़ नहीं सकतीं 
उड़ने वाली ये गिलहरियां असल में उड़ती नहीं बल्‍क‍ि हवा में ग्‍लाइड करती हैं. मतलब ये पछियों की तरह हवा में ऊपर की ओर नहीं उड़ती बल्‍कि ये एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर ग्‍लाइड लगाती हैं. ग्‍लाइड करते समय से दिशा बदल सकती हैं. ग्‍लाइड करते समय ये 180 डिग्री तक घूम सकती हैं. 

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