Budget 2024: बजट के दौरान बार-बार सुनते होंगे ये शब्द, आसान भाषा में जानिए इनके मतलब
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Budget 2024: बजट के दौरान बार-बार सुनते होंगे ये शब्द, आसान भाषा में जानिए इनके मतलब

हर साल जब आप वित्त मंत्री का बजट भाषण सुनते होंगे या बजट से जुड़ी खबरें पढ़ते होंगे तो आपका पाला कुछ शब्दों से पड़ता होगा. इन शब्दों को आपने सुना तो बार-बार होगा, लेकिन इनका मतलब शायद नहीं जानते हों. उन्हीं शब्दों को हमने आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है.

सांकेतिक तस्वीर.

Budget 2024: जब आप अपने घर का बजट प्लान करते हैं तो कहां से कितनी आमदनी होगी और कहां कितना खर्च होगा इसका लेखाजोखा रखते हैं. कुछ पैसे बचेंगे या महीने के अंत में उधार लेना होगा? उधार लेने से बचने के लिए खर्च में कटौती करते हैं. ठीक इसी तरह देश का बजट तैयार करने में भी इन्हीं बारीकियों का ध्यान रखना होता है. 

लंबे समय तक इसकी तैयारी होती है, हजारों लोग दिन-रात एक कर पूरा हिसाब-किताब तैयार करते हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में केंद्रीय बजट को परिभाषित करते हुए लिखा गया है कि यह किसी सरकार की एक वित्तीय वर्ष में अनुमानित आमदनी और खर्च का लेखाजोखा होता है.

कौन तैयार करता है देश का बजट?
देश का बजट तैयार करने की प्रक्रिया में केंद्रीय वित्त मंत्रालय, नीति आयोग और सरकार के अन्य मंत्रालय शामिल होते हैं. बजट में जनता की सहभागिता बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय देश के नागरिकों से सुझाव मांगता है.  वित्त मंत्रालय के बजट डिवीजन पर बजट तैयार करने की जिम्मेदारी होती है. यह डिवीजन नोडल एजेंसी होता है. 

बजट निर्माण से पहले इनसे भी होती है चर्चा
बजट डिवीजन सभी मंत्रालयों, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, स्वायत्त निकायों, विभागों और रक्षा बलों को सर्कुलर जारी करके उन्हें अगले वर्ष के खर्च अनुमानों को बताने के लिए कहता है. मंत्रालयों और विभागों से मांगें प्राप्त होने के बाद वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के बीच गहन चर्चा होती है.

वित्त विभाग और राजस्व विभाग अर्थशास्त्रियों, कारोबारियों, किसान और सिविल सोसाइटी जैसे हितधारकों के साथ बैठक करते हैं. इस दौरान इनके विचार लिए जाते हैं. बजट.पूर्व बैठकों का दौर समाप्त होने पर टैक्स संबंधित प्रस्तावों पर अंतिम फैसला वित्त मंत्री को लेना होता है. बजट को अंतिम रूप देने से पहले वित्त मंत्री की इसके स्वरूप को लेकर प्रधानमंत्री से चर्चा होती है.

बजट को इस तरह दिया जाता है अंतिम रूप
बजट तैयार करने की जिम्मेदारी चुनिंदा अधिकारियों को सौंपी जाती है. इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले सभी कंप्यूटर्स को दूसरे नेटवर्क से डीलिंक कर दिया जाता है. बजट तैयार करने वाले अधिकारी करीब 2 से 3 हफ्ते नॉर्थ ब्लॉक ऑफिस में ही रहते हैं. उन्हें बाहर आने की इजाजत नहीं होती. बजट तैयार करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान इससे जुड़े लोगों को अपने परिजनों तक से बातचीत करने या मिलने की अनुमति नहीं होती है.

बजट पेश करने की तारीख पर सरकार लोकसभा स्पीकर की सहमति लेती है. इसके बाद लोकसभा सचिवालय के महासचिव राष्ट्रपति से मंजूरी लेते हैं. वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में बजट पेश किया जाता है. बजट पेश करने से ठीक पहले ''समरी फॉर द कैबिनेट'' के जरिए बजट के बारे में कैबिनेट को संक्षेप में बताया जाता है. वित्त मंत्री के भाषण के बाद सदन के पटल पर बजट रखा जाता है. फिर यह सार्वजनिक होता है.

इस तरह समझिए बजट के शब्द

वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement): वार्षिक वित्तीय विवरण बजट में सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है. संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत, सरकार को राजकोष के लिए अनुमानित राजस्व और व्यय का एक विवरण पेश करना होता है. इस विवरण को 'वार्षिक वित्तीय विवरण' कहा जाता है. यह दस्तावेज तीन भाग में विभाजित होता है- समेकित निधि, आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाता.

बजट लेखा-जोखा (Budget Estimates): वित्त वर्ष के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न करों से प्राप्त राजस्व और खर्च के आकलन को बजट लेखा-जोखा कहा जाता है.

संशोधित लेखा-जोखा (Revised Estimates): बजट में किए गए आकलनों और मौजूदा आर्थिक परिस्थिति के मद्देनजर इनके वास्तविक आंकड़ों के बीच का अंतर संशोधित लेखा-जोखा कहलाता है. इसका जिक्र आने वाले बजट में किया जाता है.

वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit): सरकार को प्राप्त कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर वित्तीय घाटा कहलाता है. इसे राजकोषीय घाटा भी कहते हैं. 

राजस्व प्राप्ति (Revenue Gain): सरकार द्वारा वसूले गए सभी प्रकार के कर और शुल्क, निवेशों पर प्राप्त ब्याज और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त रकम को राजस्व प्राप्ति कहा जाता है.

राजस्व व्यय  (Revenue Expenditure): विभिन्न सरकारी विभागों और सेवाओं पर खर्च, ऋण पर ब्याज की अदायगी और सब्सिडी पर होने वाले व्यय को राजस्व व्यय कहते हैं.

वित्त विधेयक (Finance Bill): नए कर लगाने, कर प्रस्तावों में परिवर्तन या मौजूदा कर ढांचे को जारी रखने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक को वित्त विधेयक कहते हैं. इसे संविधान के अनुच्छेद 110 के अंतर्गत पेश किया जाता है. 

विनियोग विधेयक (Appropriation Bill): सरकार द्वारा संचित निधि से रकम निकासी को मंजूरी दिलाने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक विनियोग विधेयक कहलाता है.

राष्ट्रीय ऋण (Government Debt): केंद्र सरकार के राजकोष में शामिल कुल ऋण को राष्ट्रीय ऋण कहते हैं. वित्तीय बजट घाटों को पूरा करने के लिए सरकार यह ऋण लेती है.

संचित निधि (Consolidated Fund): सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि में जमा होते हैं. इसके बारे में संविधान के अनुच्छेद 266 में बताया गया है. यह भारत सरकार की सबसे बड़ी निधि है. इस कोष को भारतीय संसद के अधीन रखा गया है, कोई भी बिना संसद की अनुमति के इससे धन नहीं निकाल सकता है.

आकस्मिक निधि (Contingency Fund): इस कोष का निर्माण इसलिए किया जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर आकस्मिक खर्चों के लिए संसद की स्वीकृति के बिना भी राशि निकाली जा सके. ये निधि सरकार को अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने में मदद करती है. 

पूंजीगत प्राप्ति (Capital Gain): इसमें सरकार द्वारा बाजार से लिए गए ऋण, भारतीय रिजर्व बैंक से ली गई उधारी और विनिवेश के जरिये प्राप्त आमदनी को शामिल किया जाता है.

पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure): सरकार द्वारा अधिग्रहीत विभिन्न संपत्तियों पर हुए खर्च को पूंजीगत व्यय की श्रेणी में रखा जाता है.

Public Expenditure (सरकारी योजनाओं पर होने वाला खर्च): सरकारी व्यय को दो हिस्सों में बांटा जाता है, योजनागत व्यय और गैर योजनागत व्यय. योजनागत व्यय में वे सभी व्यय आते हैं, जो विभिन्न विभागों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर किया जाता है. इसका एस्टिमेट विभिन्न मंत्रालयों और योजना आयोग द्वारा मिल कर बनाया जाता है. गैर योजनागत व्यय के दो हिस्से होते हैं- गैर योजनागत राजस्व व्यय और गैर योजनागत पूंजीगत व्यय. गैर योजनागत राजस्व व्यय में ब्याज की अदायगी, सब्सिडी, सरकारी कर्मचारियों को वेतन की अदायगी, राज्य सरकारों को अनुदान, विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले अनुदान आदि शामिल होते हैं. वहीं गैर योजनागत पूंजीगत व्यय में रक्षा, पब्लिक इंटरप्राइजेज को दिया जाने वाला कर्ज, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिया जाने वाला कर्ज आदि शामिल होता है.

वित्त वर्ष (Financial Year): वित्तीय मामलों के हिसाब किताब के लिए एक आधार वर्ष होता है, इसे वित्त वर्ष यानी अंग्रेजी में फाइनेंसियल ईयर कहते हैं. भारत में वित्त वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च तक चलता है. 

कर निर्धारण वर्ष (Assessment Year): कर निर्धारण वर्ष किसी वित्तीय वर्ष का अगला वर्ष होता है. जैसे 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 अगर वित्तीय वर्ष है तो कर निर्धारण वर्ष 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 तक होगा.

सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product): एक समयावधि में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है. यह किसी देश की अर्थव्यवस्था को मापने का सबसे अच्छा और स्वीकृत तरीका है. इसमें कृषि, उद्योग और सेवा तीन क्षेत्र शामिल होते हैं.

सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product): एक वर्ष के दौरान देश में तैयार सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य तथा स्थानीय नागरिकों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश के जोड़ को विदेशी नागिरकों द्वारा देश में अर्जित लाभ में घटाने से प्राप्त रकम को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है.

Balance Sheet (तुलन पत्र): बैंलेस शीट में सरकार को साल भर में टैक्स के जरिए प्राप्त होने वाली आमदनी और उसके द्वारा किया जाने वाले खर्च का पूरा ब्यौरा होता है.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment): किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं.

विनिवेश (Disinvestment): सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है.

Subsidies(कर से छूट ): सरकार द्वारा व्यक्तियों या समूहों को नकदी या कर से छूट के रूप में दिया जाने वाला लाभ सब्सिडी कहलाता है. भारत में इसका इस्तेमाल लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. सरकार डीजल और एलपीजी जैसे कई चीजों पर सब्सिडी देकर ग्राहकों को लाभ पहुंचाती है.

सार्वजनिक खाता (Public Account): पब्लिक अकाउंट का गठन भारत के संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के प्रावधानों के तहत किया जाता है, जो कि उन सभी फंडों के संबंध में है, जहां सरकार बैंकर के रूप में काम कर रही है. हालांकि सरकार का इस धन पर कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उसे जमाकर्ताओं को वापस करना है. इस निधि से होने वाले व्यय को संसद द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है.

कटौती प्रस्ताव या कट मोशन (Cut Motion): आमतौर पर कट मोशन का इस्तेमाल विपक्ष के द्वारा किया जाता है. सरकार संसद के सामने अनुदान मांगों को मंजूरी के लिए सदन में पेश करती है. वहीं विपक्ष के जरिए विभिन्न मांगों में कटौती के लिए मांग की जाती है.

बजट में जिस चीज पर सबसे ज्यादा  होता है आपका ध्यान, वह है टैक्स

आयकर (Income Tax): वह टैक्स जो सरकार आपकी आय पर लेती है. वर्तमान में लागू नियमों के मुताबिक आपकी आमदनी के पहले ढाई लाख रुपये पर कोई कर नहीं लगता. ढाई लाख के बाद की कमाई पर टैक्स लगता है.

80सी की बचत (Savings Under 80c): आप अपनी आमदनी में इंश्योरेंस, सीपीएफ, जीपीएफ, पीपीएफ, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी), टैक्स बचाने वाले म्यूचुअल फंड, पांच साल से ज्यादा की एफडी, होम लोन के प्रिंसिपल (मूलधन) जैसे निवेशों में लगा सकते हैं, और ऐसे ही निवेशों को जोड़कर डेढ़ लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स में छूट दी जाती है. इस डेढ़ लाख रुपये को आपकी कुल आय में से घटा दिया जाता है और उसके बाद इनकम टैक्स का हिसाब लगाया जाता है.

प्रत्यक्ष कर (Direct Tax): वह टैक्स जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है. इनकम टैक्स, व्यवसाय से आय पर कर, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स.

अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax): वह टैक्स जिसे आप सीधा नहीं जमा कराते, लेकिन यह आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है. जैसे देश में तैयार, आयात या निर्यात किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने वाले कर अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं.  इसमें उत्पाद कर और सीमा शुल्क शामिल किए जाते हैं.

सेवा कर (Service Tax): बाजार में मौजूद कई तरह की सेवाओं जैसे मोबाइल, सलून, कोचिंग, रेस्त्रां वगैरह की सेवाओं को लेने के बदले कुछ शुल्क देना पड़ता है. इसी को सर्विस टैक्स कहते हैं. पिछले बजट में इसे 12.36 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया गया था.

औद्योगिक कर (Corporate Tax/Industrial Tax): औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लगाए जाने वाले कर. यह उस प्रतिष्ठान के मालिक पर लगाए गए व्यक्तिगत कर से अलग होता है.

उत्पाद शुल्क (Excise Duty): यह देश में बने और यहीं बिकने वाले सामान पर वसूला जाता है. कंपनियों को फैक्ट्री में सामान निकालने से पहले इसे भरना जरूरी है. यह जरूरी नहीं कि एक ही तरह की चीजों पर बराबर एक्साइज ड्यूटी लगाई जाए. यह सरकार की कमाई के सबसे बड़े साधनों में से एक है.

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