बैतूल जिले में मिले प्राचीन मानव सभ्यता के चिन्ह, कभी यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भी मिले थे ऐसे ही निशान
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बैतूल जिले में मिले प्राचीन मानव सभ्यता के चिन्ह, कभी यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भी मिले थे ऐसे ही निशान

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में प्रीहिस्टोरिक ऐज की आकृतियां मिली हैं, बताया जा रहा है कि यह आकृतियां 30,000 से सवा लाख साल पुरानी है. लेकिन आज तक इस धरोहर पर ध्यान नहीं दिया गया. मानव सभ्यता के शुरुआती दिनों की तस्वीर पेश करती इन आकृतियों को संरक्षित करने की दरकार है.

बैतूल जिले में मिले निशान

इरशाद  हिंदुस्तानी/बैतूल: मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में प्रीहिस्टोरिक ऐज की आकृतियां मिली हैं, बताया जा रहा है कि यह आकृतियां 30,000 से सवा लाख साल पुरानी है. लेकिन आज तक इस धरोहर पर ध्यान नहीं दिया गया. मानव सभ्यता के शुरुआती दिनों की तस्वीर पेश करती इन आकृतियों को संरक्षित करने की दरकार है. इन आकृतियों को लेकर जी मीडिया ने प्रशासन को इस ऐतिहासिक धरोहर से अवगत कराया ताकि इनका संरक्षण किया जा सके.

इस तरह के चिन्ह ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में भी मिले हैं
बैतूल जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच दूर चट्टानों पर उकेरी गई गोलाकार आकृतियों के साथ लाखों साल पुराने कप मार्क्स के निशान मिले हैं. जो हमारी लाखों साल पुरानी सभ्यता और विरासत की झलक पेश कर रहे हैं. बैतूल जिले में यह निशान मिलना इस बात का प्रमाण है कि इस क्षेत्र में भी कभी आदिमानव का बसेरा रहा होगा. प्राचीन इतिहास की विशेषज्ञ  डॉ विजेता चौबे के अनुसार इससे पहले इस तरह के चिन्ह यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में ही मिले हैं. उन्होंने इन चिन्हों को नवपाषाण काल के समय का बताया है.

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इन चिन्हों की तरफ नहीं दिया गया ध्यान
दरअसल, पत्थरों पर खुदाई कर बनाए गए इन चिन्हों की तरफ कभी किसी ने ध्यान ही नहीं दिया था. बदहाली का शिकार हो रहे इन चिन्हों  को लेकर जी मीडिया ने प्रशासन का ध्यान इन पत्थरों की तरफ आकृषित कराया है. जानकार मानते हैं कि यह आकृतियां मातृशक्ति को दर्शाने वाली आकृतियां है. यही नहीं यह रॉक पेंटिंग से भी पुरानी सभ्यता की निशानी है. गोलाकार, संख्यात्मक  और दो समानांतर पंक्तियों में उकरे  गए यह चिन्ह ऑर्गेनेशियन कल्चर के दौर की सभ्यता से मिलते हैं. इससे लगता है कि यह चंद्रमा और तारों की गति या फिर साल और महीनों की गणना करने का कोई तरीका रहा होगा. स्थानीय ग्रामीण इन आकृतियों को हाथीखुर कहते हैं. इससे ज्यादा वे इन चिन्हों के बारे में ज्यादा नहीं जानते.

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स्थानीय लोग करते हैं पूजा
स्थानीय बुजुर्ग ने बताया कि वे इसे हाथीखुर मानते हैं यानि हाथी के पांव जिसके चलते वे इन चिन्हों की पूजा भी करते है. बुजुर्गों ने बताया है कि यह काफी समय से यहां मौजूद है उन्हें इन चिन्हों  के बारे में ज्यादा कोई जानकारी नहीं है. खास बात यह है कि एक छोटे नाले के किनारे 40 बाई 25 फुट के पत्थर पर यह कलाकृतियां बनी हुई है. जिनमे कई चिन्ह गोल है तो कुछ यौनाकार चिन्ह हैं. कही-कही एक पंक्तियों में छोटे-छोटे 12 और 11 गड्ढे बने हुए है. कई जगहों पर गहरे कप आकार के गड्ढे भी बने हुए है. जिन्हे कप मार्क्स कहा जाता है. इस तरह के चिन्ह कभी ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में भी मिले थे.

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प्रशासन ने दिया संरक्षण का भरोसा
जब इस मामले की जानकारी जी मीडिया ने प्रशासन के अफसरों को दी तो एसडीएम सीएल चनाप ने इन चिन्हों की जांच कराने और इसके संरक्षण का भरोसा जताया है. उन्होंने कहा यह मामला मेरे संज्ञान में लाया गया है. अगर यह चिन्ह पाषाण युगीन होंगे तो उनको पुरातत्व विभाग के संज्ञान में लाकर संरक्षित करवाने का काम किया जाएगा.  लेकिन सवाल यह है कि सुंदरता  में लिपटे हमारे समृद्ध अतीत की  निशानियां को सहेजने की कोई व्यवस्थित प्रणाली अब तक प्रदेश में विकसित ही नहीं की गई है. जाहिर है हमने इन्हें संजोया नहीं तो भावी पीढ़ी अपने पुरखों, अपने अतीत से रूबरू नहीं हो सकेगी.

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