परंपरा के नाम पर खेल जाएगा खूनी खेल, जानिए पत्थर बरसाने वाले गोटमार मेले की कहानी
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परंपरा के नाम पर खेल जाएगा खूनी खेल, जानिए पत्थर बरसाने वाले गोटमार मेले की कहानी

Gotmar Fair:  छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना में पोला पर्व के दिन होने वाले विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले को लेकर प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली है. आज भी यह खेल फिर से खेला जा रहा है. जानिए इस गोटमार मेले की कहानी. 

गोटमार मेला (फाइल फोटो)

Gotmar Fair: छिंदवाड़ा जिले की तहसील पांढुर्ना अपने एक विशेष खेल के चलते प्रदेशभर में अलग पहचान रखती है. उसी खेल का दिन एक फिर आ गया है, जिसे ''गोटमार'' के नाम से जाना जाता है. पांढुर्ना में गोटमार मेले के दौरान शांति और मानव जीवन की सुरक्षा के लिए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किए गए हैं, क्योंकि यह खूनी खेल सालों से चलते आ रहा है. जिसमें दो गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. जिसमें हर साल कई लोग घायल होते है. आज भी यह खेल खेला जा रहा है. 

खूनी खेल को रोकने प्रशासन हुआ एक जुट
पांढुर्ना में पोला पर्व के अगले दिन होने वाले इस विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले को क्या प्रशासन रोक पाएगा यह बड़ा सवाल है. तमाम प्रयासों के बाद भी सालों से यह खूनी खेला जा रहा है, जिसमें कई लोग घायल होते हैं तो कुछ लोगों की जान चली जाती है. इस खूनी खेल को रोकने के लिए इस बार भी प्रशासन ने यह पूरे प्रयास किए, लेकिन फिर भी यह खेल हो रहा है. आज भी जाम नदी में पूजा के बाद मेला शुरू हो गया है. 

पांढुर्ना पक्ष की तरफ से मां चंडिका के दर्शन कर भक्तों द्वारा पलाश रूपी झंडे पर ध्वजा लगाने का सिलसिला जारी है, वह चंडी माता की जय कार की गूंज गोटमार परिसर के आसपास जारी है. पुलिस और प्रशासनिक अमला तैनात है अभी तक किसी के हताहत होने की सूचना प्राप्त नहीं हुई है. 

गोटमार खेल की कहानी 
पांर्ढुना में हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में, पोला त्योहार के दूसरे दिन पांर्ढुना और सावर गांव के बीच बहने वाली जाम नदी के दोनों किनारों से दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाकर इस परंपरा को निभाते हैं. गोटमार मेले की परंपरा बहुत पुरानी बताई जाती है. ये मेला कब शुरू हुआ इसका किसी को ठीक से अंदाजा नहीं है. हालांकि इसके पीछे लोग एक कहानी जरूर बताते हैं. पांढुर्ना गांव के एक लड़के का दिल सावर गांव की एक लड़की पर आ गया. फिर दोनों का इश्क परवान चढ़ा और दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. एक दिन पांढुर्ना गांव का लड़का अपने दोस्तों के साथ सावर गांव पहुंचा और अपनी प्रेमिका को भगाकर ले जा रहा था. जब दोनों जाम नदी को पार कर रहे थे. तभी सावर गांव के लोग वहां पहुंच गए और फिर भीड़ ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. 

जैसे ही ही इस बात की जानकारी जब पांढुर्ना गांव के लोगों को लगी तो वे भी पत्थर का जबाव पत्थर से देने पहुंच गये. जिसके बाद पांर्ढुना और सावर गांव के बीच बहती नदी के दोनों किनारों से बदले के पत्थर पत्थर बरसाने लगे, जिसमें नदी के बीच ही लड़का और लड़की की मौत हो गई. इस घटना के बाद दोनों की मौत के बाद पांढुर्ना और सावर गांव के लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ. लिहाजा दोनों गांव के लोगों ने प्रेमी-प्रेमिका का शव ले जाकर मां चंडी के मंदिर में रखा और पूजा-पाठ के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया. इसके बाद से ही परंपरा के नाम पर ये खूनी खेल शुरु हो गया. जो अब तक चल रहा है.

140 साल से भी ज्यादा समय से जारी है गोटमार मेला 
गोटमार नाम से मशहूर ये खेल करीब 140 साल से भी ज्यादा समय से जारी है. इसके बाद भी पांढुर्ना के लोग इसे छोड़ने तैयार नहीं हैं. हालांकि बाद में प्रशासन ने इस खेल को बंद करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन प्रशासन इसमें नाकाम साबित हुआ. तकरीबन 140 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी नहीं बदली. इस बार भी स्थानीय प्रशासन और कांग्रेस विधायक नीलेश उईके लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं है. 

कई लोग होते हैं घायल 
पिछले साल भी कोरोना के बावजूद गोटमार मेले का आयोजन किया गया था. जिसमें कई लोग घायल हुए थे. हैरानी की बात तो ये है कि इस मेले में कई लोग इसी खेल के चक्कर में अपंग हो जाते हैं, लेकिन हिंसा से भरा मेला ऐसे ही चलता रहता है. पिछले साल भी इस खेल में 234 लोग घायल हुए थे. इतना ही नहीं यहां हर व्यक्ति आस्था के नाम पर शराब पीता है, हालांकि कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं. लेकिन अब तक इसे रुकवाया नहीं जा सका है. इस बार भी आज आस्था में खूनी संघर्ष का यह खेल खेला जाएगा. आज भी यह खेल फिर से खेला जा रहा है. 

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