परेशानियों का ये आलम है कि उन्हें अपनी सब्जियों को ट्रेक्टर ट्रालियों मे भरकर फेंकने की नौबत आ पड़ी है. वहीं किसान फसलों के बर्बादी के बाद भी मजदूरों को रोज़गार दे रहे है.
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कांकेर: एक तरफ़ कोरोना ने लोगों का जीना है दूभर कर दिया है ऊपर से जीवन यापन करने के लिए भी किसानों के पास अब कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. कांकेर ज़िले के दूधावा क्षेत्र के सब्जी पैदावार करने वाले किसानों को लॉकडाउन और मौसम की दोहरी मार के चलते आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. खेती के लिए पहले ही कर्ज़ ले चुके किसानों को सब्जियों की वास्तविक कीमत भी नसीब नहीं हो रही है. नतीजा यह है कि कर्ज चुकाना तो दूर वे फिर से उधार लेने को मजबूर हैं.
किसान परेशान
दुधावा क्षेत्र में सब्ज़ी की खेती करने वाले किसान खासे परेशान हैं. उनकी परेशानियों का ये आलम है कि उन्हें अपनी सब्जियों को ट्रेक्टर ट्रालियों मे भरकर फेंकने की नौबत आ पड़ी है. वहीं किसान फसलों के बर्बादी के बाद भी मजदूरों को रोज़गार दे रहे है.
बर्बादी के बाद भी मजदूरों को दे रहे रोज़गार
किसान संजूगोपाल साहु ने बताया कि हर रोज खराब बैगन और टमाटर को फेंकना पड़ रहा है. फसलों के बर्बादी के बाद भी लगभग 100 मजदूरों को रोजगार दे रहे है. दरअसल सब्जियों को फेंकने के लिये करीब 80 से 100 मजदूरों की जरुरत पड़ती है जिसमें अतिरिक्त 40 हजार रुपये की खर्च हो रहा है.
लाखों का हुआ नुकसान
वहीं किसान तोषीत कुमार साहू के अनुसार उन्होंने 40 एकड़ जमीन लीज मे लिया है. जिसका कर्ज अब सर पर चढ़ गया है. दुधावा निवासी निरंजन गंजीर ने 4 एकड़ में टमाटर और बैगन लगाया है. एक साल से कोरोना का संकट झेलने के बाद अब तक अतिरिक्त रूप से लाखों के नुकसान चुकाना पड़ रहा है. संजूगोपाल साहू ने 10 एकड़ में बैगन 13 एकड़ में टमाटर 6 एकड़ मे खीरा 6 एकड़ मिर्च और करेला व बरबट्टी 5 एकड़ में फसल लगाया है. सबसे ज्यादा नुकसान बैगन और टमाटर में हो रहा है.
बिक्री पूरी तरह से बंद
दुधावा इलाके के किसानों को लागत से भी कम कीमत मिल रही है. खरीदार मिल भी जाए तो फसल की कीमत नहीं मिल रही. लॉकडाउन के चलते मंडीयां बंद हैं. टमाटर की कीमत 2₹ प्रति किलो मिल रही है जिससे उन्हें काफी नुकसान हो रहा है. किसान संजू गोपाल साहू बताते हैं कि 1 दिन में 500 से 600 कैरेट टमाटर निकलता है. लेकिन बिक्री केवल 150 कैरट तक ही हो रही है. जबकि बैगन की बिक्री पूरी तरह से बंद हो चुकी है. खराब होने के कारण ट्रैक्टर ट्राली में भरकर उसे फेंकने की नौबत आ रही. इससे किसानों को उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है.
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